जानिए राजनीति में अपनी भागीदारी पर क्या कहती हैं महिलाएं।
रवांडा, क्यूबा और निकारागुआ जैसे देशों में 50% से अधिक महिला सदस्य।
इस बिल को पारित करने का मुद्दा पहली बार 1974 में उठाया गया था।
जनगणना के बाद 2029 तक ही इसे लागू किए जाने की उम्मीद है।
Women Day 2024 : 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International women's day 2024) मनाया जाएगा। इस दिन महिला सशक्तिकरण और महिलाओं की उपलब्धि को लेकर तमाम तरह के उदाहरण दिए जाएंगे और दुनियाभर की महिलाओं की सक्सेस स्टोरी सामने आएंगी।
ठीक इसी तरह अगर राजनीति की बात करें तो आज भी भारत की राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी उल्लेखनीय नहीं है। सवाल यह है कि दुनिया की आधी आबादी माने जाने वाली महिलाओं की सक्रियता राजनीति में कब बढेगी।
सवाल अब भी कायम : पिछले साल यानी सितंबर 2023 में भारत में महिला आरक्षण बिल या नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित किया गया। इस बिल को महिला सशक्तिकरण का नया कदम कहा जा रहा है, लेकिन सवाल यह है कि क्या 33% आरक्षण से हम भारत में महिला सशक्तिकरण का उदाहरण दे सकते हैं? जानते है इस मौके पर दुनियाभर में राजनीति में महिलाओं की भागीदारी।
रवांडा और क्यूबा में महिला सदस्यों की संख्या 50 प्रतिशत से ज्यादा
संयुक्त राष्ट्र महिला और Statista की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार रवांडा की सांसद में महिला सदस्यों की संख्या 61 प्रतिशत से ज्यादा है। इस लिस्ट में दूसरे स्थान पर क्यूबा है, जिसमें महिला सदस्यों की संख्या 55% से ज्यादा और तीसरे नंबर पर 51% से अधिक निकारागुआ है।
जहां संसद में महिलाओं की संख्या ज्यादा : आपको बता दें कि रवांडा मध्य अफ्रीका का एक छोटा सा देश है जिसकी आबादी सिर्फ 1.2 करोड़ है। यह दुनिया का पहला ऐसा देश है जिसकी संसद में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक हैं। साथ ही रवांडा का संविधान संसद में महिलाओं के लिए 30% सीटों का आरक्षण सुनिश्चित करता है। लेकिन इस देश ने अपने संसद में सबसे अधिक महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने का रिकॉर्ड कायम रखा है।
क्या हाल है अमीरात में : जबकि संयुक्त अरब अमीरात की बात करें तो यहां की संसद में 50% महिला सदस्य इसके अलावा संयुक्त अरब अमीरात जैसा देश हमेशा महिला अधिकारों के प्रति चर्चा में रहता है। इस देश में महिलाओं के लिए कई तरह की पाबंदियां हैं लेकिन इस देश की संसद में भी 50% महिला सदस्य हैं।
क्या भारत में लागू होगा बिल : भारत में पहली बार इस बिल को पारित करने का मुद्दा 1974 में उठाया गया था और 2023 में इस बिल को पारित किया गया। इस बिल को पारित करने के बाद भी जनगणना के बाद साल 2029 के लोकसभा चुनाव तक ही इसे लागू किए जाने की उम्मीद है।
इस मसले पर वेबदुनिया ने राजनीति के साथ ही अलग अलग क्षेत्रों में अपना वर्चस्व रखने वाली कुछ महिलाओं से चर्चा की। जानते हैं क्या कहना है उनका।
महिला कार्यकर्ता को बढ़ावा देना चाहिए : भाजपा वार्ड नंबर 6 की पार्षद संध्या यादव ने बताया कि हालांकि महिला आरक्षण बिल 2029 तक लागू किया जाएगा, लेकिन महिला सदस्यों की संख्या पार्टी पर भी निर्भर करती है। उदाहरण के लिए रवांडा में 30% सीटों का महिला आरक्षण होने के बाद भी 60% से ज्यादा महिला सदस्य हैं। राजनीति में भी महिलाओं के लिए कई अवसर प्रदान किए जा रहे हैं और मुझे लगता है कि जो महिला पार्टी में कार्यकर्ता है उन्हीं को बढ़ावा देना चाहिए।
भविष्य में बढेगी महिलाओं की हिस्सेदारी :सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीति में सक्रिय माला सिंह ठाकुर ने वेबदुनिया को बताया कि चाहे पुरुष हो या महिला, राजनीती में आगे बढ़ने के लिए समर्थ होना आवश्यक है। महिला आरक्षण में कई देश हमसे आगे हैं लेकिन अभी भारत के लिए 33% महिला आरक्षण होना ज़रूरी है। भविष्य में भारतीय महिलाओं की स्थिति कई देशों से बेहतर होगी लेकिन अभी भारत की वर्तमान स्थिति पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
क्या है महिला आरक्षण बिल 2023?
यह बिल संविधान का 106वां संशोधन के तहत पारित किया गया है। इस बिल के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गई हैं। यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति (SC) तथा अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा। इस विधेयक के लागू होने के बाद साल 2029 में आयोजित जनगणना के प्रकाशन के बाद यह आरक्षण प्रभावी होगा। यह आरक्षण 15 वर्ष की अवधि के लिये प्रदान किया जाएगा।
वर्तमान में 17वीं लोकसभा के कुल सदस्यों में से लगभग 15 प्रतिशत महिलाएं हैं। जबकि राज्य विधानसभाओं में कुल सदस्यों में औसतन 9 प्रतिशत महिलाएं हैं। अगर राजनीति में महिलाओं की ग्रोथ देखी जाए तो आपको बता दें कि महिला सदस्यों की संख्या पहली लोकसभा में 5 प्रतिशत से बढ़कर 17वीं लोकसभा में 15 प्रतिशत तक हो गई है।
पिछले कुछ सालों में सिर्फ 10 प्रतिशत का ही अंतर आया है। महिला सदस्यों की संख्या बढ़ाने पर पार्टी को अपने स्तर पर सोचने की भी ज़रूरत है। साथ ही वंशवाद को छोड़कर कार्यकर्ता और सामर्थ्य महिलाओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है।