महिला दिवस : अनुभवों के दर्पण से झांकते चेहरे

यूं तो महिला दिवस दुनिया भर की महिलाओं के सम्मान में मनाया जाता है, लेकिन कुछ महिलाएं ऐसी भी हैं जो विशेष तौर पर इस सम्मान की हकदार होती हैंभले ही उनमें विशेष कुछ न दिखाई दे लेकिन परिस्थि‍तियों का सामना करने का हौंसला और उनका अलग अंदाज उन्हें भीड़ से अलग करता है। ये महिलाएं किसी दूसरी दुनिया की नहीं, बल्कि हमारी की दुनिया की, हमारे ही बीच होती हैं...बिल्कुल हमारे जैसी आम। ऐसी ही महिलाओं के कुछ उजले चेहरे यहां भी संजोए हैं  - 



 
पहली महिला है सुनैना, जो मेरी ही बिल्डिंग में चौकीदारी करने वाले दिनेश की पत्नी है। उसके चार बच्चे हैं और चारों की उम्र में बहुत ज्यादा अंतराल भी नहीं है। हिर दिन सुबह जल्दी उठकर पूरी बिल्डिंग में निचले तल से लेकर चौथी मंजिल तक झाड़ू और पोछा लगाने के बाद पानी बताशे बनाती है, ताकि पति दिनेश शाम के वक्त पानी बताशे का ठेला लगा सके। फिर बच्चों को तैयार करती है और बिल्डिंग के साथ-साथ बाकी घरों में काम करने निकल जाती है।

आधा दिन उसका काम में निकलता है और शाम को जब दिनेश चाट का ठेला लगाने जाता है, तब वह बिल्ड‍िंग की चौकीदारी करती है। इस बीच दिनभर बच्चों को संभालना और खाने पीने से लेकर अन्य कामों के लिए नीचे से चौथी मंजिल तक न जाने कितने ही चक्कर लगते हैं उसके। बिल्डिंग के रहवासी या पदाधि‍कारी कुछ कह न दें इस डर से वह कभी लिफ्ट का इस्तेमाल भी नहीं करती।

लेकिन उसके चेहरे पर कभी उदासी या थकान नजर नहीं आई। बचे हुए समय में वह अपनी पुरानी साड़ि‍यों से सूट या अन्य कपड़े भी सिलती है, क्योंकि उसके पास पूरे दिन का समय भले ही खत्म हो जाए लेकिन सीखने की ललक हमेशा बाकी रहती है।

शोभा दीदी...करीब 45 से 60 वर्ष के बीच होगी उनकी उम्र। चार भाई बहनों में दूसरे नंबर पर शोभा दीदी हैं जो बड़े भैया के बाद दो भाई बहनों से बड़ी हैं। बड़े भाई की शादी होने के बाद वे सरकारी नौकरी में होने वाले ट्रांसफर में भटकते रहे और शोभा दीदी ने घर की जिम्मेदारी खुद पर ली। जीवन के कुछ संघर्षों से गुजरते हुए पढ़ाई पूरी कर वे सरकारी शि‍क्षक के रूप में पदस्थ होने वाली थीं, लेकिन राजनीति और भाई-भतीजावाद के कारण न हो सकीं। लेकिन आज वे एक प्रतिष्ठि‍त स्कूल में सालों से शि‍क्षि‍का हैं।


सुंदरता, मधुरता और बुद्धि‍मान रहीं शोभा दीदी के लिए कई रिश्ते आए लेकिन घर की जिम्मेदारियों के आगे अविवाहित रहने का निश्चय किया और छोटे भाई-बहनों की शादी करवाने से लेकर बूढ़े पिता की भरपूर सेवा करने तक वे कभी अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटी। उनकी आधी तनख्वाह माता-पिता की दवाईयों और बाकी घर चलाने से लेकर मेहमानों की खातिर करने में गुजरती रही लेकिन उनके माथे पर मैने कभी सिलवटें नहीं देखी।

आज भी घर आया कोई मेहमान बगैर चाय या नाश्ते के चला जाए ऐसा उनके रहते तो नहीं होता। हर कोई उनके इस भाव के कारण उनके प्रति बेहद आदर भाव रखता है। आज पिता नहीं है लेकिन मां की तबियत की सारी जिम्मेदारी वे तब भी अपने सर रखती हैं, जब अपनी कमजोर देह और बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण वे खुद कुछ करने में असक्षम हैं।

अविवाहित होते हुए भी खुद को उन्होंने जिस स्वाभि‍मान और सम्मान के साथ स्थपित किया है कि उस शहर में उन्हें जानने वाले उनके नाम के प्रति भी अपार श्रद्धा और सम्मान का भाव व्यक्त करते हैं।

ज्योति भी महिला सशक्तिकरण का ही एक उदाहरण है, जिन्हें हॉस्टल की सारी लड़कियां ज्योति दीदी कहकर बुलाती हैं, उम्र भी कोई ज्यादा नहीं, यहीं कुछ 30 से 40 के बीच। लेकिन दिखने में किसी कॉलेज गोइंग या वर्किंग वुमन-सी, सांवली रंगत लिए खूबसूरत।




ज्योति दीदी कॉलेज गोइंग लड़कियों के लिए सस्ते दामों पर डिजाइनर कपड़े बेचती हैं और वर्तमान में अपने 2 बीएचके फ्लैट में ही उनकी यह दुकान काफी चलती है। सस्ते दाम और अच्छे व्यवहार के कारण अच्छा खासा प्रतिसाद भी मिलता है।

लेकिन ज्योति दीदी ने इतनी आसानी से यह सब नहीं कमाया। हमेशा उनके चेहरे पर बिखरी उजली-सी मुस्कान उनके बीते जीवन के संघर्षों के कारण और भी निखरी लगती है। दरअसल छोटी उम्र में ही पिता के देहांत के बाद बड़ी बेटी होने के नाते उनपर जिम्मेदारियां आ गई और उन्होंने जॉब करना शुरू किया। कुछ समय बाद ऑफिस के ही एक सीनियर से घर वालों की रजामंदी से लव मैरेज की, लेकिन जहां भी रहीं परिवार के आसपास ही रहीं। कुछ समय बाद ही पति का एक्सीडेंट हुआ। इस दौर में न उन्होंने खुद को हतोत्साहित होने दिया न ही पति को

जीवन के प्रति प्रोत्साहन बनाए रखते हुए ज्योति दीदी ने कपड़ों का काम शुरू किया। शुरूआत में वे कपड़ों का बैग लेकर लड़कियों के हॉस्टल जातीं थी। कभी उन्हें प्रतिसाद मिलता कभी नहीं मिलता। कभी-कभी तो कमाए हुए पैसे आसपास की भीड़ में ही चोरी हो जाते और वे खाली हाथ घर वापस आ जातीं। लेकिन घर आकर भी पूछने पर यही कहतीं, कि बहुत प्यार मिला लड़कियों का, बहुत अच्छी बिक्री हुई। लेकिन वो कहते हैं ना, सच्चे मन से मेहनत और लगन के साथ कोई काम किया जाए तो ईश्वर भी साथ हो लेता है धीरे-धीरे उनपर विश्वास और सस्ते दामों की अपेक्षा, हॉस्टल से उनके घर तक पहुंची और उनके प्यार भरे व्यवहार से कॉलेज गोइंग बहुत सी लड़कियां उनकी कस्टमर बनीं।

अपने हौंसले को बुलंद रख उन्होंने खुद करे दूसरों के लिए एक मिसाल बनाया। उनके प्यार और अपनेपन के कारण आज उन्हें लड़कियों से ढेर सारा प्यार भी मिलता है और उतना ही बि‍जनेस भी। वर्तमान में भी वे कपड़ों का बिजनेस करती हैं, जो पहले से काफी बेहतर है। लेकिन सफलता की ओर बढ़ते हुए भी, वे आज भी उतनी ही लगन और समर्पण के साथ काम करती हैं। बगैर आराम, सुबह से लेकर शाम तक, अब भी...बगैर किसी छुट्टी के।

वेबदुनिया पर पढ़ें