कैसी होती है अभय मुद्रा : आपने भगवान के चित्रों में उन्हें आशीर्वाद देते हुए देखा ही होगा, वही अभय मुद्रा है। अंगुठे और तर्जनी अंगुली मिलाकर भी अभय मुद्रा की जाती है और आशीर्वाद की मुद्रा भी अभय मुद्रा ही कही जाती है।
अभय मुद्रा के लाभ : इस मुद्रा का निरंतर अभ्यास करने से मन में किसी भी तरह का भय नहीं रहता है। इससे मन में शांति, निश्चिंतता और परोपकार का जन्म होता है। व्यक्ति खुद के भीतर शक्ति और शांति को महसूस करता है।