हार स्वीकारना भी जरूरी!

मंगलवार, 27 सितम्बर 2011 (10:56 IST)
पिछले दिनों यूएस ओपन की तमाम खबरों के बीच अचानक एक खबर ने सोचने पर मजबूर कर दिया। अपने ताकतवर शॉट्‍स के लिए मशहूर अमेरिकी खिलाड़ी सेरेना विलियम्स कोर्ट पर ही आपा खो बैठीं और रैफरी से भी उलझ पड़ीं। वजह... उन्हें शिकस्त मिली थी और वो भी अपने से जूनियर खिलाड़ी के हाथों। बाद में हजारों डॉलर के जुर्माने के अलावा सेरेना के खेलने पर प्रतिबंध लगाने जैसी बातें भी हुईं, लेकिन यहां मुद्दा वह नहीं है। मुद्दा है हार की 'अपच' से जुड़ा।

आखिर क्यों जीत का नशा इतना तारी हो जाता है कि फिर सपने में भी हार को देखना दिल और दिमाग को गवारा नहीं करता? यह शाश्वत सत्य है कि विजेता एक ही होना है, फिर भी पराजय को लेकर मनुष्य सहज नहीं हो पाता। हार का दुख, पराजित होने की पीड़ा मनुष्य को अंदर तक तोड़कर रख देती है। खासतौर पर शिखर पर पहुंचकर तो वह यह सोचना भी नहीं चाहता कि कभी वह इस स्थान से अपदस्थ होगा या कि कभी हार भी उसके नाम के साथ जुड़ सकती है, जबकि बिना हार के न तो जीत का मजा लिया जा सकता है न ही सफलता की मिठास का आनंद उठाया जा सकता है। अपने समय में प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचे महान सफल लोगों की जीवनी पढ़िए। वे सब कभी न कभी हार के रास्ते से गुजरे हैं और इसी बात ने उन्हें आगे बढ़ते रहने को प्रेरित किया।

हार से भी एक नया रास्ता निकलता है
एक छोटे से बच्चे से लेकर बड़े-बुजुर्ग तक हार से हर कोई डर सकता है। फिर यह रिजल्ट के आने के पहले का हो या फिर घर की बेटी के 'इंटरकास्ट' शादी कर लेने का या फिर ऑफिस में किसी सहयोगी के खुद से आगे निकल जाने का। इस डर को मन में पालने वाला कभी भी सहज नहीं रह पाता। उसे हमेशा इस बात का खतरा दिखाई देता है कि वह जल्द ही पराजय का शिकार बन जाएगा।

उसे यह डर समाज, परिवार और अपने परिवेश में कहीं से भी मिल सकता है और फिर वह ताउम्र इसे सिर पर लादकर चलता है। जरा सोचिए कि यदि राइट बंधु, आइंस्टीन, मैडम क्यूरी, बिल गेट्‍स, नारायण मूर्ति आदि अपने पहले कदम की असफलता के बाद आगे बढ़ने का निर्णय ही टाल देते तो क्या आज उनके नाम दुनिया को मालूम भी होते...? यदि बचपन से बच्चे के मन में यह बात डाली जाए कि वह केवल अपने कार्य को पूरी निष्ठा के साथ करने, अपनी दक्षता को मांजते रहने और खुद को अपडेट रखने का लक्ष्य लेकर चले तो कभी भी वह निराश नहीं होगा, क्योंकि उसे कार्य के परिणाम की उत्सुकता तो होगी, लेकिन उसमें असफल होने का भय नहीं सताएगा।

इस सबके बावजूद यदि कभी वह किसी वजह से नकारात्मक परिणाम भी पाता है तो भी असफलता से सीख लेकर उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देना ज्यादा उचित होगा बजाय सफलता के तयशुदा पैमाने पर उसे आंकने के।

शोहरत की बुलंदियों से नीचे गिरने का डर
सेरेना ने जो भी प्रतिक्रिया दो वो पहली बार नहीं थी। सेलिब्रिटीज या रातभर में अचानक शोहरत पर जाने वाले लोग अक्सर इस भ्रम का शिकार हो जाते हैं कि वे अपराजेय हैं। इसके पीछे उन्हें दिन-रात घेरकर बैठे, चिकनी-चुपड़ी बातें करने वाले लोगों का हुजूम भी होता है, जो उन्हें हर पल केवल इस बात का यकीन दिलाता रहता है कि उनके जैसा न कोई है, न होगा।

यह भ्रम जब टूटता है तो सबसे पहले वही लोग साथ छोड़ते हैं जो इस भ्रम के बगीचे को खाद दिए जा रहे थे। ग्लैमर और शोहरत की जिंदगी जी रहा व्यक्ति उस समय यह भूल जाता है कि जब वह शिखर पर चढ़ा तब उसने भी किसी को वहां से हटाया ही होगा और यह क्रम तो अनवरत चलता रहेगा। इसे कोई रोक नहीं सकता। राजेश खन्ना जैसा सुपर स्टार इस बात का जीवंत उदाहरण है। जो यह मान ही नहीं पाए कि जीत की बारिश कभी बंद भी हो सकती है।

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