अतिसूक्ष्म, सूक्ष्म एवं लघु उद्योग क्षेत्र (भाग 4)
विश्व स्तर पर सूक्ष्म एवं लघु उद्योग (एमईएस क्षेत्र) को आर्थिक वृद्धि एवं
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औचित्यपूर्ण विकास को प्रोत्साहन देने के लिए अग्रगामी के रूप में स्वीकार किया गया है। एनईएस देश के संपूर्ण औद्योगिक अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। यह क्षेत्र निर्माण की दृष्टि से 39 प्रश एवं देश के कुल निर्यात के 33 प्रश हिस्से के लिए जिम्मेदार है।
* सरकार ने वैश्वीकरण की चुनौतियों का सामना करने के उद्देश्य से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग विकास अधिनियम 2006 लागू किया है।
* सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग विकास (जिसे पूर्व में लघु उद्योग विकास संगठन के नाम से जाना जाता था) की स्थापना 1954 में की गई थी और यह सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग के सतत एवं संगठित विकास के लिए शीर्ष निकाय के रूप में कार्य करता है।
* राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड 1955 में अपने अस्तित्व में आने के बाद अब तक सूक्ष्म एवं लघु उद्योग के लिए प्रोत्साहन, सहायता एवं पोषण के अपने मिशन के लिए कार्य कर रहा है।
विनिर्माण उद्योग के अंतर्गत * एक सूक्ष्म उद्योग वह है, जिसमें प्लांट एवं मशीनरी में निवेश 25 लाख रुपए से अधिक नहीं होता है। लघु उद्योग वह होता है, जहाँ प्लांट एवं मशीनरी में निवेश 25 लाख रुपए से अधिक, लेकिन 5 करोड़ रुपए से कम होता है।
* एक मध्यम उद्योग- जहाँ प्लांट एवं मशीनरी में निवेश 5 करोड़ रुपए से अधिक, लेकिन 10 करोड़ रुपए से कम होता है।
सेवा उद्यम इसमें सूक्ष्म उद्योग की परिभाषा यह होती है कि उपकरणों में निवेश 10 लाख रुपए से आगे नहीं बढ़ता है, वहीं लघु उद्योग में उपकरणों में निवेश 10 लाख रुपए से अधिक, लेकिन 2 करोड़ रुपए से अधिक नहीं व मध्यम उद्योग में उपकरणों में निवेश 2 करोड़ रुपए से अधिक, लेकिन 5 करोड़ रुपए से कम हो।
* सरकार ने एमएसएमई के लिए राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मक कार्यक्रम (एनएमसीपी) के तहत एक अखिल भारतीय अभियान आरंभ किया था, जिसका लक्ष्य इस क्षेत्र में उद्यमों की प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ाना है, ताकि ये वैश्विक एवं संगठित प्रतिस्पर्धा में टिक सकें और बेहतर प्रौद्योगिकी एवं कौशल के जरिए आगे बढ़ सकें।
* सरकार द्वारा एमएसई के विकास के लिए क्लस्टर विकास की रणनीति पर ध्यान दिया गया है, जिसके जरिए विभिन्न क्लस्टरों एवं उद्यमों को उद्यमी वातावरण उपलब्ध कराने से लेकर कौशल विकास तक के लाभ प्रदान किए जाते हैं। इन लाभों में ऋण उपलब्ध कराना, मार्केटिंग की सुविधा, तकनीकी सुधार एवं बेहतर डिजाइन एवं उत्पादों का विकास शामिल है। इसके अलावा आईएसओ व एचएसीसीपी प्रमाणन हासिल करने के लिए भी सहायता प्रदान की जाती है।
* अंतरराष्ट्रीय सहयोग योजना का प्रमुख उद्देश्य अति लघु, लघु एवं मझौले उद्यमों में प्रौद्योगिकी उन्नयन, उनका आधुनिकीकरण एवं उनके निर्यात को बढ़ाना है। इस योजना के अंतर्गत एमएसएमई के संघों एवं संगठनों को अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों एवं मेलों में भागीदारी की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।