और गिरता चला गया शेयर बाजार

-नृपेन्द्र गुप्ता
शेयर बाजार में कितनी उम्मीदें जगा गया था 2007। बाजार की ऊँची उड़ान से हर तरफ खुशी का आलम था। हर चेहरे पर मुस्कान थी, बाजार में चहल-पहल थी, जेब में पैसा और जुबाँ पर नैनो। शेयर बाजार तेज दौड़ते हुए रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बना रहा था। ऐसा लग रहा था कि मानो 2008 हर गम छीन लेगा चारों और खुशियाँ बिखरी होंगी, लेकिन 2008 के शुरू होते ही लोगों को ऐसा झटका लगा कि उम्मीदें तार-तार हो गईं और सातवें आसमान में उड़ रहा आम आदमी जमीं पर आ गया।

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साल की शुरुआत में तेजी से उड़ान भरते हुए 21 हजार के पार पहुँच गया। आम निवेशक हतप्रभ से बढ़ते बाजार को निहार रहे थे। अचानक रिलायंस पॉवर के आईपीओ के बाजार में आते ही स्थितियाँ बदल गईं। फलफूल रहे बाजार पर ऐसी नजर लगी कि गिरावट को रोकना मुश्किल हो गया। बीएसई के तमाम शेयर धड़ाधड़ नीचे गिरने लगे। रिलायंस इन्फ्रा, रिलायंस कम्युनिकेशन और भेल सहित डाइवर्सिफाइड माने जाने वाले प्रमुख शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गई। रिलायंस ‍इन्फ्रा का शेयर जनवरी में 2631 रुपए प्रति शेयर के भाव पर था, लेकिन यही दिसंबर में घटकर 618 रुपए प्रति शेयर पर जा पहुँचा।

बीच में बाजार में लेवालों ने अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की, मगर आर्थिक मंदी और तरलता के अभाव में बाजार ने लगातार गर्त देखा। सेंसेक्स गिरकर 6796 के स्तर तक पहुँच गया। निफ्टी जो जनवरी में 6200 के स्तर के ऊपर था, अक्टूबर में गिरकर 2252 के स्तर तक पहुँच गया। महँगाई, कच्चा तेल, अस्थिरता जैसे कारकों ने भी शेयर बाजार की दिशा ऋणात्मक बनाए रखी। रुपए में भी भारी गिरावट दर्ज की गई।

आर्थिक मंदी का असर : 1929 के बाद आई सबसे बड़ी आर्थिक मंदी से टूट चुके अमेरिकी शेयर बाजारों भी रसातल में चले गए। जैसे-जैसे अमेरिकी बाजार गिरते गए दुनियाभर के बाजारों में भी गिरावट का दौर शुरू हो गया। डाउ जोंस, नैस्डेक, निक्केई, हेंगसेंग, कॉस्पी सहित दुनिया के तमाम बाजारों ‍ने फिसलन के नित नए रिकॉर्ड बनाए। कई बड़ी ब्रोकरेज फर्मों को अपने कर्मचारियों को हटाना पड़ा। सेंसेक्स में इस वर्ष 58.3 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले बाजारों में भारत शामिल है। तमाम बड़े राष्ट्रों ने आर्थिक पैकेज की घोषणा कर आर्थिक मंदी को रोकने का प्रयास किया। इसका असर 2009 में दिखाई देगा।

आईपीओ : आईपीओ बाजार के लिए यह वर्ष बेहद खराब रहा। भारतीय शेयर बाजार को डुबाने का इलजाम भी रिलायंस पॉवर के आईपीओं पर लगा। रिलायंस के इस आईपीओ के लिए रिकॉर्ड आवेदन आए, मगर बाजार में आते ही यह धराशायी हो गया। लोगों को इस आईपीओ से बेहद उम्मीद थी, जो पलभर में धूल में मिल गई। निवेशकों को बोनस शेयर देने की योजना भी रिलायंस के इस आईपीओ को सहारा देने में विफल रही। रिलायंस का हश्र देखकर कई दिग्गजों ने अपने आईपीओ को बाजार में लाने का फैसला टाल दिया।

विदेशी निवेशक : पिछले साल विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार में जमकर खरीदी की। उनके आने की खबर मात्र से यहाँ के शेयर बाजार में रिकॉर्ड बना रहे थे। मगर इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। लगातार बाजार गिरने से विदेशी निवेशकों ने जमकर शॉर्ट सेलिंग की। उनके पैसा निकालने की खबर ने भी बाजार का रुख बदल दिया। तरलता की तंगी ने भी उन्हें भारतीय बाजार से दूरी बनाने के लिए मजबूर किया और निवेशक अर्श से फर्श पर आ गए। दुनिया की दो बड़ी कंपनियाँ लेहमैन ब्रदर्स और मैरिल लिंच के डूबने की खबर ने भी विदेशी निवेशकों में खलबली मचा दी। बाजार में रुपया ‍घटकर निम्नतम स्तर पर आ गया और इसके चलते बाजार से बड़ी मात्रा में विदेशी निवेश निकल गया।

म्यूचुअल फंड : शेयर बाजार में जोखिम को देखते हुए आम आदमी ने पिछले कुछ सालों में म्यूचुअल फंड्स के जरिये बाजार में जमकर निवेश किया। कम जोखिम में बेहतर रिटर्न का दावा करने वाले इन फंड्स की भी गिरते बाजार में हवा निकल गई। जब बाजार 15000 हजार से 20000 की ओर बढ़ रहा था तब फंड्स के जरिये बाजार में निवेश करने वाले निवेशकों को इस वर्ष भारी नुकसान उठाना पड़ा, कुछ फंड्स में तो लोगों को 70 प्रतिशत तक का घाटा उठाना पड़ा।

अधिकांश निवेशकों ने अपनी एसआईपी रोक दी। टैक्स सेविंग्स के लिए भी लोगों ने पिछले सालों में लगाया पैसा निकालकर फिर लगा दिया। कुछ ने अपनी पूँजी को लिक्विड मार्केट में रख दिया। म्यूचुअल फंड्स में हुई भारी बिकवाली से घबराए सेबी ने हड़बड़ी में क्लोज एंडेड फंड्स से पैसे निकालने वाले निवेशकों को हताश करने के लिए कड़े नियम बनाए, जिसका उन्हें फायदा भी हुआ।

बैंकिग, पॉवर, रियल एस्टेट : पिछला साल इन सेक्टरों के लिए जितना अच्छा था, यह साल उतना ही बेकार रहा। इन तीनों सेक्टरों के शेयरों में पिछले वर्ष भारी लिवाली हुई थी, लेकिन विकास की दौड़ में सबसे आगे चल रहे इन सेक्टरों पर मंदी की सर्वाधिक मार पड़ी और ये जमीन पर आ गए। रिजर्व बैंक द्वारा होम लोन की दर घटाने के बाद रियल एस्टेट के शेयरों में कुछ खरीदी देखी गई। रेपो दर और रिवर्स रेपो दर में बदलाव कर बैंकिग सेक्टर को भी राहत प्रदान की गई।

ठगे से रह गए आम निवेशक : जिस तेजी से बाजार ऊपर चढ़ा था, उतनी ही तेजी से बाजार में गिरावट दर्ज की गई। बाजार की खुशियों में शामिल होने आए छोटे ‍निवेशकों को तो कुछ समझ में ही नहीं आया। वे जब तक अपना पैसा निकालने के बारे में सोचते उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक चुकी थी। इन्ट्रा-डे करने वाले निवेशकों को शेयर होल्ड करने पड़े। कई उपभोक्ताओं को इतना बड़ा झटका लगा कि सालों तक वे इससे उबर नहीं पाएँगे।

  निवेशकों का जो विश्वास 2007 में मिला था, 2008 में उसे कायम नहीं रखा जा सका। लोगों ने पैसा उधार लेकर यहाँ लगाया पर ज्यादा की उम्मीद में जो था उससे भी हाथ धो बैठे।      
छोटी कंपनियों में पैसा लगाने वालो को तो नुकसान हुआ ही ब्लू चिप शेयरों में पैसा लगाने वाले भी इससे नहीं बच सके। मनी प्लस जैसी योजनाओं के जरिये लाखों रुपए कमाने का लालच देने वाली बीमा कंपनियों को भी भारी नुकसान हुआ। इसमें जोखिम तो था पर पिछले साल जिस तेजी से बाजार बड़ा था, कंपनियों ने लोगों को जो हवाई महल ‍दिखाया था, जो इस साल टूट गया। दिसंबर में सत्यम और मैटास के बीच हुई डील ने निवेशकों को परेशान किया पर निवेशको के विरोध के बाद यह डील रद्द कर दी गई।

फिर बढ़ी उम्मीदें : प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री, रिजर्व बैंक और सेबी के लगातार प्रयासों की मदद से सरकार ने ‍‍‍20 दिसंबर तक बाजार को संभालने का भरसक प्रयास किया और सेंसेक्स बढ़कर 10000 के आँकड़े को पार कर गया। निफ्टी ने भी 3000 का आँकड़ा पार कर लिया। सरकारी कर्मचारियों की वेतनवृद्धि ने भी इस बाजार में पैसे को बढ़ाया।

कुल मिलाकर बाजार के लिए यह साल बहुत बुरा रहा। निवेशकों का जो विश्वास 2007 में मिला था, 2008 में उसे कायम नहीं रखा जा सका। लोगों ने पैसा उधार लेकर यहाँ लगाया पर ज्यादा की उम्मीद में जो था उससे भी हाथ धो बैठे। उम्मीद है कि 2009 निवेशकों के लिए बेहतर होगा। लोकसभा चुनावों के बाद सकारात्मक खबरें बाजार में बुल का राज लाएँगी।