साहित्य जगत की पिछले साल की घटनाओं -हलचलों से बात शुरू की जाए तो साहित्य के सबसे बड़े पुरस्कार नोबेल पुरस्कार से शुरुआत की जा सकती है। इस बार यह पुरस्कार फ्राँसीसी लेखक ज्याँ मेरी गुस्ताव क्लेजियो को। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा है कि कहीं भी टेबल पर बैठना जिंदगी में मेरा सबसे बड़ा आनंद है। मेरा कोई आफिस नहीं, मैं कहीं भी लिख सकता हूँ। मैं टेबल पर कागज रखता हूँ और यात्रा शुरू हो जाती है। सच में लिखना यात्रा करने जैसा है। यह अपने आप से निकलकर दूसरा जीवन जीना है, शायद बेहतर जीवन।
जाहिर है यह ऐसा लेखक है जिसने जब चाहा जैसा चाहा लिखा और इसलिए उन्होंने खूब लिखा। बहुत सारे विषयों पर लिखा। वे अपने लिखे में कहते हैं कि यूरोप और अमेरिका ने अन्य संस्कृतियों को खंडित किया है। यूरोप के अधिग्रहण से ये संस्कृतियाँ खंडित हुई हैं। यूरोप और अमेरिका को उन लोगों का ऋणी होना चाहिए जिन्होंने उपनिवेशकाल में समर्पण किया था। क्लेजियो ने पहली बार उस समय विश्व का ध्यान खींचा जब उन्होंने मात्र तेईस वर्ष की उम्र में द इंटरोगेशन उपन्यास लिखा। इसमें उन्होंने एक युवा की मानसिक बीमारी विचलित कर देने वाला वर्णन किया है। इसके बाद उन्होंने डेजर्ट उपन्यास लिखा और अब उनका एक अन्य उपन्यास कोरस आफ हंगर चर्चा में है।
इस बीच हमसे दो बड़े साहित्यकार बिछड़ गए। एक वेणुगोपाल और दूसरे प्रभा खेतान। वेणुगोपाल ने तो एक पूरा संघर्षमय जीवन बिताया और उनकी कविता में दुनिया की लहुलूहान आत्मा झिलमिलाती है।
और यह भी कितना सुखद है कि अब कला की तरह ही भारतीय साहित्य और लेखकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान मिल रहा है। इसमें झुम्पा लाहिड़ी, अरुंधती राय, सलमान रुश्दी के बाद इस साल के बुकर प्राइज विजेता अरविंद अडिगा हैं। जिन्हें उनके पहले उपन्यास व्हाइट टाइगर को यह पुरस्कार मिला है। अडिगा ने इस उपन्यास में तमाम विकास और चकाचौंध के बीच एक आम आदमी की सामने आनेवाली तमाम समस्याओं को अपने रोचक पात्रों के माध्यम से अभिव्यक्त करने की कोशिश की है।
जहाँ तक भारतीय भाषाओं का सवाल है कश्मीरी कवि रहमान राही को उनके योगदान के लिए भारतीय ज्ञानपीठ का पुरस्कार दिया गया है। यह कहना जरूरी है कि वे पहले ऐसे कश्मीरी कवि हैं जिनकी कविताओं के जरिए कश्मीरी साहित्य पर ध्यान दिया गया। उन्हें यह पुरस्कार मिलना बताता है कि अब कश्मीरी कविता की उपेक्षा नहीं की जा सकती। उन्होंने अपनी कविता में कश्मीरियों के दुःख-दर्द और अंतर्द्वद्वों को बहुत सही सहज भाषा में आधुनिक संवेदना के साथ व्यक्त किया है। उनके बारे में पहले लिख चुका हूँ कि यह स्वाभाविक ही था कि उनकी कविता में कश्मीर की खूबसूरती के बनस्बित वहाँ का अँधेरा ज्यादा है।
पिछले कई सालों से कश्मीर के जो हालात बने हैं, वहाँ जो हिंसा और संघर्ष है उसकी एक साफ तस्वीर अपने काव्यात्मक रूप में उनकी कविता में मौजूद है। मिर्जा गालिब और मीर तकी मीर से लेकर रूसी कवियों से प्रभावित रही उनकी कविता में कश्मीरियों का वह द्वंद्व भी साफ देखा जा सकता है जिसमें वे कश्मीरी और राष्ट्रीयता के बीच अपनी पहचान के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।
उनके साथ ही हिंदी के वरिष्ठ कवि कुँवरनारायण को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया है। यह उल्लेखनीय है कि इसके पहले उन्हें इटली का एक अंतराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है। उनकी कविता बहुत ही धैर्य और संयम के साथ अपने सवालों से जूझती है और अपने जीवन विवेक का परिचय देती है। वे समकालीनता को किसी मिथकीय और ऐतिहासिक चेतना से स्पर्श देते हैं अपने समकालीन यर्थार्थ पूरे काव्यात्मक कौशल से अभिव्यक्त करते हैं। आत्मजयी और हाल ही में प्रकाशित उनके नए काव्य संग्रह वाजश्रवा के बहाने उन्होंने बताया कि उनमें एक क्लॉसीकीय संयम भी है।
इस बीच हमसे दो बड़े साहित्यकार बिछड़ गए। एक वेणुगोपाल और दूसरे प्रभा खेतान। वेणुगोपाल ने तो एक पूरा संघर्षमय जीवन बिताया और उनकी कविता में दुनिया की लहुलूहान आत्मा झिलमिलाती है। यह बात हालाँकि पूरे साहित्य के बारे में सच है लेकिन इसका एक प्रखर और ज्यादा चमकीला रूप वेणुगोपाल की कविता में मिलता है। प्रभा खेतान ने कुछ बेहतरीन उपन्यास लिखे और नारी मन को कोने-अंधेरों का आवाज दी। उनका सबसे बड़ा योगदान यह भी है कि उन्होंने फ्रांस की लेखिका सुमोन द बोउआर की किताब सेकंड सेक्स का अनुवाद स्त्री उपेक्षिता के नाम से किया।
इसके अलावा कहानी में उमाशंकर चौधरी को रमाकांत स्मृति पुरस्कार, कवयित्री अनामिका को उनके कविता संग्रह खुरदरी हथेलियों के लिए केदार सम्मान दिया गया। जबकि दिग्गज कथाकार और उपन्यासकार कृष्ण बलदेव वैद को अयोध्याप्रसाद खत्री स्मृति सम्मान दिया गया। इसके अलावा युवा कवि निशांत को कविता के लिए भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कहने की जरूरत नहीं कि इनके साहित्य में दुनिया की लहुलूहान आत्मा को देखा जा सकता है।