बदहाल हैं अवध के नवाबों के वंशज

बुधवार, 23 अप्रैल 2008 (14:45 IST)
एक समय लखनऊ में नवाबों की रईसी का यह आलम था कि वाजिद अलीशाह के दरबार की मौसिकी की गूँज और कारिन्दों की फौज पर दूसरे रश्क किया करते थे, लेकिन आज हालत यह है कि नवाबों के वंशज कहीं चाय बेच रहे हैं, तो कहीं साइकिल रिक्शा के पंचर लगाकर आजीविका जुटा रहे हैं।

अवध के नवाबों की रईसी के किस्से जमाने भर में मशहूर हैं, लेकिन आज जमीनी हकीकत यह है, कि उनके वंशज अपनी आजीविका चलाने के लिए दर दर की ठोकरें खा रहे हैं।

अवध में 1827 से 1837 तक बादशाह नसीरुद्दीन हैदर का बोलबाला था और उनकी नवाबी के किस्से चारों ओर बड़े चाव से कहे सुने जाते थे लेकिन आज उनकी छठी पीढ़ी के वंशज शहजादे नसीर और मोइन चाय बेच रहे हैं।

शहजादे नसीर मायूसी के साथ बताते हैं अब वो बात कहाँ, मैं चाय बेचकर रोजाना 200 से 300 रुपए के बीच कमा लेता हूँ, लेकिन इस महँगाई में तो चाय पीने वाले भी कम हो गए हैं।

सन 1797 में अपनी शानो शौकत का झंडा बुलंद करने वाले सदात अली खान के वंशज खैरात खाने में गुजर बसर करने को मजबूर हैं। इनकी महिलएँ यहीं जरदोजी का काम कर भरण पोषण करती हैं।

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