बढ़ती योजनाएँ, घटते टाइगर

भारत में पहले ही संकट में पड़े टाइगर की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। सिकुड़ते रहवास के साथ इनसानों द्वारा लालच या बदले की भावना ने इस राजसी संकटग्रस्त प्राणी को विलुप्ती की कगार पर ला खड़ा किया है। राजस्थान के विश्व प्रसिद्द टाइगर रिजर्व 'सरिस्का' में बाघों के खत्म हो जाने के बाद राजस्थान के ही एक अन्य टाइगर रिजर्व रणथंभौर से पिछले दो सालों में कुल पाँच बाघ सरिस्का को आबाद करने के लिए इस रिजर्व में लाए गए थे। पहले यहाँ एक बाघ फिर अगले कुछ चरणों में चार और बाघ लाए गए, जिनमें एक बाघ और तीन मादा बाघ शामिल है। लोकेशन ट्रेस करने और इनकी सुरक्षा के लिए बाघों की गर्दनों पर रेडियो कॉलर भी लगाए गए थे।

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पर इस योजना को एक जबर्दस्त झटका तब लगा, जब सबसे पहले यहाँ लाए गए एक बाघ एसटी-1 का शव मिला। पोस्टमार्टम से पता चला कि इस बाघ की मौत जहर से हुई। इसके अलावा एएस टी 4 नाम का एक और बाघ पिछले एक सप्ताह से लापता है। रेडियो कॉलर से भी इसकी लोकेशन अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाई है।

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आबादी से आफत : दरअसल सरिस्का टाइगर रिजर्व पर बड़ा मानवीय दबाव है। अरावली पर्वतमाला के खनिज बहुल इलाके में बसे होने से सरिस्का के बफर जोन और उसके आस-पास दो दर्जन से ज्यादा गाँव आबाद हैं। खनिज माफिया इस क्षेत्र में काफी सक्रिय है और जंगल से पटे हुए पहाड़ों से खनन यहाँ कमाई का एक बड़ा जरिया है। इसके अलावा इस क्षेत्र में आने वाले थानागाजी बाइपास, रिंगरोड एवं सड़कों से भी वन्यजीवन को लगातार खतरा बना रहता है। वाहनों की आवाजाही से भी कई बार हिरण व अन्य वन्यपशु इनकी चपेट में आकर दम तोड़ चुके हैं।
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प्रशासनिक चूक : पर इन सभी के लिए जिम्मेदार सरिस्का प्रशासन भी है, सूत्रों के मुताबिक सरिस्का में पिछले छह महीनों से बाघों की रोजाना मॉनिटरिंग नहीं हो रही थी, जबकि नियम यह कहते हैं कि विस्थापित बाघों की चौबीसों घंटे मॉनिटरिंग आवश्यक है। सरिस्का में वन विभाग के पास इस काम के लिए पर्याप्त स्टाफ भी नहीं है।

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पर्यटन की परेशानी : वन्यक्षेत्रों में होने वाले पर्यटन का भी बड़ा असर देखने को मिला है। आमतौर पर शांत रहने वाले टाइगर रिजर्व में पिछले एक दशक में बड़ी संख्या में रिसॉर्ट और होटल खुल गए है, जो अपने अतिथियों को किसी कीमत पर भी टाइगर दिखाने के लिए तैयार रहते हैं। अब तो इन रिसोर्ट में शादियों के आयोजन भी होने लगे हैं।

उदाहरण के तौर पर ब्रिटिश कॉमेडियन रसैल ब्रॉड और पॉप सिंगर कैटी पैरी ने अपनी शादी रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान स्थित एक रिसॉर्ट में की थी, जिसमें काफी लोगों ने शिरकत की थी। इस बात का पता चलने पर काफी विवाद भी हुआ था।
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इस प्रवृति को आगे नहीं बढ़ने देना चाहिए, नहीं तो इको टूरिज्म के नाम पर वन्यजीवन को अपूरणीय क्षति होती रहेगी। उजाड़ हो चुके सरिस्का में टाइगर विस्थापन के बाद वहाँ के पर्यटन में 25 से 30% की वृद्धि हुई है। पर्यटन की प्रतिस्पर्धा के चलते कुछ लोग लाभ कमाने के लिए दूसरे वन क्षेत्रों का नुकसान करने से भी नहीं चूकते।

भीड़ से भयभीत : बढ़ती भीड़ और शोरगुल बाघों व अन्य वन्य प्राणियों को सुरक्षित क्षेत्र से पलायन करने पर विवश कर देती है। शांत क्षेत्र की तलाश में बाघ दूर-दूर तक निकल जाते हैं पर विडंबना है कि भारत में अभी तक वन्यप्राणियों के एक वन क्षेत्र से दूसरे वन क्षेत्र में जाने के लिए सुरक्षित गलियारे नहीं हैं। अपने जंगल से दूर निकल चुका भटका बाघ जब मानवबहुल इलाकों में जाता है तो इसके परिणाम भयानक ही होते हैं, जिसकी परिणिति अकसर बाघों की मौत के रुप में सामने आती है।

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जिम्मेदारों के जवाब : बाघ की मौत के बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने सरिस्का का दौरा करने बाद खुद को भी इस हादसे के लिए जिम्मेवार मानते हुए इसे सामूहिक विफलता बताया और कहा कि इस हादसे के बावजूद बाघों के सरिस्का में पुनर्वास को रोका नहीं जाएगा।

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राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस हादसे पर दु:ख जताते हुए एक जाँच समिति बनाने की घोषणा की है और कहा कि बाघ की मौत से सरिस्का का विकास अवरुद्ध नहीं हो, इसके लिए जल्द ही एक टॉस्क फोर्स का गठन किया जाएगा, जिसमें वन अधिकारियों, प्रशासन, खनन सहित अन्य विभागों के अधिकारियों सहित स्थानीय ग्रामीणों को शामिल किया जाएगा। टॉस्क फोर्स सरिस्का के विकास के प्रस्ताव तैयार करेगी। जाँच समिति सरिस्का अभयारण्य में बसे ग्रामीणों को विश्वास में लेते हुए उनके पुनर्वास के बारे में भी रिपोर्ट देगी।

लेकिन सवाल वही है कि इतनी योजनाओं और घोषणाओं के बाद भी आखिर लगातार बाघों की संख्या कम क्यों होती जा रही है? इस साल 5 जनवरी से 14 नवंबर तक पूरे भारत में उत्तराखंड से लेकर केरल में कुल 31 बाघों की मौत हो चुकी है। जब तक सभी टाइगर रिजर्व व राष्ट्रीय उद्यानों को मानवीय गतिविधियों से पूरी तरह मुक्त नहीं किया जाएगा यह समस्या खत्म नहीं होने वाली, या फिर यह समस्या बाघों के खत्म होने के साथ ही खत्म होगी।

सरिस्का एक नजर : सुरम्य इलाके में स्थित सरिस्का में कँटीली झाड़ियों के जंगल, चट्टानें और बीहड़ से लेकर उपजाऊ जमीन और हरे-भरे जंगल भी हैं।

इनमें से प्रत्येक तरह के क्षेत्र में विभिन्न किस्म के प्राणी और पशु-पक्षी पाए जाते हैं। राजस्थान में दो नेशनल पार्क और एक दर्जन से अधिक अभयारण्य तथा दो संरक्षित क्षेत्र हैं। पुरानी अरावली पर्वतमाला के सूखे जंगलों में सरिस्का नेशनल पार्क और टाइगर रिजर्व स्थित है।

इस पार्क में मुख्य रूप से बाघ, तेंदुआ, लकड़बग्घा, जंगली बिल्ली, साही, साँभर, चिंकारा, नीलगाय और चार सींगों वाले बारहसिंगे पाए जाते हैं। वर्ष 1955 में इसे एक अभयारण्य घोषित किया गया था और 1979 में इसे प्रोजेक्ट टाइगर के अंतर्गत 'टाइगर रिजर्व' बनाया गया था।

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