* डिप्रेशन में ले जानें के लिए कुंडली के कौन-से ग्रह है जिम्मेदार, जानिए
वर्तमान वैश्विक प्रतिद्वंद्विता वाले युग में सुख-शांतिपूर्वक जीवन-यापन करना एक स्वप्न की भांति है। इस भागदौड़भरी जीवनचर्या में मनुष्य के जीवन में समय-समय पर ऐसे संघर्ष व कठिनाइयां आ जाती हैं जिनसे वह अपना सुख-चैन खोकर विषाद से भर उठता है और अवसादग्रस्त हो जाता है।
अवसाद यानी डिप्रेशन, वैसे तो जीवन में होने वाली घटनाएं व कठिनाइयां इसके लिए सर्वाधिक उत्तरदायी होती हैं किंतु एक अवसादग्रस्त व्यक्ति के लिए उसकी जन्म पत्रिका के ग्रह भी इसमें अहम भूमिका अदा करते हैं।
आपने अक्सर देखा होगा कि कुछ व्यक्ति कठिन संघर्षों के बावजूद हंसते-मुस्कुराते व निश्चिंत दिखाई देते हैं वहीं कुछ तनिक-सी उलझन व परेशानी में आत्महत्या जैसे कदम उठाने का विचार करने लगते हैं या अपने अवसाद को दूर करने के लिए व्यसनों के जाल में फंसकर और अधिक अवसादग्रस्त हो जाते हैं। आइए जानते हैं कि वे कौन-सी ग्रह स्थितियां होती हैं, जो व्यक्ति को अवसादग्रस्त करने में सहायक होती हैं।
जातक के अवसाद या डिप्रेशन के लिए प्रमुख रूप से जो ग्रह उत्तरदायी होते हैं उनमें राहु प्रमुख है, उसके बाद शनि की भूमिका होती है। चन्द्र की स्थिति भी इस योग के लिए महत्वपूर्ण होती है। राहु मुख्य रूप से नकारात्मक चिंतन देता है वहीं शनि अत्यधिक चिंतन का कारक होता है।
चन्द्रमा मन का कारक होता है। जन्म पत्रिका का प्रथम भाव मस्तिष्क का परिचायक होता है। ऐसे में यदि लग्नेश अशुभ भावों में स्थित हो या नीचराशिस्थ हो, चन्द्रमा अशुभ भावस्थ हो या नीचराशिस्थ हो और लग्न, लग्नेश या चन्द्र पर राहु या शनि का प्रभाव हो और इन ग्रहों पर किसी शुभ ग्रहों का प्रभाव न हो तो इस प्रकार की ग्रह स्थिति जातक को अवसादग्रस्त करने में सहायक होती है।
ऐसी ग्रह स्थितियों वाला जातक अपने जीवन में थोड़ी-सी परेशानी आने पर भी अवसादग्रस्त हो सकता है। यदि जन्म पत्रिका में लग्न या सप्तम भाव में राहु स्थित हो और चन्द्र नीचराशिस्थ हो तब भी व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार होता है। कभी-कभी जातक माइग्रेन या उन्माद रोग का शिकार भी हो जाता है। इस योग के दुष्प्रभावों से बचने के लिए अनिष्ट ग्रहों की विधिवत शांति करवाना लाभदायक रहता है।