व्यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाने वाला 'पुष्य नक्षत्र' रविवार को खामोशी से निकल गया। पुष्य नक्षत्र कब आया और कब चला गया? व्यापारी वर्ग में इसे लेकर किसी तरह की चर्चा नहीं हुई। व्यापारियों व ग्राहकों को अब दीपवाली पूर्व पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र तथा 8 अक्टूबर से शुरू होने वाली नवरात्रि का भी बेसब्री से इंतजार है। पितृ-पक्ष को समाप्त होने में महज कुछ ही दिन शेष हैं।
पितृ-पक्ष पर खरीदी नहीं किए जाने की मान्यता के चलते व्यापारियों ने रविवार को पड़े पुष्य नक्षत्र पर ध्यान नहीं दिया। वहीं व्यापारिक हलचल न होने का एक और कारण हमेशा की तरह रविवार को मार्केट का बंद रहना भी रहा, इसी के चलते व्यापारियों ने इस नक्षत्र को भुनाना ठीक नहीं समझा।
कई दिन पहले होता है मुहूर्त का इंतजार : दीपावाली पूर्व पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र पर खरीदी करने बाजार में ग्राहकों की भीड़ उमड़ पड़ती है। सराफा मार्केट में सड़क पर चलने को वहीं दुकानों में पैर रखने को भी जगह नहीं बचती। खरीदी के प्रति लोगों में काफी उत्साह होता है।
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इस नक्षत्र पर खरीदी करने के लिए लोग कई दिन पूर्व ही इंतजार करते हैं। व्यापारी वर्ग के लोग ज्योतिषियों से जानकारी लेकर इस नक्षत्र का खूब प्रचार-प्रसार करते हैं, ताकि ग्राहक इस दिन खरीददारी करने अवश्य आएँ। अफसोस कि इस बार पितर पक्ष में रविवार को पुष्य नक्षत्र आया। इस पर किसी तरह का प्रचार-प्रसार व शोर-शराबा नहीं हुआ।
पितृ-पक्ष में नहीं दिया महत्व : पुजारी पं. मनोज शुक्ला कहते हैं कि ग्राहकों को पुष्य नक्षत्र के बारे में आजकल ज्योतिषियों से नहीं, बल्कि व्यापारियों से जानकारी प्राप्त होने लगी है। पुष्य नक्षत्र में सोना-चाँदी, ताँबा, पीतल आदि खरीदने से घर में संपन्नता बढ़ती है। शुभ मुहूर्त में खरीदी करने की मान्यता के चलते लोग पुष्य नक्षत्र का इंतजार करते हैं।
पुष्य नक्षत्र प्रतिमाह पड़ता है। रविवार को पड़ने वाला रवि पुष्य और गुरुवार को पड़ने वाला गुरु पुष्य नक्षत्र का विशेष महत्व माना जाता है। इस मुहूर्त में खरीददारी के साथ-साथ सिद्धि साधना भी की जाती है। रविवार को सूर्योदय से लेकर शाम 5.48 तक रवि पुष्य नक्षत्र का मुहूर्त था, लेकिन पितृ-पक्ष में खरीदी नहीं किए जाने की मान्यता के चलते इस पर ध्यान नहीं दिया गया।