कन्या-चारित्रिक विशेषताएँ
चरित्र के प्रारंभिक लक्षण- अत्यधिक विशिष्टता, तंग करने वाला स्वभाव, स्वयं के तथा दूसरों के प्रति समालोचक, तुच्छ बातों को अधिक महत्व देना, वस्तु की प्राप्ति के लिए स्रोत तक पहुंचने में असफल, शुष्क स्वभाव का तथा प्यार न करने वाला, भौतिक वस्तुओं को अत्यधिक महत्व देना, शुद्धिकरण, स्वच्छता तथा स्वास्थ्य विज्ञान के प्रति बिना कारण को समझे आवेशित होना। चरित्र के उत्तरकालीन लक्षण- विश्लेषक, पक्षपातपूर्ण, एक दक्ष मिस्त्री होना, एक दक्ष शिल्पकार होना, विस्तृत कार्य में निपुण होना, भौतिक विषयों में तार्किक बुद्धि का प्रयोग करना, शारीरिक रचना के उद्देश्य से भिज्ञ होना, सुनिश्चित तथा यथार्थ होना, प्रेम का शुभारंभ। अंतःकरण के लक्षण- शुद्धिकरण तथा पूर्णता के उद्देश्यों से भिज्ञ होना, उच्च कोटि के सामर्थ्य की प्राप्ति के लिए व्यक्तित्व का चेतनावस्था में सुधार करना, अंतरात्मा की उपस्थिति की भिज्ञता होने का आरंभ, भौतिक, भौतिकेतर तथा मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखना ताकि अंतरात्मा स्वयं की अभिव्यक्ति करना आरंभ कर सके, संपूर्ण आत्मिक जीवन के लिए जीवन के अनुभवों का सचेतन आत्मसात करना, अंतरात्मा के विकास के लिए स्वास्थ्यकर तथा अस्वास्थ्यकर के मध्य विभेद करना, शरीर के पालन-पोषण द्वारा अंतरात्मा का सचेतन पालन-पोषण करना, बुद्धिमत्ता की उच्च क्षमता के साथ मस्तिष्क का सम्मिश्रण करना, भौतिक वस्तुओं के परिष्करण के लिए तकनीकी तथा शिल्पकारी की दक्षता का उपयोग करना ताकि उच्चतर सामर्थ्य बेहतर रूप से संयोजित हो सके।