jitendra

सिनेमा की यह अद्भुत भाषा गढ़ने वाले कोई और नहीं, बर्गमैन थे। गत सदी के सबसे महान फिल्‍मकार इंगमार बर्गमैन, जो हालाँकि स्‍वीडन के रहने वाले थे, लेकिन जिनके...
जे. आर. डी. टाटा के बारे में बहुत-सी कहानियाँ सुनाई जाती हैं। मुंबई में फ्लोरा फाउंटेन के पास दलाल स्‍ट्रीट पर टाटा हाउस है, मुंबई में टाटा का हेड ऑफिस।...
15 अगस्‍त, 1947 को आधी रात के वक्‍त, जब पूरा देश गहरी नींद में सोया हुआ था, वर्षों की गुलामी के घने कुहरे को भेदती हुई रोशनी की एक लकीर दाखिल हुई और वर्षों...
आज से चार सौ साल पूर्व सोलहवीं शताब्‍दी में मुगल सम्राट अकबर के जमाने में जन्‍मे कवि और दार्शनिक तुलसीदास की रचनाएँ आज चार सदी बाद भी भारतीय समाज के अंतर्मन...
कुर्तुल-ऐन-हैदर की उम्र तब मात्र 32 वर्ष थी, जब उन्‍होंने ‘आग का दरिया’ लिखा था। ‘आग का दरिया’ सचमुच आग का दरिया ही था। इस उपन्‍यास ने ऐसी आग लगाई थी,...
कुछ बातें किताबों में लिखी जाती हैं और कुछ जीवन का यथार्थ होता है। जीवन का यथार्थ, जो आदर्श से नहीं, मनी से संचालित है। आज हम एक ऐसे ब्‍लॉग के बारे में...
एक ही परिवार के इतिहास में वतनपरस्‍ती और वतन की खिलाफत के कैसे अंतर्विरोधी उदाहरण हो सकते हैं। अमीचंद का नाम इतिहास में अँग्रेजों के साथ मिलकर बंगाल के...
9 जनवरी, 1908 को फ्राँस के एक मध्यमवर्गीय कैथलिक परिवार में सिमोन द बोवुआर का जन्म हुआ। उनके नाना एक नामी बैंकर थे। मगर हालात ऐसे बदले कि उनका धनाढ्‍य...
आज की ब्‍लॉग-चर्चा रिजेक्‍ट माल पर है। जो हर जगह से रिजेक्‍टेड है, पॉपुलर मीडिया में जिसके लिए जगह नहीं है, उस सारे रिजेक्‍ट माल के लिए इस ब्‍लॉग पर जगह...
हिन्दी ब्‍लॉग का संसार जैसे-जैसे व्‍यापक हो रहा है, निजी ब्‍लॉगों के साथ-साथ कम्‍यूनिटी ब्‍लॉग यानी कि सामूहिक ब्‍लॉगों की संख्‍या भी बढ़ती जा रही है।...
‘ब्रम्‍ह सत्‍य जगत मिथ्‍या’ भारतीय‍हिंदू दर्शन का मूल तत्‍व है। ठोस भौतिक जगत में व्‍याप्‍त दुखों और अनाचारों का हल न खोजकर जगत को मिथ्‍या बताते हुए दुखों...
बदलते वक्‍त के साथ हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, तो ब्‍लॉग की दुनिया इससे अछूती कैसे रह सकती है। हालाँकि अनुपात तो यहाँ भी वैसा ही है,...
इस वर्ष की शुरुआत ही साहित्‍य के लिए अपूरणीय क्षति के साथ हुई है। अभी हम निर्मल वर्मा और भीष्‍म साहनी के दुख से उबरे भी नहीं थे कि कमलेश्‍वर ने भी हमें...
पिछले कुछ वर्षों में जैसे-जैसे जीवन और समाजगत स्थितियों में जटिलताएँ और पर्तें बढ़ी हैं, सिनेमा में भी ढेरों विविधतापूर्ण प्रयोग हो रहे हैं। पिछले कुछ...
आज से छ: साल पहले गुजरात दंगों के समय 12 रामभक्‍तों ने मिलकर जयश्री राम के नारे लगाते हुए एक औरत के साथ सामूहिक बलात्‍कार किया। उस समय उसके पेट में 6 माह...
आज ब्‍लॉग-चर्चा में हम जिस ब्लॉग को लेकर हाज़िर हुए हैं, वह कई मायनों में अब तक यहाँ चर्चित ब्लॉगों से भिन्‍न है। सबसे पहली बात तो यह कि ‘टूटी हुई बिखरी...
वैसे तो कहने को है कबाड़खाना, लेकिन ऐसा कबाड़ कि वहाँ घंटों रहने को जी चाहे। पेप्‍पोर, रद्दी पेप्‍पोर की गुहार लगाते ढेरों कबाड़ी हैं, इस कबाड़खाने में,...
कहने को तो गीत, कविता, कहानियों, मुहावरों और किंवदंतियों में ‘राजदुलारा, आँखों का तारा’ जैसी बातें ही मिलती हैं। राजदुलारी पर गीत भले बहुत न हों, लेकिन...
कला-साहित्य वैसे तो जीवन और समाज की ही अभिव्यक्ति हैं, लेकिन कला और वास्तविक जीवन में गहरा अंतर्विरोध भी है। दुनिया का तमाम साहित्य, संगीत, चित्र और अन्य...
1939 का वर्ष था। मुंबई के अँधेरी स्थित प्रकाश स्‍टूडियो में एक फिल्‍म की शूटिंग चल रही थी। निर्देशक थे, विजय भट्ट। 7 साल की एक बच्‍ची आज पहली बार कैमरे...