यह जीत है बिलकिस के फौलादी इरादों की

WDWD
आज से छ: साल पहले गुजरात दंगों के समय 12 तथाकथित रामभक्‍तों ने मिलकर नारे लगाते हुए एक औरत के साथ सामूहिक बलात्‍कार किया। उस समय उसके पेट में 6 माह का गर्भ था। वह अकेली नहीं थी, जिसके साथ राम के नाम पर यह दिल दहला देने वाला वाकया पेश आया। उसका पूरा परिवार था, जिसकी सभी औरतों के साथ बलात्‍कार हुआ और फिर सभी को मार डाला गया। एक अकेली वही बच गई, वह जीवट वाली औरत, जिसने हार नहीं मानी। वही बिलकिस है, जिसे लंबी अदालती कार्रवाई के बाद अंतत: न्‍याय मिला और उन 11 आरोपियों को उम्रकैद, जिन पर बिलकिस के साथ सामूहिक बलात्‍कार का आरोप था

हालाँकि अपराध की जघन्‍यता के बरक्‍स यह सजा बहुत कम है, लेकिन फिर भी जहाँ न्‍याय की आस में अदालतों के चक्‍कर लगाते हुए पूरी उम्र गुजर जाती है, वहाँ यह अवधि और अंतत: बिलकिस के पक्ष में हुआ न्‍याय थोड़ी राहत और सुकून तो देता है और इस देश की न्‍याय-व्‍यवस्‍था में हल्‍का-सा यकीन भी

2002 के गुजरात दंगों के दौरान वह अकेली नहीं थी, जिसके साथ हिंदू कट्टरवादियों ने सिर्फ इसलिए बलात्‍कार किया, क्‍योंकि उसका नाम बिलकिस था और वह मुसलमान थी। ऐसी जाने कितनी अमीना, शाहिदा, फहमीदा और तबस्‍सुमों को निशाना बनाया गया, सिर्फ एक कौम को नीचा दिखाने और प्रतिशोध लेने के लिए

गोधरा कांड के बाद गुजरात में छिड़े दंगों में बिलकिस के परिवारजनों को उसके सामने मौत के घाट उतार दिया गया और
  2002 के गुजरात दंगों के दौरान वह अकेली नहीं थी, जिसके साथ हिंदू कट्टरवादियों ने सिर्फ इसलिए बलात्‍कार किया, क्‍योंकि उसका नाम बिलकिस था और वह मुसलमान थी। ऐसी जाने कितनी अमीना, शाहिदा, फहमीदा और तबस्‍सुमों को निशाना बनाया गया      
बिलकिस समेत परिवार की अन्‍य महिलाओं के साथ 12 लोगों ने सामूहिक बलात्‍कार किया और फिर उनकी हत्‍या कर दी। बिलकिस किसी तरह जान बचाकर भाग निकली और उसके बाद शुरू हुई यह लड़ाई, न्‍याय पाने का संघर्ष

एक औरत, एक गरीब औरत और एक मुसलमान औरत होकर पिछड़े सामंती समाज के फिकरों, बलात्‍कार के अपमान को बर्दाश्‍त करना, लेकिन फिर भी गर्व के साथ मस्‍तक ऊँचा किए अपनी लड़ाई से हार न मानना, शायद यही कारण थे कि बिलकिस को अंतत: न्‍याय मिला। एक ऐसे देश में, जहाँ परिवारजन खुद बलात्‍कार का शिकार हुई अपनी बेटी को मौत के घाट उतार देते हैं, वहाँ बिलकिस के मानसिक संत्रास और उसके दु:खों की कल्‍पना की जा सकती है। एक ऐसा देश, ऐसा समाज, जहाँ ‘बैंडिट क्‍वी’ जैसी बेहद दर्दनाक फिल्‍म के सबसे तकलीफदेह हिस्‍सों पर हॉल में बैठे लोग सीटी बजाते हैं, कनखियों से मुस्‍कुराते हैं। मेरे जेहन में आज भी उस फिल्‍म की स्‍मृति किसी गहरी पीड़ा के रूप में दर्ज है

इस दर्द को बिलकिस कुछ इन शब्‍दों में बयाँ करती है, ‘पिछले छः साल मैंने खौफ के साए में बिताए हैं। एक पनाहगाह से दूसरी पनाहगाह तक भागती फिरी हूँ, अपने बच्चों को अपने साथ लिए-लिए, उस नफरत से बचाने के लिए जो अभी भी मुझे पता है, कई लोगों के दिलोदिमाग में पैबस्त है। इस फैसले का मतलब नफरत का खात्मा नहीं है, लेकिन इससे यह भरोसा जागता है कि कहीं किसी तरह इन्साफ की जीत हो सकती है। यह फैसला सिर्फ़ मेरी नहीं उन सभी बेगुनाह मुसलमानों की जीत है, जिनका कत्ल कर दिया गया और उन सभी औरतों की भी, जिनकी देह इसलिए रौंद डाली गई कि मेरी तरह वे भी मुसलमान थीं।’

और यह सब उस धरती पर हुआ, जो गाँधी की विरासत से सींची गई है। और उस राम और उस धर्म के नाम पर हो रहा है, जिसके धर्मग्रंथ स्‍त्री के महिमामंडन और गौरव-गान से भरे हुए हैं

  पिछले छः साल मैंने खौफ के साए में बिताए हैं। एक पनाहगाह से दूसरी पनाहगाह तक भागती फिरी हूँ, अपने बच्चों को अपने साथ लिए-लिए, उस नफरत से बचाने के लिए जो अभी भी मुझे पता है, कई लोगों के दिलोदिमाग में पैबस्त है। इस फैसले का मतलब नफरत का खात्मा नहीं है।      
लेकिन बिलकिस की लड़ाई यहाँ खत्‍म नहीं होती। लड़ाई दरअसल यहाँ से शुरू होती है। बिलकिस कहती है, ‘आज लेकिन मैं ग़मगीन भी हूँ क्योंकि मेरा तो सिर्फ़ एक मामला था उन हजारों के बीच जो अदालत की दहलीज तक भी नहीं पहुँच सके हैं और हालाँकि मैं यहाँ जीत कर खड़ी हूँ, पर मैं पुरजोर ढंग से यह कहना चाहती हूँ कि इन्साफ की राह इतनी लम्बी और यंत्रणा भरी नहीं होनी चाहिए। मैं क्षुब्ध भी हूँ क्योंकि राज्य और उसके अधिकारी अभी भी बेदाग और आजाद हैं जिन्होंने उन मुजरिमों की पीठ ठोंकी, उनकी हिम्मत बढ़ाई और उन्हें बचाया जिन्होंने मेरे पूरे समुदाय को तबाहोबर्बाद कर दिया जबकि उनका काम दरअसल हमारी हिफाजत करना था। आज मैंने जो लड़ाई जीती है वह मुझे और बड़ी और शायद कहीं और लम्बी जद्दोजहद के लिए ताकत देती है जो अभी आगे मेरे सामने है।’

बिलकिस भंवरी देवी और मुख्‍तारन माई की याद दिलाती है, और इतिहास की उन तमाम स्त्रियों की, जिनमें सच बोलने और सच के लिए लड़ने का साहस है। जिनके फौलादी मन को पिघला सके, इतनी कूवत बड़े-से-बड़े जुल्‍म में भी नहीं है

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