आंवला और तुलसी का धार्मिक एवं आयुर्वेदिक महत्व

अनिरुद्ध जोशी
भारतीय धर्म और दर्शन में पेड़, पौधों और प्रकृति के सभी तत्वों का मनुष्‍य के जीवन हेतु बहुत महत्व बताया गया है। हिन्दू दर्शन के अनुसार मनुष्य का जीवन प्रकृति से ही संचालिता होता है और इसे समझना जरूरी है। प्रकृति में ही रोग और शोक मिटाने की क्षमता होती है। आओ जानते हैं कि आंवला और तुलसी का क्या है धार्मिक और आयुर्वेदिक महत्व।
 
 
तुलसी धार्मिक महत्व :
1. भगवान विष्णु को सबसे प्रिय है तुलसी का पत्ता। भगवान को जब भोग लगाते हैं या उन्हें जल अर्पित करते हैं तो उसमें तुलसी का एक पत्ता रखना जरूरी होता है।
 
2.पौराणिक कथा के अनुसार जलंधर की पत्नी वृंदा का विष्णु द्वारा सतीत्व भंग किए जाने पर वृंदा ने आत्मदाह कर लिया, तब उसकी राख के ऊपर तुलसी का एक पौधा जन्म। तुलसी देवी वृंदा का ही स्वरूप है जिसे भगवान विष्णु लक्ष्मी से भी अधिक प्रिय मानते हैं। 
 
3. समुद्र मंथन के समय जो अमृत का कलश निकला उसकी कुछ बूंदे धरती पर गिरी थी। उसी के प्रभाव से ही कई तरह की औषधियों की उत्पत्ति हुई उनमेंसे एक तुलसी भी थी।
 
4. प्रतिवर्ष कार्तिक माह की एकादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन होता है। इस दिन शालिग्राम से तुलसी का विवाह कराया जाता है।
 
तुलसी का आयुर्वेदिक महत्व : 
1. तुलसी मुख्यता तीन प्रकार की होती हैं- कृष्ण तुलसी, सफेद तुलसी तथा राम तुलसी जिसमें से कृष्ण तुलसी सर्वप्रिय मानी जाती है।
 
2. तुलसी का पत्ता खाते रहने से किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता। तुलसी में कैंसर जैसे रोग को भी समाप्त करने की क्षमता है।
 
3. दूषित पानी में तुलसी की कुछ ताजी पत्तियां डालने से पानी का शुद्धिकरण किया जा सकता है। तांबा और तुलसी दोनों ही पानी को शुद्ध करने की क्षमता रखते हैं।
 
4. तुलसी की माला धारण करने से मन में शांति रहती है, आत्मविश्वास में वृद्धि तथा सात्विक भावनाएं जागृत होती हैं। तुलसी की माला में विद्युत शक्ति होती है। तुलसी की माला पहनने से बुखार, जुकाम, सिरदर्द, चमड़ी के रोगों में भी लाभ मिलता है। संक्रामक बीमारी और अकाल मौत भी नहीं होती, ऐसी धार्मिक मान्यता है। तुलसी माला पहनने से व्यक्ति की पाचन शक्ति, तेज बुखार, दिमाग की बीमारियों एवं वायु संबंधित अनेक रोगों में लाभ मिलता है।
 
5. तुलसी के समीप आसन लगाकर यदि कुछ समय प्रतिदिन बैठा जाए तो श्वास व अस्थमा जैसे रोग आदि से छुटकारा मिल जाता है।
 
6. प्रतिदिन 4 पत्तियां तुलसी की सुबह खाली पेट ग्रहण करने से मधुमेह, रक्त विकार, वात, पित्त, कैंसर आदि दोष दूर होने लगते हैं।
 
आंवला का धार्मिक महत्व : 
1. पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं। इसीलिए इस पेड़ की पूजा अर्चना की जाती है।
 
2. यह भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके वृंदावन की गलियों को छोड़कर मथुरा चले गए थे।
 
3. आंवला भगवान विष्णु का सबसे प्रिय फल है और आंवले के वृक्ष में सभी देवी देवताओं का निवास होता है इसलिए इसकी पूजा का प्रचलन है।
 
4 . आंवले के वृक्ष की पूजा करने से देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति भी होती है। ऐसी मान्यता है कि आंवला पेड़ की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं।
 
5. इस दिन विष्णु सहित आंवला पेड़ की पूजा-अर्चना करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। अन्य दिनों की तुलना में आंवला नवमी पर किया गया दान पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है। धर्मशास्त्र अनुसार इस दिन स्नान, दान, यात्रा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
 
आंवला का आयुर्वेदिक महत्व :
1. आयुर्वेद में आंवला सर्वाधिक स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। आयुर्वेद के अनुसार आंवला आयु बढ़ाने वाला फल है यह अमृत के समान माना गया है। इसका प्रतिदिन उचित मात्रा में सेवन करने से आयु वृद्धि बहुत धीरे धीरे होती है। चेहरे पर चमक बनी रहती है।
 
2. आंवला का पाउडर, चीनी के साथ मिलाकर खाने या पानी में डालकर पीने से एसिडिटी से राहत मिलती है। इसके अलावा आंवले का जूस पीने से पेट की सारी समस्याओं से निजात मि‍लती है।
 
3. रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी होने पर, प्रतिदिन आंवले के रस का सेवन करना काफी लाभप्रद होता है। यह शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में सहायक होता है, और खून की कमी नहीं होने देता।
 
4. आंखों के लिए आंवला अमृत समान है, यह आंखों की ज्योति को बढ़ाने में सहायक होता है। इसके लिए रोजाना एक चम्मच आंवला के पाउडर को शहद के साथ लेने से लाभ मिलता है।
 
5. आंवले के सेवन से लंबे समय तक बाल काले और घने बने रहते हैं।
 
6. आंवला में विटामिन सी का सर्वोतम प्राकृतिक स्रोत है जो कभी नष्ट नहीं होता है। विटामिन−सी एक ऐसा नाजुक तत्व होता है जो गर्मी के प्रभाव से नष्ट हो जाता है, लेकिन आंवले का नष्ट नहीं होता। आंवला दाह, पांडु, रक्तपित्त, अरूचि, त्रिदोष, दमा, खांसी, श्वांस रोग, कब्ज, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता है। यह पौरूष को बढ़ाता है।
 
7. मान्यता है कि अगर आंवले के पेड़ के नीचे भोजन पकाकर खाया जाये तो सारे रोग दूर हो जाते हैं। दिमागी मेहनत करने वाले व्यक्तियों को वर्षभर नियमित रूप से किसी भी विधि से आंवले का सेवन करना चाहिये। आंवले का नियमित सेवन करने से दिमाग में तरावट और शक्ति मिलती है।

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