दलित किसानों को ईडी ने जाति का जिक्र करते हुए भेजा समन, मामले ने पकड़ा तूल

BBC Hindi
रविवार, 7 जनवरी 2024 (07:55 IST)
के मायाकृष्णन, बीबीसी तमिल
तमिलनाडु में प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी के एक समन को लेकर विवाद हो गया है। सेलम जिले के अट्टूर में ईडी ने किसानों को समन दिया था, जिसमें जांच एजेंसी ने दलित किसानों की जाति का जिक्र किया था।
 
यह मामला सेलम जिले के अट्टूर में रामानायकन पलायम के रहने वाले दो भाइयों- कन्नैयन और कृष्णन से जुड़ा है, जिनकी साढ़े छह एकड़ जमीन कलवारायण पहाड़ी की तलहटी में है। ईडी ने इन्हें भेजे समन में जाति और पते का जिक्र किया। एजेंसी जिस तरीके से मामले की जांच कर रही है, उस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
 
जब बीबीसी ने ईडी से इस मामले में उनका पक्ष जानने की कोशिश की तो अधिकारियों ने कुछ कहने से मना कर दिया और सिर्फ इतना कहा कि मामले में अभी जांच जारी है।
 
बीजेपी नेता के खिलाफ शिकायत
इस मामले में दोनों भाइयों ने सेलम जिले के पुलिस अधीक्षक के यहां शिकायत की है। उन्होंने बीजेपी नेता गुनासेकरन के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। दोनों भाइयों ने बीजेपी नेता पर आरोप लगाया है कि वो उनकी जमीन हड़पना चाहते हैं।
 
उन्होंने ईडी के खिलाफ भी कार्रवाई की मांग की है। जाति का जिक्र करते हुए ईडी ने यह समन जुलाई 2023 में दिया था।
 
किसानों का कहना है कि ईडी मुश्किल में फंसे उन किसानों को निशाना बना रही है, जो कई सालों से अपनी जमीन पर खेती नहीं कर पा रहे हैं। इसे लेकर किसानों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि इस पूरे मामले को सेलम जिले के बीजेपी प्रभारी गुनासेकरन ने रचा है।
 
क्या है आरोप?
कृष्णन का कहना है कि यह मामला भूमि के असली मालिक और एक नकली दस्तावेज के कारण सामने आया। उनका दावा है कि उन्होंने अपनी पांच एकड़ जमीन गिरवी रखी थी और गुनासेकरन के खिलाफ अट्टूर उप न्यायालय में मामला दायर किया था।
 
उन्होंने बताया कि वे साल 2020 से इसे लेकर कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं और ईडी ने उनके खिलाफ 'झूठी शिकायत दर्ज की हैं।'
 
दलित किसानों को जुलाई 2023 में ईडी से एक समन मिला था, जिसमें साफ तौर पर उनकी जाति का जिक्र किया गया था।
 
'वकील को न लाने के लिए कहा'
समन मिलने के बाद जब किसान चेन्नई में ईडी दफ्तर पूछताछ के लिए पहुंचे तो उन्हें अपना वकील नहीं लाने के लिए कहा गया जिसके बाद टकराव की स्थिति पैदा हो गई। यह बात हाल ही में मीडिया में तब सामने आई, जब एक स्थानीय पत्रकार ने इस मामले को सबके सामने रखा।
 
इसके बाद किसानों ने गुनासेकरन और ईडी के अधिकारियों के खिलाफ तमिलनाडु पुलिस में शिकायत दर्ज करवाई।
 
शिकायत करने वालों का आरोप है कि इस मामले से बीजेपी से जुड़े लोगों और ईडी के अधिकारियों के बीच कथित मिलीभगत उजागर होती है।
 
किसानों की वकील परवीना ने तमिलनाडु सरकार से अपील की है कि वो इस तरह के मामलों की गंभीरता को देखते हुए इन पर ध्यान दे। उन्होंने आरोप लगाया है कि ईडी के अधिकारी अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं। वकील का कहना है कि बिना पर्याप्त सबूतों के ईडी को काले धन शोधन अधिनियम के तहत समन नहीं देने चाहिए थे।
 
समन में किसानों की जाति का ज़िक्र करने को लेकर आम लोगों के अलावा कई नेताओं ने भी ईडी की कड़ी आलोचना की है।
 
इस मामले में चेन्नई के भारतीय राजस्व सेवा के एक अधिकारी ने भी केंद्रीय जांच एजेंसी की आलोचना की है। उन्होंने आरोप लगाया है कि एजेंसी को ‘बीजेपी पॉलिसी ईडी’ बना दिया गया है। उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के इस्तीफे की मांग भी की है। यह अधिकारी इसी महीने रिटायर होने वाले हैं।
 
चेन्नई उत्तर के जीएसटी और केंद्रीय उत्पाद शुल्क के डिप्टी कमिश्नर बी बालामुरुगन ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा है और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को बर्खास्त करने की मांग की है। बी बालामुरुगन, वकील परवीना के पति हैं, जो दलित किसानों को केस देख रही हैं।
 
ईडी का क्या कहना है?
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार दो जंगली भैंसों की हत्या से जुड़े एक अलग मामले में ये किसान पहले ही बरी हो चुके हैं और जब यह जानकारी ईडी को मिली तो एजेंसी ने किसानों के खिलाफ यह मामला बंद करने का फैसला किया है।
 
ईडी के एक अधिकारी ने बताया कि मामले को शुरू में वन्यजीव मामलों की निगरानी के तहत आगे बढ़ाया गया था। किसानों के खिलाफ वन विभाग का वह पुराना मामला वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की धारा 51 और 9 के तहत दो जंगली भैंसों की हत्या से जुड़ा था, जो एक अपराध है।
 
ईडी के अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, "हम कोर्ट के आदेशों और वन्यजीव मामलों पर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स के आदेशों के चलते कई ऐसे मामलों की जांच कर रहे हैं।"
 
समन में जाति का नाम शामिल करने से जुड़े सवाल पर ईडी के एक अन्य अधिकारी ने बताया एजेंसी ने उसी शब्दावली का इस्तेमाल किया है, जो पुलिस करती है और यह स्टैंडर्ड प्रैक्टिस का हिस्सा है।
 
उन्होंने कहा कि इस मामले में जांच नहीं की जानी चाहिए थी और इसका किसी भी राजनीतिक पार्टी से कोई संबंध नहीं है।
 
ईडी अधिकारियों के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग
तमिलनाडु की एक तमिल राष्ट्रवादी पार्टी ‘नाम तमिलर काची’ ने इस मामले को लेकर ईडी की निंदा की है। पार्टी के चीफ कोऑर्डिनेटर सीमान ने कहा कि एक तरफ बीजेपी सामाजिक न्याय की बात करती है और दूसरी तरफ केंद्रीय जांच एजेंसी जाति के नाम का इस्तेमाल कर समन जारी करती है।
 
पुथिया तमिलगम पार्टी के अध्यक्ष के कृष्णासामी ने इस मामले में ईडी से जवाब मांगा है। उन्होंने समन में जाति का नाम लिखने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने की मांग की है।
 
भारतीय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के बालाकृष्णन ने भी दलित किसानों को पूछताछ के लिए बुलाने पर ईडी की निंदा की है।
 
तमिलनाडु बीजेपी के प्रमुख अन्नामलाई ने कहा कि राज्य सरकार के रिकॉर्ड पर भरोसा करना केंद्रीय जांच एजेंसियों के लिए एक मानक प्रक्रिया है। उन्होंने कहा कि ईडी के अधिकारियों ने इस मामले में किसानों की जाति का जिक्र इसलिए किया क्योंकि इससे पहले इस तरह के मामलों में वन विभाग ने ऐसा ही किया हुआ है।
 
अन्नामलाई ने साफ किया है कि बीजेपी और ईडी के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि भविष्य में ईडी को राज्य सरकार के रिकॉर्ड की सख्ती से जांच करनी चाहिए।
 
मामले पर सवाल उठाने वालों का कहना है कि यह घटना ईडी के कामकाज पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है और खासकर तब जब मामले हाशिए पर रहने वाले गरीब, पिछड़े लोगों से जुड़े हुए हों।
 

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