उर्दू में तीख़े तंज़ करके अपने राजनीतिक विरोधियों को मुश्किल में डालने वाले आज़म ख़ान अब ख़ुद क़ानूनी शिकंजे में फंसे नज़र आ रहे हैं।
एक मध्यवर्गीय परिवार में पैदा हुए आज़म ख़ान ने 1970 के दशक में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से क़ानून की पढ़ाई की। यहीं के छात्रसंघ में सियासत का ककहरा सीखा। इंदिरा गांधी ने जब देश में आपातकाल लगाया तो वो भी जेल गए। जब बाहर आए तो नई पहचान और लंबा राजनीतिक सफ़र उनका इंतज़ार कर रहा था।
रामपुर को नवाबों का शहर कहा जाता है। इन्हीं नवाबों के साए में आज़म ख़ान ने रामपुर में अपनी राजनीतिक सरगर्मियां शुरू कीं। 1980 में पहली बार विधायक का चुनाव जीता और अगले दशकों में रामपुर को अपने नाम का पर्याय बना लिया।
रामपुर शहर पर आज उनकी छाप ऐसी है कि लोगों की ज़बान और जगह-जगह लगे शिलान्यास के पत्थरों पर उनका ही नाम नज़र आता है लेकिन आज इसी रामपुर में उन पर 78 से अधिक मुक़दमे दर्ज हैं। उन पर लोगों को डराने-धमकाने, ज़मीनों पर क़ब्ज़ा करने से लेकर, भैंसें और किताबें चोरी करने तक के आरोप हैं।
आज़म ख़ान सभी आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हुए उन्हें राजनीतिक साज़िश का नतीजा बताते हैं। ये अलग बात है कि जिस रामपुर में आज़म ख़ान इस रौब से चलते थे कि शासन-प्रशासन उनके सामने झुका नज़र आता था, उसी रामपुर में अब वो छुपकर आने से भी डर रहे हैं।
वो पिछले कई दिनों से भूमिगत हैं। हाल ही में उनकी पत्नी ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा है कि उन्हें नहीं पता कि उनके पति कहां हैं।
क़िस्सा-ए-आज़म
आज़म ख़ान बातों के धनी हैं। वो प्रधानमंत्री को वज़ीर-ए-आज़म और दिल्ली का बादशाह बुलाते हैं। कभी सहयोगी रहीं और अब राजनीतिक विरोधी बन चुकीं फ़िल्म अभिनेत्री जयाप्रदा को वो इस अंदाज़ में 'रक़्क़ासा' कहते हैं कि सुनने वालों को ये नहीं लगता कि वे उन्हें 'नाचने वाली' कह रहे हैं जबकि उनका मतलब वही होता है।
उनके पास शब्दों को तंज़ में पिरोने का ऐसा हुनर है कि उनके चाहने वाले सुनकर वाह-वाह करने लगते हैं और जो उनके निशाने पर होते हैं वो बिलबिला उठते हैं। एक टीवी इंटरव्यू में आज़म ख़ान ने कहा था, "मुझे बोलने का फ़न आता है, जिससे मिलता हूं अपना बना लेता हूँ।"
आज़म का शाब्दिक अर्थ महान होता है। उन्हें महान नेता न सही लेकिन महान वक्ता तो कहा ही जा सकता है। बयानबाज़ी की कला, ज़मीनी मुद्दों की समझ और ग़रीबों की राजनीति ने उन्हें सत्ता में वो जगह दी जहां से क़ानून और शासन को वे अपने हिसाब से चला सकते थे।
रामपुर की राजनीति और इतिहास में दिलचस्पी रखने वाले सर्जन डॉ. शाहिद महमूद उनकी कामयाबी का श्रेय उनकी 'मास अपील' को देते हैं। वो कहते हैं, "आज़म ख़ान रामपुर के मोदी हैं। उनके पास तथ्यों को अपनी सहूलियत के हिसाब से पेश करने की कला है। उन्होंने यहां नवाब परिवार के ख़िलाफ़ लगातार बोल-बोल कर जन समर्थन हासिल किया और यहां की राजनीति से नवाब परिवार को हटाकर ख़ुद क़ाबिज़ हो गए।"
वो कहते हैं, "आज़म की कामयाबी की बड़ी वजह जनता की भावनाओं पर उनकी पकड़ है। रामपुर में एक बड़ा तबका ऐसा था जो पढ़ा लिखा नहीं था और जिसके पास रोज़गार भी नहीं था। आज़म ने इसके लिए नवाबों को ज़िम्मेदार ठहराया। वो जब भी बोलते थे नवाबों के ख़िलाफ़ बोलते थे।"
रामपुर के नवाब परिवार से जुड़े और मंत्री रह चुके नवेद मियां कहते हैं, "इनका राजनीतिक करियर रामपुर सिटी सीट से शुरू हुआ है। मेरे वालिद इन्हें हमेशा से नज़रअंदाज़ करते थे। ये नवाबों के ख़िलाफ़ तकरीरें करते थे लेकिन हमने इन्हें हमेशा नज़रअंदाज़ ही किया। उस दौर में इन्हें दीवाना कहा जाता था क्योंकि ये पागलपन की ही बातें करती थे।"
लेकिन इसी नवाब परिवार ने एक बार उनकी जान भी बचाई। एक क़िस्सा सुनाते हुए नवेद मियां कहते हैं, "आज़म ख़ान आज ज़िंदा भी हमारे वालिद की वजह से ही हैं। एक चुनाव में क़िले के पोलिंग बूथों पर आज़म ख़ान ने लोगों से बदतमीज़ी की थी। चाकू लिए लोगों ने उन्हें घेर लिया था। मेरे वालिद लोगों और आज़म के बीच में आ गए और आज़म को एक कमरे में बंद करके लोगों से कहा कि अगर इसे छुओगे तो मुझसे गुज़र कर जाना होगा। लेकिन वे एहसान मानने वाले आदमी नहीं हैं।"
"वे हमारे ख़ानदान के कभी साथ नहीं रहे। उस समय लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे तो हमारे वालिद कह देते थे लोगों से कि छोटा वोट दीवाने को दे दो।"
शाहिद महमूद कहते हैं, "आज़म ने शुरू में ग़रीबों और मज़दूरों के बीच जगह बनाई। उन्होंने रामपुर की टेक्सटाइल मिलों में काम करने वाले मज़दूरों को आंदोलित किया। हड़तालें कराईं। यहां की फ़ैक्ट्रियों को बंद करवाने में आज़म का बड़ा हाथ रहा है लेकिन वास्तव में रिक्शा बांटने के अलावा ग़रीबों के लिए कभी कोई बड़ा काम उन्होंने नहीं किया।"
आज़म ख़ान ने पहला चुनाव 1977 में लड़ा और हार गए। इसके बाद वो 1980 में जनता दल (सेक्यूलर) के टिकट पर आठवीं विधानसभा के लिए पहली बार चुने गए, नौवीं विधानसभा में वो लोकदल और दसवीं विधानसभा में जनता दल के टिकट पर जीते। 11वीं विधानसभा का चुनाव उन्होंने जनता पार्टी के टिकट पर लड़ा और चौथी बार विधानसभा पहुंचे।
1992 में जब मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई तब आज़म ख़ान भी इसके संस्थापक सदस्य थे। आज़म तब से इसी पार्टी के टिकट पर रामपुर से विधानसभा का चुनाव जीतते रहे और साल 2003 में उन्हें मुलायम सिंह की सरकार में कैबिनेट में जगह मिली।
शाहिद महमूद बताते हैं, "आज़म ख़ान रामपुर में दो बार चुनाव हारे हैं। 1977 में आज़म पहली बार मंज़ूर खां उर्फ़ शन्नू खां के ख़िलाफ़ लड़े और हार गए। इसके बाद उन्होंने लगातार चुनाव जीते लेकिन 1997 में कांग्रेस उम्मीदवार अफ़रोज़ अली खां ने उन्हें पटखनी दे दी।"
2009 में वो वक़्त भी आया जब आज़म पार्टी से अलग हो गए और खुले तौर पर कहने लगे कि 'मुलायम ने मुझे पार्टी से निकाला है, मैंने पार्टी छोड़ी नहीं है।' लेकिन पार्टी से उनका अलगाव लंबा नहीं रहा वो 2010 में फिर से समाजवादी पार्टी से जुड़ गए।
भ्रष्टाचार के आरोप
आज़म ख़ान ने रामपुर में पैदा हुए आज़ादी के आंदोलन के नेता मोहम्मद अली जौहर के नाम का इस्तेमाल अपनी राजनीति को आगे बढ़ाने में ख़ूब किया। वो रामपुर के लोगों से कहते रहे कि नवाब परिवार ने अलीगढ़ आंदोलन के नेता और ख़िलाफ़त आंदोलन से जुड़े रहे मौलाना अली ज़ौहर से धोखा किया और ब्रितानियों का साथ दिया।
उन्होंने मौलाना जौहर के नाम पर जौहर ट्रस्ट स्थापित की और इसी के तहत रामपुर में 78 हेक्टेयर भूमि पर मौलाना जौहर यूनिवर्सिटी स्थापित की। उन्होंने साल 2005 से यूनिवर्सिटी बनाने के प्रयास शुरू किए थे।
इस यूनिवर्सिटी का शिलान्यास तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 18 सितंबर 2006 को किया था। इस दौरान यूपी सरकार के सभी मंत्री रामपुर में मौजूद थे। जौहर ट्रस्ट के सात सदस्यों में से पांच उनके अपने परिवार के लोग हैं। ट्रस्ट से जुड़े अन्य लोग भी या तो आज़म ख़ान के रिश्तेदार हैं या बेहद क़रीबी हैं।
वो आजीवन यूनिवर्सिटी के चांसलर हैं। उनकी पत्नी और राज्यसभा सांसद तज़ीन फ़ातिमा और बेटे और सपा विधायक अब्दुल्लाह आज़म भी यूनिवर्सिटी से जुड़े हैं। आज़म ख़ान पर आरोप है कि उन्होंने इस यूनिवर्सिटी के लिए ज़मीनों पर क़ब्ज़े किए। रामपुर के ज़िलाधिकारी आंजनेय कुमार सिंह बताते हैं, "ये यूनिवर्सिटी क़रीब 78 हेक्टेयर भूमि में बनी है जिसमें से 38 हेक्टेयर के क़रीब ज़मीन या तो सरकारी है या शत्रु संपत्ति है या दलितों से अनियमित रूप से ली गई है।"
ज़िलाधिकारी बताते हैं, "जो बाकी की चालीस हेक्टेयर ज़मीन है वो भी अधिकतर अनियमितता करके ही ली गई है। इस क्षेत्र में तीन बार सर्किल रेट कम किया गया है। इसकी भी जांच की जा रही है। इसके अलावा किसानों से ली गई 5-6 हेक्टेयर भूमि भी विवादित है।"
कई किसानों ने आज़म ख़ान पर ज़मीन क़ब्ज़ाने के आरोप लगाए हैं और उनके ख़िलाफ़ मुक़दमे दर्ज कराए हैं। ज़िलाधिकारी कहते हैं, "हमने किसी भी मामले का स्वतः संज्ञान नहीं लिया है। हम शिकायतों पर कार्रवाई कर रहे हैं। बहुत सी शिकायतें उन लोगों ने दी हैं जिनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा किया गया है।"
उन्होंने बताया, "यूनिवर्सिटी में कई ज़मीनें ऐसी हैं जिनके मालिकाना हक़ के कोई दस्तावेज़ नहीं मिले हैं। हमें उम्मीद है कि हम किसानों को उनकी ज़मीन वापस दिला सकेंगे।"
ज़िलाधिकारी के मुताबिक आज़म ख़ान का नाम यूपी सरकार के एंटी भू-माफ़िया के पोर्टल पर भी दर्ज है यानी सरकार की नज़र में वो अब भू-माफ़िया हैं। वहीं आज़म ख़ान इन सभी आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हैं। कुछ समय पहले समाचार एजेंसी एएनआई को दिए साक्षात्कार में इन आरोपों पर उन्होंने कहा था, "मुख्यमंत्री के पोर्टल पर मेरा नाम भूमाफ़िया के तौर पर डाला गया है। ये विवाद पौने चार बीघा ज़मीन का है। जो ट्रस्ट चार सौ एकड़ ज़मीन ख़रीद रहा है वो पौने चार बीघा ज़मीन की बेईमानी करेगा?"
इसमें उन्होंने कहा था, "अगर ज़मीन का विवाद है तो वो सिविल डिस्प्यूट होगा, क्रिमिनल नहीं होगा। ये ज़मीनें जो सिर्फ़ चार बीघा हैं, इन पर यहां के प्रशासन ने इतना बड़ा विवाद किया है। ये अधिकारी वादा करके आए थे कि मुझे चुनाव हरवाएंगे। बहुत ज़ुल्म किया, बहुत दरवाज़े तोड़े। लेकिन मुझे हरा नहीं सके। ये मुझसे चुनावी हार का बदला ले रहे हैं।"
स्थानीय किसानों के आरोपों को ख़ारिज करते उन्होंने कहा, "जिन लोगों की ज़मीनों की शिकायतें ली हैं वो हाई कोर्ट में हलफ़नामा दे चुके हैं कि इन्होंने मुझसे पैसा लिया है।"
हाल ही में उत्तर प्रदेश पुलिस ने मौलाना ज़ौहर यूनिवर्सिटी पहुंचकर चोरी की गई कुछ किताबें बरामद करने का दावा किया था। इस पर आज़म कहते हैं, "लूट लिया मेरी यूनिवर्सिटी को। मुझ पर किताबें चोरी करने का आरोप लगा रहे हैं। मैं पढ़ा लिखा आदमी हूं। जहां जाता हूं लोग मुझे तोहफ़े में किताबें ही देते हैं।"
यतीमख़ाना क़ब्ज़ाने के आरोप
आज़म ख़ान पर वक़्फ़ की संपत्तियां क़ब्ज़ाने के भी आरोप हैं। पिछली समाजवादी पार्टी सरकार में वो वक़्फ़ मंत्री भी थे। रामपुर के नवाब ने यतीमों के रहने के लिए यतीमख़ाना बनाना चाहा था। इसके लिए ज़मीन वक़्फ़ कर दी गई लेकिन ये यतीमख़ाना नहीं बन सका। बाद में वक़्फ़ बोर्ड ने ये ज़मीन स्थानीय घोसी परिवारों को किराए पर दे दी।
इन परिवारों का आरोप है कि आज़म ख़ान ने पुलिस के ज़रिए उन्हें ज़बरदस्ती यहां से हटाया और उनके आशियाने तोड़ दिए। अब इस विवादित ज़मीन पर आज़म ख़ान के रामपुर पब्लिक स्कूल की इमारत अधूरी खड़ी है।
आज़म ख़ान के ख़िलाफ़ भैंसे चोरी करने की शिकायत कराने वाले शाकिर कहते हैं, "ये 2016 की बात है। पूरी कॉलोनी को पुलिस ने घेर लिया। सभी परिवारों को घर में बंद कर दिया गया। जिसने विरोध किया उसे बुरी तरह मारा-पीटा। जवान तो क्या बुज़ुर्गों को नहीं बख़्शा गया।"
वो कहते हैं, "हमारी भैंसें खोल दी गईं। घर तोड़ दिए गए। ज़मीन को समतल करके प्लॉट बना दिया गया। एक दिन में ही हमें बेघर कर दिया गया। ये आज़म ख़ान का ज़ुल्म था।"
वहीं यतीमख़ाने की ज़मीन क़ब्ज़ाने के आरोप पर आज़म ख़ान कहते हैं, "मैंने मासूम बच्चों का स्कूल खोला है, जो घुटने से चलते हैं उन बच्चों का स्कूल खोला है।"
बेतहाशा संपत्ति अर्जित करने के आरोप
आज़म ख़ान के ख़िलाफ़ दर्ज मामलों को ज़ोर-शोर से उठा रहे स्थानीय कांग्रेसी नेता फ़ैसल ख़ान लाला कहते हैं, "आज़म ख़ान ने जब राजनीति की शुरुआत की थी तब वो बेहद ग़रीब परिवार से थे। वो किराए के मकान में रहते थे और लमरेटा स्कूटर पर चलते थे। आज वो आलीशान बंगलों में रहते हैं। हज़ारों करोड़ की संपत्तियां अर्जित की हैं।"
वो कहते हैं, "उन्होंने ग़रीब किसानों की ज़मीनों पर नाज़ायज़ क़ब्ज़े किए हैं। रामपुर के अज़ीमनगर थाने में ही आज़म ख़ान पर 28 मुक़दमे दर्ज हैं। यतीमख़ाने की क़रीब सौ करोड़ रुपए की संपत्ति है जिस पर आज़म ख़ान ने क़ब्ज़ा किया। अक्तूबर 2016 में रात में उन्होंने यहां किराया देकर रह रहे लोगों का वक़्फ़ आवंटन निरस्त किया गया और सुबह पुलिस ने पूरा इलाक़ा घेर लिया। लोगों पर ज़ुल्म किया गया।"
फ़ैसल ख़ान कहते हैं, "आज़म ख़ान यूं तो मुसलमानों की नुमाइंदगी का दावा करते हैं लेकिन जब जब सत्ता में आते हैं तब तब मुसलमानों को नुक़सान पुंचाते हैं। उन्होंने यहां के ढाई सौ साल पुराने अरबी फ़ारसी के मदरसा आलिया पर क़ब्ज़ा किया और उसकी किताबें चुरा लीं। क़ब्रिस्तान खोदकर यूनिवर्सिटी में भराव भराया है।"
वो कहते हैं, "जो आज़म ख़ान टीवी पर दिखते हैं वो और हैं और जो रामपुर के लोगों पर ज़ुल्म करते हैं वो और हैं।" वहीं आज़म ख़ान इन सभी आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते रहे हैं। अपनी संपत्तियों के सवाल पर उन्होंने कहा था, "मैं गली में रहता हूं, बहुत छोटा सा मकान है जहां ताज़ा हवा भी नहीं पहुंच पाती है। मैंने ग़रीबी को जिया है।"
हालांकि अपनी यूनिवर्सिटी के बारे में उन्होंने कहा था कि उन्होंने अरबों रुपए निवेश किए हैं जो उनके दोस्तों ने दिए हैं। वहीं उनके सहयोगी इन सभी आरोपों को ख़ारिज करते हैं। स्थानीय समाजवादी पार्टी विधायक फ़हीम इरफ़ान कहते हैं, "आज़म ख़ान ने लोगों से भीख मांग-मांग कर ये यूनिवर्सिटी बनाई है और यही उनकी ग़लती है।"
"उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी के काम को यूनिवर्सिटी के लिए वक़्फ़ कर दिया है। उनके ट्रस्ट ने हज़ारों बीघा ज़मीन यूनिवर्सिटी के लिए ख़रीदी लेकिन सिर्फ़ कुछ बीघा ज़मीन के लिए उन पर गंभीर धाराओं में मुक़दमे दर्ज कराए गए हैं। वो ग़रीबों के दिल के दर्द को महसूस करने वाले नेता हैं और उन्हें ही आज ग़रीबों का दुश्मन बताया जा रहा है। वो मुसलमानों को तरक्की के रास्ते पर ले जाना चाहते हैं और यही उनका ग़ुनाह है और इसलिए ही बीजेपी सरकार उन्हें निशाना बना रही है।"
मुसलमानों के नेता
आज़म ख़ान अब उसी रामपुर से सांसद हैं जहां भारत में मुसलमानों के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने अपना पहला चुनाव जीता था। मीडिया ने आज़म ख़ान की बयानबाज़ी को ख़ूब सुर्खी बनाया और एक बड़े मुसलमान नेता के तौर पर उन्हें स्थापित किया।
शब्दों के खेल में माहिर आज़म ख़ान समझ गए कि वो जितना मीडिया में दिखेंगे उतना ही मुसलमान नेता के तौर पर उनकी पहचान पुख़्ता होगी। बाबरी मस्जिद, तीन तलाक़, पाकिस्तान या मुसलमानों से जुड़ा कोई भी मुद्दा हो आज़म ख़ान खुलकर बोलते हैं और ऐसा बोलते हैं कि सुनने वाले सुनते हैं।
आज आज़म ख़ान सांप्रदायिक राजनीति के एक छोर पर खड़े नज़र आते हैं जहां उनकी मुसलमान पहचान के पीछे उनकी राजनीति और व्यक्तित्व का हर दूसरा पहलू छुप जाता है।
अगर उनके बयानों पर रोशनी डाली जाए तो ये कहना भी ग़लत नहीं होगा कि अपनी ये पहचान उन्होंने ख़ुद ही गढ़ी है।
एक होशियार राजनेता के तौर पर वो जानते हैं कि आधी से अधिक मुसलमान आबादी वाले शहर में ये पहचान ही उनकी राजनीति को आगे बढ़ाती रहेगी। आज़म ख़ान कहते हैं, "हमने तो बार-बार कहा है कि बीजेपी की हम आइटम गर्ल हैं। उनके पास हमारे सिवा कुछ नहीं है।"
उन्होंने कई बार अपने आप को मीडिया की भी आइटम गर्ल कहा है। एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "हम आपकी आईटम गर्ल है, हमें दिखाकर ही आपका टीआरपी का कारोबार चलता है।"
विश्लेषक मानते हैं कि आज़म ख़ान ने मुसलमानों के नेता की पहचान के पीछे वो ज़ुल्म छुपा लिए हैं जिनके आरोप अब रामपुर के लोग उन पर लगा रहे हैं।
एक स्थानीय पत्रकार नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कहते हैं, "उन्होंने क़ानून और प्रशासन का जैसे चाहा वैसा इस्तेमाल किया। सत्ता में रहते हुए उनका रौब ऐसा था कि ज़िले के बड़े-बड़े अधिकारी उनके साथ रहने वाले गुर्गों तक को सलाम करते थे।"
वो कहते हैं, "जो उनके सामने आया पुलिस ने उस पर मनचाहा केस लगा दिया। रामपुर में आपको ऐसे दर्जनों लोग मिल जाएंगे जो आज़म ख़ान के ज़ुल्म की गवाही देंगे। ऐसे ही कई लोग अब सत्ता बदलने के बाद मुक़दमे दर्ज करा रहे हैं।"
लेकिन आज़म ख़ान इस सबको अपने ख़िलाफ़ साज़िश बताते हैं। एएनआई को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "हिंदुस्तान में क़ानून नहीं है सिर्फ़ अदालतें हैं। अगर क़ानून होता तो किताबें चोरी के आरोप में मुझ पर 389 का मुक़दमा दर्ज होता। अगर मैंने चोरी की होती तो मुझे गिरफ़्तार कर लिया जाता। लेकिन प्रशासन ने मेरी यूनिवर्सिटी में घुस कर उसे लूटा है और लोगों को डराया धमकाया है।"
रुआंसी आवाज़ में आज़म ख़ान जब डर की बात करते हैं तब शायद लोग भूल जाते हैं सत्ता में रहते हुए वे किस रोब से गरज़ते थे।