कोरोना वायरस से संक्रमण से निपटने के लिए देशभर में 21 दिनों का लॉकडाउन है और जो जहां है वो वहीं रुक गया है। विश्वविद्यालयों के हॉस्टल और कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स भी जैसे मझधार में हैं। स्टूडेंट्स को 3-4 दिनों के अंदर ही हॉस्टल खाली करने के लिए बोला गया था। कई बच्चे आनन-फानन में अपने घर निकल गए।
लेकिन, सभी के लिए ये संभव नहीं था, क्योंकि कई स्टूडेंट्स दूसरे राज्यों से आते हैं, जिसके लिए जल्दी टिकट नहीं मिलता। ऐसे में जिनका जाना संभव नहीं हुआ वो भविष्य को लेकर अनिश्चितता में पड़ गए। लॉकडाउन शुरू होने के बाद से कई बच्चे हॉस्टल में ही रह गए हैं। शुरुआत में उनके सामने खाने-पीने का संकट पैदा हो गया और अब उन्हें आगे की पढ़ाई को लेकर चिंता सता रही है।
घर नहीं जा पाए स्टूडेंट्स
हैदराबाद विश्वविद्यालय में पढ़ने वालीं प्रियंका इस वक़्त हॉस्टल में ही रह रही हैं। वह घर जाना चाहती थीं लेकिन, नियमों में बदलाव के चलते वो जा नहीं पाईं।
फिजिक्स की शोध छात्रा प्रियंका ने बताया कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने 15 मार्च को एक नोटिस जारी किया जिसमें सभी स्टूडेंट्स को घर जाने के लिए बोला था। लेकिन, उसमें किसी प्रकार की बाध्यता नहीं थी। साथ ही लिखा था कि जो स्टूडेंट्स हॉस्टल में रुकना चाहते हैं उनको मूलभूत सुविधाएं दी जाएंगी।
उस समय विश्वविद्यालय में क्लासेज बंद कर दी गई थीं तो ज्यादातर ग्रेजुएशन और मास्टर्स डिग्री के स्टूडेंट्स घर चले गए लेकिन रिसर्च स्कॉलर्स अपनी लैब्स में काम करते रहे।
उसके बाद 20 मार्च को देर शाम यूनिवर्सिटी प्रशासन की तरफ से एक नोटिस और आया जिसमें सभी स्टूडेंट्स को तुरंत प्रभाव से 24 मार्च सुबह 10 बजे से पहले होस्टल खाली करने का निर्देश दिया गया। लेकिन, प्रियंका का घर राजस्थान के सीकर में है तो इतनी जल्दी उनके लिए घर जाना संभव नहीं था।
प्रियंका बताती हैं कि जब हम घर नहीं जा सके तो स्टूडेंट यूनियन के जरिए यूनिवर्सिटी प्रशासन तक बात पहुंचाने की कोशिश की गई। इसी बीच 21 मार्च को एमएचआरडी ने सभी संस्थाओं को निर्देश दिया कि जो स्टूडेंट्स अभी हॉस्टल में है उन्हें वहीं रहने दिया जाए। उसके बाद 23 मार्च को विश्वविद्यालय प्रशासन ने हमें अपनी जिम्मेदारी पर यहां रहने की अंडरटेकिंग भरवाई और न्यूनतम सुविधाओं पर होस्टल में रहने की इजाजत दी।
प्रियंका के हॉस्टल में करीब 300 छात्राएं रहती हैं पर अभी केवल 11 छात्राएं ही बची हैं। ये वो स्टूडेंट हैं जिनकी या तो ट्रेन या फ्लाइट कैंसिल हो गई या फिर आर्थिक कारणों से तुरंत प्रभाव से टिकट के पैसे नहीं जुटा पाये। कुछ ऐसी ही स्थिति दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली सना की है। पूरा हॉस्टल सूना पड़ा है और बहुत कम लड़कियां बची हैं।
सना ने बताया कि जब यूनिवर्सिटी प्रशासन का ऑर्डर आया था तब सभी का जाना अनिवार्य नहीं था लेकिन बाद में सभी को जाने के लिए बोल दिया गया। उस वक़्त तो बहुत उलझन का माहौल था कि इतने शॉर्ट नोटिस पर कैसे जाएं। नहीं गए तो कहीं निकाल न दिया जाए।
जब कोशिश करके भी नहीं जा सके तो टेंशन हुई कि यहां सब कैसे मैनेज होगा। लेकिन, बाद में एचआरडी से आदेश आने के बाद हमें हॉस्टल में ही रहने दिया गया। कुछ स्टूडेंट हॉस्टल में रह तो रहें लेकिन अब हॉस्टल खाली और सूनसान इमारत बनकर रह गया है।
जैसे कि सना बताती हैं कि उन्होंने सोचा था कि रुक गए हैं तो आखिरी समेस्टर की पढ़ाई पूरी कर लेंगे लेकिन पता नहीं था कि सबकुछ बंद हो जाएगा। अब तो हाल ये है कि कुछ पढ़ भी नहीं पाते। पूरा हॉस्टल खाली लगता है और मन में बीमारी का डर बना रहता है। हमें बाहर लॉन में भी जाना मना है। ऐसे वक़्त में परिवार के साथ रहना ज़्यादा अच्छा होता है।
सना हाईजीन की परेशानी की बात भी करती हैं। वह कहती हैं कि हम खुद अब बाहर नहीं जा सकते। ऐसे में हाईजीन के सामान जैसे साबुन, सैनेटरी नेपकिन के लिए हॉस्टल के स्टाफ पर निर्भर हैं। हॉस्टल जो मंगाता है वही इस्तेमाल करते हैं। हैदराबाद विश्वविद्यालय की प्रियंका भी अब अकेलापन महसूस करने लगी हैं।
वह कहती हैं कि जिंदगी बस हॉस्टल के रूम से लेकर मैस की बेंच तक सिमट कर रह गई है। मैं अपने फ्लोर पर अकेली स्टूडेंट हूं, आसपास कोई एक शब्द भी बात करने के लिए नहीं है। इस समय मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती अपने मानसिक स्वास्थ्य को बरकरार रखने का है। कभी-कभी मन में एक डर भी लगता है कि अपने घर परिवार से दूर अगर कुछ हो गया तो कौन संभालेगा। हालांकि, मैस कर्मचारी और सुरक्षा गार्ड भी हमारे लिए ड्यूटी निभा रहे हैं तो उनसे साहस मिलता है।
खाने-पीने का इंतज़ाम
अचानक से हॉस्टल बंद होते ही उनमें मैस भी बंद हो गए थे। हालांकि, धीरे-धीरे उन स्टूडेंट्स के लिए व्यवस्था की गई जो हॉस्टल में ही रह गए थे। उत्तराखंड के गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में पढ़ने वालीं कविता (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि उन्हें लॉकडाउन ख़त्म होने का इंतज़ार है ताकि ज़िंदगी फिर से पटरी पर आ सके। उनके हॉस्टल में अमूमन 250 के करीब लड़कियां रहती हैं जिनमें से अब सिर्फ़ 38 बची हैं।
कविता ने बताया कि लॉकडाउन की शुरुआत में खाने को लेकर ही दिक्कत हो गई, क्योंकि मैस बंद कर दी गई थी। फिर बचे हुए स्टूडेंट्स ने शिकायत की तो ब्वॉयज होस्टल की मैस से खाना मंगवाया गया। इसी तरह बीच में वाईफाई बंद हो गया। जबकि लॉकडाउन में इंटरनेट को लेकर तो कोई आदेश नहीं था। फिर सबके शिकायत करने पर उसे ठीक किया गया। जब ज्यादा लोग शिकायत करते हैं तभी सुनी जाती है।
हॉस्टल का स्टाफ अच्छा है, वो हर स्टूडेंट तक खाना पहुंचाते हैं और हमारी ज़रूरत का सामान ले आते हैं। खाना पहले जैसा तो नहीं है पर सभी सहयोग कर रहे हैं। फिर हालात ही ऐसे हैं कि थोड़ी बहुत दिक्कत झेली जा सकती है।
हालांकि, कविता को इस बात का अफ़सोस है कि वो जिस काम के लिए रुकी थीं वो नहीं कर पाईं। कविता लैब में रिसर्च का काम पूरा करना चाहती थीं लेकिन अब लैब ही बंद हो गई। वो कहती हैं कि पहले से पता होता तो वो भी घर के लिए निकल जातीं। कोटा में मेडिकल की कोचिंग ले रहे हर्षित राज की मुश्किलें तब बढ़ गईं जब उन्हें जबरन कोटा में ही रुकना पड़ा। फिर इंस्टीट्यूट के मैस में पहले की तरह खाना मिलना बंद हो गया।
हर्षित बताते हैं कि मैं घर जाना चाहता था लेकिन बीच में ही लॉकडाउन हो गया। हमारा इंस्टीट्यूट बंद होने से मैस का खाना बहुत खराब आने लगा था। उसे खाने से अच्छा तो भूखे रहना था। फिर भी मैं और मेरे रूममेट खा रहे थे, क्योंकि कोई और ज़रिया नहीं था। फिर हमारी पीजी के मालिक से बात हुई जो अब हमारे लिए खाना बनाते हैं।
हर्षित के साथ रहने वाले अमित कुमार पढ़ाई को लेकर भी चिंता जाहिर करते हैं। उन्होंने बताया कि मई में हमारी परीक्षा थी लेकिन अब वो कैंसल हो गई है। अब पता नहीं अचानक से कब फिर से तारीख आ जाएगी। इस वक़्त तो हमारी प्रैक्टिस ही रुक गई है। कोटा में संक्रमण के मामले भी आ गए हैं। लगता है घर पर होते तो ज़्यादा अच्छा होता।
हॉस्टल के कमरों में किया जाएगा क्वारंटाइन
जैसा कि सरकार की ओर से बताया जा चुका है कि हॉस्टल्स का इस्तेमाल भी क्वारंटाइन के लिए किया जाएगा। इसी को देखते हुए पहले ही स्टूडेंट्स से कमरे खाली कर लिए गए। लेकिन, कुछ जगहों पर इसकी जानकारी स्टूडेंट्स को नहीं दी गई।
कविता ने बताया कि ये थोड़ा अजीब है। जब स्टूडेंट्स हॉस्टल से गए थे तब उन्हें इस बारे में नहीं बताया गया था कि उनके कमरों का इस्तेमाल क्वारंटाइन में होगा। हो सकता है कि तब वो अपना ज़रूरी सामान ले जाते। अब उनके सामान को विश्वविद्यालय कैसे संभालेगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में पढ़ने वालीं अंकु को भी इस बात की जानकारी नहीं है। वह लॉकडाउन होने से पहले ही हॉस्टल खाली करके चली गई थीं। लेकिन, उन्हें इस बात की जानकारी नहीं कि उनके कमरे का इस्तेमाल क्वारंटाइन के लिए किया जाएगा। हालांकि, जामिया में स्टूडेंट्स को इस बात की जानकारी दी गई थी। यहां हॉस्टल में रहने वालीं कोमल झारखंड में अपने घर जा चुकी हैं।
उन्होंने बताया कि हमें 48 घंटों में हॉस्टल खाली करने का आदेश दिया गया था। मैं 21 तारीख को वहां से चली गई थी। हमारी केयर टेकर ने बताया था कि अगर कोरोना वायरस के मामले बढ़ते हैं तो हॉस्टल का इस्तेमाल भी क्वारंटाइन के लिए करना होगा। इसलिए अपना ज़रूरी सामान ले जाएं या उन्हें लॉक कर दें।
फिलहाल, विश्वविद्यालयों में न तो पहले जैसा माहौल है और न वो घर जाने में सक्षम हैं। फिल भी स्टूडेंट्स धीरे-धीरे वर्तमान हालात में समझौता करने की कोशिश कर रहे हैं। (फ़ाइल चित्र)