भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है जब नौसेना की छह महिला अधिकारी एक ऐतिहासिक समुद्री सफ़र पर निकलने वाली हैं। ये सभी आईएनएस तारिणी नामक सेलबोट से सितंबर के महीने में इस अभियान की शुरुआत करेंगी। ये महिलाएँ गोवा से केप टाउन और फिर वापसी का सफ़र सात महीने में पूरा करेंगी। वो अपनी सेलबोट लेकर दक्षिणी महासागर में पहली बार जा रही हैं।
लेफ्टिनेंट कमांडर वर्तिका जोशी
टीम की कप्तान, उत्तराखंड की वर्तिका जोशी कहती हैं, "समंदर नहीं जानता कि आप महिला हैं या पुरुष। अच्छा सेलर होना ज़्यादा महत्व रखता है।"
वो कहती हैं, "सेलबोट की यात्रा मतलब हवा के रुख़ के सहारे आगे जाना। अगर हवा का साथ नहीं है तो लंबा रास्ता लेना पड़ता है। दिशा कब बदलनी है, कौन से रास्ते जाना है।...यह निर्णय लेना बड़ी कसौटी है। सेलिंग करते वक्त कभी-कभी आपकी नाव समंदर में एक हज़ार नॉटिकल माइल अंदर होती है। इस हालात में मदद को हेलीकॉप्टर भी नहीं आ सकते।"
इन महिला अधिकारियों को प्रेरित किया रिटायर्ड वाइस एडमिरल मनोहर औटी और अकेले सेलबोट यात्रा कर चुके रिटायर्ड कैप्टन दिलीप दोंदे ने। इस यात्रा के दौरान ये दोनों इनकी मदद करेंगे, लेकिन समंदर का सामना इन सभी लड़कियों को ख़ुद ही करना होगा। नौसेना की इस सेलबोट पर जीपीआरएस सिस्टम है। लेकिन राशन और पानी की मात्रा सीमित है।
वर्तिका बताती हैं, "एक बार नाव समंदर के बीच में थी और इसमें पानी की एक भी बूंद नहीं थी। ऐसी हालात में भूमध्यरेखा पर जमे हुए बादलों का सहारा होता है। और सचमुच धुआंधार बारिश हुई। तब उन्होंने बोट की पाल का ही झोला बनाया और उसमें समंदर के पानी को भर दिया और छानने के बाद पानी की कमी को पूरा किया। जब सब ठीक हो गया तो सभी मिलकर बारिश में नाचे भी।"
लेफ्टिनेंट कमांडर प्रतिभा जामवाल
लेफ्टनंट कमांडर प्रतिभा जामवाल हिमाचल प्रदेश की हैं। नौसेना में आने के बाद उन्होंने सेलिंग अभियान में हिस्सा लेना शुरू किया। लेकिन तब बोट पर पुरुष अधिकारी भी थे।
प्रतिभा कहती हैं, "दक्षिणी महासागर चुनौती दे रहा है। सिकुड़ती ठंड, माइनस 55 डिग्री तापमान, ऊंची-ऊंची लहरें, तूफ़ानी हवाएं...इन सबका सामना अब हमें ही करना है। लेकिन इसी में तो थ्रिल है।" उनके अनुसार, "ऐसी चुनौती में आपको हाइटेक होना ज़रूरी है। इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन में मैंने प्रशिक्षण लिया है, अब इसकी परीक्षा होगी इस अभियान में।"
लेफ्टिनेंट कमांडर पी. स्वाति
लेफ्टिनेंट कमांडर पी. स्वाति के लिए सेलिंग एक 'लाइफ़टाइम कमिटमेंट' है। स्वाति का बचपन विशाखापत्तनम में गुज़रा। वहां नौसेना के बोट क्लब में सेलिंग प्रतियोगिता होती थी। स्वाति की मां ने उसमें हिस्सा लेने के लिए उन्हें प्रेरित किया। तभी से ये उनके शौक में शुमार हो गया।
स्वाति ने इन अभियानों में अब तक पांच बार भूमध्यरेखा पार की है। लेकिन दक्षिणी महासागर में सेलबोट से जाने का अनुभव नया है।
दक्षिणी सागर में हवा की गति प्रतिकूल हो तो कुछ भी हो सकता है। बोट दिशा खो सकती है। कुछ तकनीकी समस्या भी आ सकती है। ऐसी स्थिति में समंदर के नीचे जाकर बोट की मरम्मत करनी पड़ सकती है। वो कहती हैं कि इसीलिए टीम ने मॉरीशस तक का ट्रायल टूर किया है। इस सफ़र में कोई भी समस्या नहीं आई।
लेफ्टिनेंट पायल गुप्ता
लेफ्टिनेंट पायल गुप्ता कहती हैं, "मैं जब सेलिंग करती हूँ तब मैं दुनिया की सबसे खुशहाल व्यक्ति होती हूं।" वो कहती हैं कि उन्हें एडवेंचर पसंद था और अब तो नौकरी ही ऐसी मिल गई है। पायल कहती हैं, "हमारी स्थिति 'लाइफ ऑफ़ पाई' जैसी भयानक नहीं है, लेकिन हम समंदर में दूर अकेले होंगे और अस्तित्व के लिए हमारा संघर्ष वैसा ही होगा।"
लेफ्टिनेंट विजया देवी
भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की विजया देवी ने अंग्रेज़ी साहित्य में डिग्री ली है। बोट के डेक पर खड़े होकर समंदर देखना उन्हें अच्छा लगता है। विजया और उनकी टीम के बाकी सदस्यों का कहना है कि समंदर यात्रा के दौरान कोई तनाव नहीं रहता। इसलिए तनाव दूर करने के लिए कुछ अलग करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती।
लेफ्टिनेंट पी. ऐश्वर्या
हैदराबाद की पी। ऐश्वर्या ने अपने पिता को बचपन से नौसेना की वर्दी में देखा है। इसलिए नेवी में जाना उनका बचपन का सपना रहा है।
ऐश्वर्या की हाल ही में सगाई हुई है। अभियान से लौटकर वो शादी करना चाहती हैं। वो कहती हैं कि इस अभियान के दौरान मंगेतर को मिस करेंगी। लेकिन अब संचार के उन्नत साधनों से बात करना बहुत मुश्किल नहीं है। वो कहती हैं, "अब तारिणी और ये दोस्त ही मेरा परिवार हैं। हममें से अगर एक नहीं हो तो कुछ अधूरा-सा लगता है।"
ऐश्वर्या और उसकी टीम की अन्य साथी समंदर को खुद के बेहद क़रीब समझती हैं। इसलिए वो कहती हैं...प्यारे समंदर, हमें विनम्र, प्रेरित और नमकीन बनाने का बेहद शुक्रिया!