व्लादिमीर पुतिन क्या बेलारूस को रूस में मिलाने वाले हैं?

BBC Hindi
मंगलवार, 21 जनवरी 2020 (08:33 IST)
बेलारूस की राजधानी मिंस्क में 20 दिसंबर को क़रीब दो हज़ार लोगों की भीड़ नारा लगा रही थी कि वो 'साम्राज्यवादी रूस' के साथ नहीं आना चाहते हैं। यह विरोध दोनों देशों के बीच संभावित गठजोड़ को लेकर था। दोनों देशों में गहरे आर्थिक संबंधों को लेकर बात चल रही है।
 
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको सेंट पीटर्सबर्ग में मिले थे। दोनों राष्ट्रपतियों की 15 दिनों में यह दूसरी मुलाक़ात थी।
 
पुतिन ने मुलाक़ात के बाद कहा था कि दोनों नेता सहमति की ओर बढ़ रहे हैं। हालांकि मुलाक़ात के बाद रूस के वित्त मंत्री मैक्सिम ओरेश्किन ने कहा था कि दोनों पक्षों में तेल और गैस पर सहमति नहीं बन पाई है।
 
प्रदर्शनकारियों को डर है कि दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक संबधों से उन्हें सोवियत संघ के विघटन के बाद जो आज़ादी मिली थी उसमें कमी आएगी।
 
प्रदर्शनकारियों के हाथ में प्लैकार्ड्स थे। इन प्लैकार्ड्स पर लिखा हुआ था- 'पहले क्राइमिया और अब बेलारूस। क़ब्ज़ा बंद हो।' दोनों देशों में संभावित गठजोड़ को लेकर बेलारूस में प्रदर्शन जारी है।
 
पुतिन की योजना क्या है?
2014 में क्राइमिया प्रायद्वीप को रूस में मिलाने और पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादियों के समर्थन के कारण बेलारूस में पुतिन को लेकर संदेह बढ़ा है। पुतिन पिछले दो दशक से रूस की सत्ता में हैं। यह कार्यकाल भी उनका 2024 तक रहेगा।
 
इसके बाद भी वो शायद ही सत्ता से हटें क्योंकि संविधान बदलने के लिए प्रधानमंत्री समेत पूरी कैबिनेट से इस्तीफ़ा ले लिया है। बेलारूस में पुतिन को लेकर संदेह बढ़ रहा है।
 
पिछले महीने आठ दिसंबर को दोनों नेताओं ने 'यूनियन स्टेट ऑफ रूस और बेलारूस' की बीसवीं वर्षगाँठ मनाई थी। दोनों देशों के बीच यह संधि आठ दिसंबर 1999 में हुई थी।
 
'यूनियन स्टेट ऑफ रूस और बेलारूस' का मतलब है कि बेलारूस को रूस में मिलाने की बात थी लेकिन यह काग़ज पर ही रह गया था।
 
एक बार फिर से दोनों देशों में बातचीत शुरू हुई तो बेलारूस के लोगों में डर बढ़ा है। यूनियन स्टेट ऑफ रूस और बेलारूस को सुपरनेशनल एंटटी भी कहा जाता है। मतलब दोनों देशों में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक मेल-मिलाप बढ़ेगा।
 
अमरीकी ब्रॉडकास्टिंग ऑफ गवनर्स के साथ काम करने वाले बेलारूस के पत्रकार फ़्रानक विकोर्का 20 दिसंबर को हुए प्रदर्शन के दौरान मौजूद थे। वो कहते हैं, ''प्रदर्शन अप्रत्याशित था। मैंने सालों से ऐसा प्रदर्शन नहीं देखा। इस प्रदर्शन को 2011 के प्रदर्शन की तरह देख सकते हैं।''
 
बेलारूस में प्रदर्शन
2011 में हज़ारों प्रदर्शनकारी बेलारूस की सड़कों पर उतरे थे। राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको के इस्तीफ़े की मांग में दो महीने तक प्रदर्शन चले थे। अलेक्जेंडर लुकाशेंको के पास 1994 से बेलारूस की सत्ता है। यूरोप में बेलारूस को आख़िरी तानाशाही शासन के रूप में देखा जाता है।
 
अमरीकी रक्षा मंत्रालय में काम करने वाले बेलारूस के एक और पत्रकार का कहना है, ''सबसे दिलचस्प यह था कि दिसंबर के विरोध-प्रदर्शन में कोई दमनकारी कार्रवाई नहीं हुई। अगर इस प्रदर्शन का राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको का समर्थन हासिल था तो यह शायद राष्ट्रपति पुतिन को संदेश देने की कोशिश थी कि बेलारूस रूस के अधिकारक्षेत्र में कभी नहीं आना चाहेगा।
 
कई ऐसी वजहें बताई जा रही हैं, जिसके आधार पर कहा जा रहा है कि पुतिन बेलारूस को रूस में मिलाना चाहते हैं। पिछले हफ़्ते प्रोजेक्ट सिंडिकेट को 2015 में साहित्य के नोबेल विजेता स्वेतलाना अलेक्सिविच ने बेलारूस को रूस में मिलाने की संभावित योजना की निंदा की थी।''
 
बीबीसी मुंडो से एक पत्रकार और लेखक ने कहा कि मिंस्क में बेलारूस के रूस में मिलाए जाने की बातें ख़ूब हो रही हैं। कहा जा रहा है कि अगर ऐसा होता है तो पुतिन को 2024 के बाद भी सत्ता में बने रहने में मदद मिलेगी।
 
रूसी संविधान में एक व्यक्ति दो कार्यकाल से ज़्यादा राष्ट्रपति नहीं बन सकता है। विकोर्का का कहना है कि पुतिन का एक उद्देश्य यह भी है लेकिन केवल यही नहीं है।
 
क्राइमिया के साथ पुतिन ऐसा कर चुके हैं
विकोर्का कहते हैं, ''पुतिन चाहते हैं कि बेलारूस दूसरा क्राइमिया बन जाए। वो कोई जंग चाहते हैं ताकि उनकी लोकप्रियता बढ़े। ऐसा कॉककस, चेचेन्या और यूक्रेन में पहले हो चुका है। रूसी राष्ट्रपति को लगता है कि बेलारूस को रूस के भीतर ही होना चाहिए। यह सच है कि बेलारूस रूस से बहुत अलग नहीं है लेकिन जैसा दो दशक पहले था वैसा अब नहीं है। यह विरोध-प्रदर्शन से भी साबित होता है।''
 
हाल के सर्वे से भी कई चीज़ें साफ़ हुई हैं। एनालिटिकल वर्कशॉप ऑफ बेलारूस ने हाल ही में एक सर्वे कराया था। सर्वे अगस्त 2019 में प्रकाशित हुआ था। इस सर्वे में 75।6 फ़ीसदी लोगों ने रूस से दोस्ताना संबंध, खुली सरहद, न कोई वीज़ा और न ही कस्टम का समर्थन किया लेकिन स्वतंत्र देश की शर्त पर ऐसा कहा। केवल 15।6 फ़ीसदी लोगों ने बिल्कुल संप्रभु और स्वतंत्र देश का समर्थन किया, जिसमें रूस का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
 
मॉस्को में 19 दिसंबर को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में पुतिन ने कहा था, ''बेलारूस और यूक्रेन के लोग रूसियों की तरह ही हैं। भाषा, नस्ल, इतिहास और धर्म के मामले में कोई फ़र्क़ नहीं है। इसीलिए मैं इस बात से ख़ुश हूं कि बेलारूस और रूस क़रीब आ रहे हैं।'' बीबीसी रूसी में मॉनिटरिंग टीम के विताली शेवचेंकों का कहना है कि राष्ट्रपति पुतिन विदेश नीति का इस्तेमाल रणनीति के तौर पर करते हैं ताकि वो अपनी प्रासंगिकता बनाए रखें।
 
विताली कहते हैं, ''वो ख़ुद को सोवियत यूनियन का उत्तराधिकार समझते हैं। उन्हें लगता है कि पिछली सदी में सोवियत यूनियन का पतन होना बहुत ही बुरा था और उनका मिशन है कि वो फिर से इसे बहाल करें।''
 
एक पत्रकार ने इस मामले में रूस के लोगों की राय के बारे में बताया, ''यह सच है कि हमलोग की सड़कें ठीक नहीं हैं। पेंशन, डेली वेज और दवाइयों की भी दिक़्क़तें हैं। लेकिन रूस की एक सम्मानजनक स्थिति है। पुतिन जब बोलते हैं तो लोग सुनते हैं। रूस में लगता है कि एक बार फिर से उसे ताक़तवर बनना है और पुरानी चमक हासिल करनी है। जब पुतिन यूक्रेन, जॉर्जिया, बेलारूस या अमरीका को लेकर कई हस्तक्षेप करते हैं तो रूसी लोग अपने देश के प्रभाव के तौर पर देखते हैं।''
 
राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको की भूमिका
राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको की राय रूस के साथ यूनियन को लेकर बदलती रही है। सोची में राष्ट्रपति पुतिन के साथ मुलाक़ात से पहले बेलारूस के राष्ट्रपति ने कहा था कि उनकी सरकार किसी भी मुल्क का हिस्सा नहीं बनना चाहती, यहां तक कि सिस्टर रूस का भी नहीं।
 
हालांकि राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको इसे लेकर पहले कुछ और सोचते थे। 1990 के दशक में राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको मॉस्को और मिंस्क के एकीकरण के समर्थक रहे हैं।
 
विकोर्का का मानना है कि बेलारूस के राष्ट्रपति किसी सुपनेशनल ऑर्गेनाइज़ेशन पर नियंत्रण चाहते हैं। वो कहते हैं, ''1990 के दशक में जब बोरिस येल्तसिन एक यूनियन बनाने पर सहमत हुए थे तो लुकाशेंको को लगता था कि वो नए यूनियन के अध्यक्ष बनेंगे। लेकिन 20 सालों बाद उन्हें अहसास हो गया है कि यह कभी संभव नहीं होगा। उनकी उम्र काफ़ी हो चुकी है और पहले की तरह लोकप्रियता भी नहीं रही। अब वो सब कुछ खोने का जोखिम लेने की तुलना में बेलारूस का राष्ट्रपति बने रहना ही पंसद करेंगे।''
 
स्लोवाकिया स्थित एनजीओ ग्लोबसेक में विदेश नीति के विश्लेषक अलिसा मुज़र्गस कहते हैं कि वो विकोर्का से पूरी तरह से सहमत हैं। वो कहते हैं, ''बेलारूस कई मामलों में पूरी तरह से रूस पर निर्भर है। ख़ास कर ऊर्जा के मामले में। कुछ साल पहले तक हम बहुत ही आसान विलय की बात सुनते थे। हमने दोनों राष्ट्रपतियों के बीच कई मुलाक़ातें भी देखीं।''
 
बेलारूस अर्थव्यवस्था और ऊर्जा के मामले में पूरी तरह से रूस पर निर्भर है। बेलारूस को रूस सबसे ज़्यादा क़र्ज़ देता है। रूस इस निर्भरता का इस्तेमाल हथियार के तौर पर करता है।
 
पिछले साल दिसंबर में पुतिन ने धमकी देते हुए कहा था, ''बिना यूनियन स्टेट में शामिल हुए बेलारूस को कम क़ीमत पर गैस देने का कोई मतलब नहीं है। हम लंबे समय तक बेलारूस को सब्सिडी देने की ग़लती नहीं कर सकते क्योंकि यूनियन का हिस्सा बनना बाक़ी है।''
 
अलिसा मुज़र्गस कहते हैं, ''बेलारूस रूस का हिस्सा है इस आइडिया को पुतिन ने कभी छोड़ा नहीं।'' दूसरी तरफ़ बेलारूस के नेताओं ने कोशिश शुरू कर दी है कि रूस ऐसा नहीं कर पाए। इसी को देखते हुए बेलारूस ने चीन और पश्चिम से संबंध बढ़ाए हैं। बेलारूस के विदेश मंत्रालय के अनुसार 16 दिसंबर को उनकी सरकार ने 50 करोड़ डॉलर का क़र्ज़ चीन से लिया था।
 
इसके साथ ही बेलारूस नेटो देशों से संबंध ठीक करने की कोशिश कर रहा है। अमरीकी राजनयिकों से प्रतिबंध भी हटा चुका है। कई लोग इसे बेलारूस की रूस पर निर्भरता कम करने की कोशिश के तौर पर देख रहे हैं।

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