पिछले कुछ दिनों में भारत-म्यांमार सीमा के करीब म्यांमार सेना और सैन्य शासन का विरोध कर रहे बलों के बीच तेज़ हुई झड़पों के बीच क़रीब पाँच हज़ार विस्थापित लोग म्यांमार से मिजोरम पहुँचे हैं।
म्यांमार सेना के 45 जवानों ने भी बुधवार तक मिजोरम पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया है। इन्हें भारतीय सेना को सौंप दिया गया और बाद में म्यांमार वापस भेज दिया गया।
मिजोरम पुलिस के आईजीपी (क़ानून व्यवस्था) लालबियाक्तगंगा खिआंगते ने बीबीसी से बातचीत में इसकी पुष्टि की है।
बीबीसी से बात करते हुए आईजीपी खिआंगते ने कहा, 'बॉर्डर के करीब दूसरी तरफ़ स्थिति अभी भी तनावपूर्ण है, लेकिन अभी तक भारत की तरफ़ कोई हिंसक गतिविधि नहीं हुई है। म्यांमार-भारत सीमा के बेहद क़रीब जो झड़पें हो रही हैं, उसका असर बॉर्डर की स्थिति पर हुआ है। विद्रोहियों ने कई जगह हमले किए हैं और सेना की चौकियों पर क़ब्ज़ा किया है जिसके बाद म्यांमार के सैनिकों को जंगल में छिपना पड़ा है।'
म्यांमार में सेना ने फरवरी 2021 में लोकतांत्रिक सरकार को हटाकर सत्ता पर कब्जा कर लिया था। तब से ही म्यांमार में गृह युद्ध चल रहा है जिसकी वजह से लाखों लोग विस्थापित हुए हैं।
म्यांमार सेना को लगा झटका
हाल के दिनों में चीन से सटे म्यांमार के शैन प्रांत में कई हथियारबंद समूहों ने एकजुट होकर सेना के ख़िलाफ़ हमले किए और कई जगहों पर कामयाबी हासिल की। इसके बाद भारत के सीमावर्ती इलाक़ों में भी विद्रोहियों ने सेना के ठिकानों पर बड़े हमले किए हैं।
मिजोरम पुलिस के मुताबिक़ इसकी वजह से भारत-म्यांमार सीमा पर भी गतिविधियां बढ़ी हैं। पुलिस के मुताबिक़ सर्वाधिक विस्थापित चमफाई ज़िले के सीमावर्ती क़स्बों में पहुंचे हैं।
आईजीपी खिआंग्ते कहते हैं, “म्यांमार के भीतर काफ़ी उथल पुथल है, इसका असर सीमा पर भी हुआ है, हालाँकि मिजोरम की तरफ कोई हिंसक गतिविधि नहीं हुई है। पिछले कुछ दिनों में क़रीब पाँच हज़ार लोग म्यांमार की तरफ से मिजोरम आए हैं। कल भी कुछ लोग आए हैं, आज भी कुछ के भारत में दाखिल होने की रिपोर्ट मिली है। म्यांमार की सेना के 45 जवानों ने बुधवार शाम तक मिजोरम पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया है, हमने उन्हें केंद्रीय बलों को सौंप दिया है। असम राइफ़ल्स सीमा की सुरक्षा कर रही है।”
बड़ी संख्या में आ रहे हैं विस्थापित
बीबीसी ने म्यांमार सीमा से सटे इलाक़ों में काम कर रहे मिज़ो यूथ एसोसिएशन के सदस्यों से बात की। उनका कहना था कि सीमापार गतिविधियाँ तेज़ होने से भारत की तरफ़ शरणार्थी आ रहे हैं। इनके लिए चमफ़ाई और जोखाथार में कैंप लगाए गए हैं।
आईजीपी कहते हैं, “भारत की तरफ़ स्थिति शांतिपूर्ण है, लेकिन म्यांमार सीमा के बहुत क़रीब झड़पें हो रही हैं, जब भी उधर झड़पें तेज़ होती हैं, उसका असर सीमा के हालात पर होता ही है। बुधवार शाम तक हमारे पास सीमा पार झड़पों की रिपोर्टें आई हैं।”
रिपोर्टों के मुताबिक़ 12 नवंबर की शाम चिन नेशनल आर्मी और उसके समर्थित समूहों- सीडीएफ़ हुआलगोराम, सीडीएफ़ ज़ानियात्राम, पीपुल्स डिफ़ेंस आर्मी, सीडीएफ़ थांतलांग ने मिलकर म्यांमार सेना के भारतीय सीमा के क़रीब स्थित खावमावी (तियाऊ) कैंप और रिखाद्वार (जो भारतीय सीमा से बिल्कुल सटा है) कैंप पर बड़ा हमला किया। इस हमले में म्यांमार सेना के कई सैनिक मारे गए और घायल हुए।
इस हमले के बाद म्यांमार सेना के 43 सैनिक भाकर मिजोरम पहुँचे और पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। बुधवार को दो और सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। सैन्य कैंपों पर हमले के बाद म्यांमार सेना ने एमआई हेलिकॉप्टर और जेट फ़इटर मदद के लिए भेजे और बमबारी की।
मिजोरम पुलिस के मुताबिक़ सीमा पार अब झड़पें धीमी हुई हैं, लेकिन रह-रहकर घटनाएँ हो रही हैं।
खुला है भारत-म्यांमार का बॉर्डर
भारत के मिजोरम प्रांत और म्यांमार के चिन प्रांत के बीच 510 किलोमीटर लंबी सीमा है। हालांकि दोनों तरफ़ के लोग आसानी से इधर-उधर जा सकते हैं। दोनों ही तरफ़ 25 किलोमीटर तक जाने पर पाबंदी नहीं है।
आइज़ॉल के गवर्नमेंट जॉनसन कॉलेज में प्रोफ़ेसर डेविड लालरिनछाना कहते हैं, “म्यांमार के चिन लोगों और मिजोरम के मिज़ो लोगों के बीच रिश्ते बेहद मज़बूत हैं क्योंकि दोनों ही समूह मानते हैं कि उनके पूर्वज एक ही थे। इनका इतिहास, संस्कृति और मान्यताएँ एक जैसी ही हैं। भले ही ये लोग सीमा के दोनों तरफ़ रहते हैं लेकिन अपने आप को भाई-बहन ही मानते हैं। मिजोरम को म्यांमार के चिन लोगों का समर्थन मिलता रहा है और ये दर्शाता है कि इन दोनों समूहों के बीच रिश्ते पारिवारिक हैं।”
यही वजह है कि म्यांमार से आने वाले चिन विस्थापितों को मिजोरम में पूरा सहयोग मिलता है।
यंग मिज़ो एसोसिएशन के सचिव लालनुन्तलुआंगा कहते हैं, “क़रीब पाँच हज़ार लोग सीमा पार करके पहुँचे हैं और चमफ़ाई ज़िले के जोखाथार, मेल्बुक, बुल्फेकज़ाल क़स्बों में टेंटों में रह रहे हैं। हमारा एसोसिएशन इन लोगों की मदद कर रहा है।”
लालनुन्तलुआंगा बताते हैं, “सेंट्रल मिज़ो यूथ एसोसिएशन अपनी अलग-अलग शाखाओं से दान ले रही है और इन कैंपों में चावल, सब्ज़ी, दाल, कंबल, बर्तन जैसी ज़रूरी चीज़ें पहुँचा रही है।”
लालनुन्तलुआंगा कहते हैं, “भारत और म्यांमार की सीमा बहुत सख़्त नहीं है और आर-पार जाना बहुत आसान है। सीमा के दोनों तरफ़ 25 किलोमीटर तक जाने की स्वतंत्रता भी है, ऐसे में विस्थापितों के लिए भारत पहुँचना कोई मुश्किल काम नहीं है।”
मिजोरम में कितने शरणार्थी?
म्यांमार में सैन्य तख़्तापलट के बाद सेना और विद्रोहियों के बीच हिंसा में फँसे लोग बड़ी तादाद में भारत पहुँचे हैं।
इस साल मार्च तक के आँकड़ों के अनुसार मिजोरम की राजधानी आइज़ॉल और अन्य ज़िलों में म्यांमार से आए क़रीब 31500 शरणार्थी रह रहे थे। ये सभी चिन प्रांत से आए हैं।
मिजोरम के गृह विभाग के मुताबिक़ मिजोरम के सभी 11 ज़िलों में म्यांमार से आए लोगों ने शरण ली है।
राज्य में 160 से अधिक राहत शिविर हैं, जिनमें 13 हज़ार के क़रीब शरणार्थी हैं, बाक़ी शरणार्थी अन्य जगहों पर रह रहे हैं। अब ताज़ा हिंसा के बाद पाँच हज़ार से अधिक नए शरणार्थी मिजोरम पहुँचे हैं।
मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने हाल ही में बीबीसी को दिए इंटरव्यू में स्वीकार किया था कि म्यांमार से आए शरणार्थी मिजोरम की मानवीय ज़िम्मेदारी हैं।
उन्होंने ये भी कहा था कि ये शरणार्थी उनके और उनकी पार्टी के लिए फ़ायदेमंद भी हैं।
ज़ोरमथंगा ने ये भी कहा था कि भारत की आज़ादी के समय जब ब्रितानी साम्राज्य ने भारत का बँटवारा किया, तब मिज़ो लोगों को बांग्लादेश (तब के पूर्वी पाकिस्तान), भारत और म्यांमार के बीच बाँट दिया, लेकिन इनमें अभी भी भाई जैसा ही रिश्ता है और ये सभी अपने आप को एक बड़े समुदाय का ही हिस्सा मानते हैं।
यही वजह है कि म्यांमार के चिन प्रांत से आने वाले शरणार्थियों को मिजोरम में किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ता और यहाँ के आम लोग उनकी मदद ही करते हैं।
चुनाव से कुछ दिन पहले दिए इंटरव्यू में बीबीसी ने जब ज़ोरमथांगा से पूछा कि क्या वो आगे भी शरणार्थियों को स्वीकार करेंगे, तब उन्होंने कहा था, “सहानुभूति दिखाना हमारी मानवीय ज़िम्मेदारी है। अगर लोग हमारे यहाँ आएँगे, तो हम उन्हें ज़बरदस्ती वापस नहीं भेजेंगे। म्यांमार से आ रहे लोग हमारे मिज़ो लोग ही हैं।”
प्रभावित हो सकते हैं म्यांमार के साथ रिश्ते?
मिजोरम एक छोटा प्रांत है। यहाँ की कुल आबादी क़रीब साढ़े तेरह लाख है। विश्लेषक मानते हैं कि म्यांमार से आ रहे शरणार्थियों का असर स्थानीय अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।
प्रोफ़ेसर डेविड कहते हैं, “ये संकट लंबे समय से चला आ रहा है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस पर ध्यान नहीं दे रहा है और इसलिए ही समाधान भी नहीं निकल रहा है। इसकी शुरुआत से ही मिजोरम ने इसके प्रभाव को महसूस किया है। अब हाल की घटनाओं के बाद जोखाथार में सीमा पार होने वाला कारोबार तुरंत रुक गया है। सीमा क्रांसिग बंद होने की वजह से बहुत से सामानों का आयात नहीं हो रहा है, इसकी वजह से स्थानीय स्तर पर क़ीमतें बढ़ रही हैं और स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है।”
प्रोफ़ेसर डेविड कहते हैं, “मिजोरम एक छोटा राज्य है और यहाँ आंतरिक राजस्व के साधन सीमित हैं, ऐसे में बड़ी तादाद में विस्थापित लोगों को संभालने का असर राज्य के बजट पर भी पड़ सकता है। इससे सुरक्षा और पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है।”
हालाँकि डेविड मानते हैं कि तमाम चुनौतियों के बावजूद इस मुश्किल वक़्त में मिज़ो लोगों के बीच एकजुटता और बढ़ रही है और मिजोरम के लोग म्यांमार से आ रहे लोगों की हर संभव मदद कर रहे हैं।
लेकिन व्यापक स्तर पर भारत के म्यांमार से रिश्ते और म्यांमार को लेकर भारत की नीति इस संकट से प्रभावित हो सकती है।
प्रोफ़ेसर डेविड कहते हैं, “भारत के म्यांमार की मौजूदा सैन्य सरकार से दोस्ती बढ़ाने के प्रयासों पर इस संकट का असर पड़ सकता है। जबकि मिजोरम के राजनीतिक दल और सरकार म्यांमार में रह रहे मिज़ो लोगों का समर्थन करते रहे हैं, लेकिन मिजोरम में शरणार्थीयों को राज्य स्तर पर दी जा रही मदद पर रोक लगाने की केंद्र सरकार की विचारधारा में विरोधाभास भी है। यह वैचारिक मतभेद म्यांमार के साथ भारत के संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं।”