नेपाल में नए बने पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास रविवार को यती एयरलाइंस का एटीआर -72 विमान क्रैश हो गया। इस हादसे में अब तक 68 शव बरामद हुए हैं। विमान में चालक दल के चार सदस्यों समेत कुल 72 लोग सवार थे। हादसे का शिकार हुआ विमान राजधानी काठमांडू से पोखरा के लिए 27 मिनट की नियमित उड़ान पर था।
एयरपोर्ट पर लैंड करने से चंद मिनट पहले ही ये क्रैश हो गया। इस एयरपोर्ट का उद्घाटन दो सप्ताह पहले ही हुआ है। राजधानी काठमांडू से क़रीब 200 किलोमीटर पश्चिम में स्थित पोखरा शहर नेपाल की ख़ूबसूरत अन्नापूर्णा पर्वत श्रृंखला का गेटवे कहा जाता है।
पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का मक़सद
यूं तो पोखरा में साल 1958 से ही हवाई अड्डा है, लेकिन नेपाल में पर्यटन के लिहाज़ से बेहद अहम इस शहर में नए अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की ज़रूरत महसूस की जा रही थी।
साल 2016 में पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण कार्य शुरू हुआ था। इस एयरपोर्ट का 1 जनवरी को ही उद्घाटन हुआ था।
पोखरा हवाई अड्डे से नेपाल में घरेलू उड़ानें संचालित होती थीं। इस नए अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का मक़सद अंतरराष्ट्रीय कनेक्टिविटी को स्थापित करना भी है। हालांकि पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से अभी तक कोई अंतरराष्ट्रीय उड़ान नहीं भरी गई है।
चीन के सहयोग से बना हवाई अड्डा
नेपाल ने इस नए हवाई अड्डे को चीन के सहयोग से बनाया है। ऐसे में इसे लेकर भारत की अपनी चिंताएं भी हैं। चीन की कंपनी सीएएमसी ने लगभग 22 अरब नेपाली रुपए की लागत से इस एयरपोर्ट को बनाया है। इस एयरपोर्ट के निर्माण के लिए चीन के एक्ज़िम बैंक से क़र्ज़ लिया गया है। एयरपोर्ट निर्माण के लिए नेपाल को चीन से अनुदान भी मिला है। इस हवाई अड्डे की क्षमता प्रति घंटा 600 यात्री संभालने की है।
हवाई अड्डा शुरू होने से पहले इस परियजोना के प्रमुख विनेश मुनकर्मी ने बीबीसी से कहा था, "इस हवाई अड्डे पर एक समय में तीन अंतरराष्ट्रीय विमान, चार छोटे और आठ घरेलू विमान सेवा में हो सकते हैं। लेकिन वास्तविक क्षमता इससे अधिक होगी क्योंकि सभी विमान एक समय में हवाई अड्डे पर नहीं रहते हैं।"
इस हवाई अड्डे पर एक ही रनवे है जो 2500 मीटर लंबा है। ये रनवे बोइंग 737-700, एयरबस ए320 और बोइंग 757-200 जैसे बड़े विमान को संभाल सकता है। 24 घंटे संचालन में सक्षम इस हवाई अड्डे के पास आपात स्थिति में विमान उतारने के लिए पैराग्लाइडिंग क्षेत्र भी है।
पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा संकरी घाटी में बना है। ऐसे में विशेषज्ञों ने यहां से बड़े विमानों के संचालन को लेकर आशंकाएं ज़ाहिर की थीं।
पोखरा घाटी में विमान सिर्फ़ पूर्वी दिशा से ही उड़ या उतर सकते हैं। ऐसे में यहां से चौड़े विमानों के बजाए अधिकतम 180 सीटों की क्षमता वाले विमानों का ही संचालन किया जा सकता है।
कंक्रीट का रनवे
पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का रनवे कंक्रीट का बना है। ये नेपाल में पहला कंक्रीट रनवे भी है। प्रोजेक्ट के प्रमुख विनेश मुनकर्मी के मुताबिक़, "कंक्रीट का रनवे इसलिए बनाया गया है क्योंकि इसका रखरखाव कम करना पड़ेगा। घाटी में बारिश भी अधिक होती है, ऐसे में कंक्रीट का रनवे लंबे समय तक चलेगा।"
इस एयरपोर्ट से उड़ानों के संचालन के लिए एयरपोर्ट के पूर्व में स्थित रिठेपानी पहाड़ी को काटा गया है। इस पहाड़ी पर पेड़ भी थे जिनके काटने को लेकर पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं भी ज़ाहिर की गई थीं।
भारत से उड़ान की अभी अनुमति नहीं
नेपाल की बुद्धा एयर एयरलाइन इस एयरपोर्ट से भारत के वाराणसी, दिल्ली और देहरादून शहर से अंतरराष्ट्रीय उड़ान शुरू करना चाहती है। बुद्धा एयर सबसे पहले वाराणासी और फिर आगे चलकर दिल्ली और देहरादून से उड़ान भरने का इरादा रखती है।
हालांकि बुद्धा एयर को अभी तक भारत से उड़ान भरने की अनुमति नहीं मिली है। बुद्धा एयर एक जनवरी से वाराणसी के लिए चार्टर्ड उड़ान शुरू करना चाहती थी, लेकिन भारत से उसे अनुमति नहीं मिली।
नेपाली मीडिया की रिपोर्टों में दावा किया गया है कि भारत चाहता है कि ये एयरपोर्ट कामयाब न हो। ये आशंका ज़ाहिर की गई है कि भारत पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे में चीन के निवेश को लेकर आशंकित है। भारत इस एयरपोर्ट के रणनीतिक महत्व को भी समझता है।
सुरक्षा को लेकर सवाल
पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे को पोखरा पर्यटन क्षेत्र के विकास के लिए बेहद अहम माना गया है। लेकिन हवाई यात्रा की शुरुआत के पहले दो सप्ताह में ही बड़ा विमान हादसे होने से इस एयरपोर्ट की सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।
नेपाल विमानन प्राधिकरण ने हादसे के तुरंत बाद बयान जारी करके कहा है कि ये हादसा मौसम में ख़राबी की वजह से नहीं हुआ है।
नेपाल पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के ज़रिए भारत और चीन के पर्यटकों को आकर्षित करना चाहता है। लेकिन इस एयरपोर्ट की आर्थिक कामयाबी को लेकर पहले से ही सवाल उठते रहे हैं। इस एयरपोर्ट को सिर्फ़ क़र्ज़ का ब्याज चुकाने के लिए सालाना 2.5 अरब नेपाली रुपयों की ज़रूरत है।
चीन के इस एयरपोर्ट से उड़ानें संचालित करने को लेकर कम ही आशंकाएं हैं। लेकिन सवाल यही है कि क्या भारत यहां से उड़ान भरने देगा। यती समूह की ही हिमालयन एयरलाइन को भारत ने भारत के लिए उड़ान भरने की अनुमति नहीं दी है। इस एयरपोर्ट पर अंतरराष्ट्रीय एयरलाइनों की झिझक की एक और वजह ये है कि यहां का एयर रूट बहुत आसान नहीं है।
हिमालयन पर्वतीय क्षेत्र में हवाई रूट बहुत मुश्किल होता है। यही वजह है कि नेपाल के ही सिद्धार्थनगर (भैरहवा) के गौतम बुद्ध अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से अंतरराष्ट्रीय एयरलाइनें उड़ान भरने में झिझकती रही हैं।
अभी तक भारत ने नेपाल के इन हवाई अड्डों के लिए आसान रूट भी उपलब्ध नहीं कराए हैं। इसकी वजह से भी इनकी आर्थिक कामयाबी को लेकर सवाल हैं।