एक साल पहले भारत के ख़ुदरा बाज़ार में आटे की औसत कीमत 2880 रुपये प्रति क्विंटल थी। आज ये बढ़कर 3291 रुपए प्रति क्विंटल हो गई है। यानी आटे के दाम में पिछले एक साल में ख़ुदरा बाज़ार में प्रति क्विंटल तक़रीबन 400 रुपए का इजाफ़ा हुआ है। आपके घर के आटे का बजट भी इसी क्रम में कुछ हद तक ज़रूर प्रभावित हुआ होगा।
साल 2010 के बाद आटे के दाम में इस बार रिकॉर्ड बढ़ोतरी देखी जा रही है। आख़िर क्यों? इस रिपोर्ट में इसी सवाल का जवाब तलाशने की एक कोशिश करेंगे।
मार्च-अप्रैल में रिकॉर्ड गर्मी
गेहूं की खेती भारत में उत्तर भारत में ज्यादा होती है। मध्य भारत में मध्य प्रदेश में भी पैदावार खूब होती है। मार्च और अप्रैल के महीने में ही गेहूं की कटाई ज़्यादातर इलाकों में होती है। इस साल उत्तर भारत में मार्च और अप्रैल के महीने में रिकॉर्ड गर्मी पड़ी है। जिस वजह से गेहूं की पैदावार पर काफ़ी असर पड़ा है।
गेहूं को मार्च तक 25-30 डिग्री सेल्सियस के तापमान की ज़रूरत होती है। लेकिन मार्च में उत्तर भारत के कई इलाकों में पारा इससे कहीं ऊपर था। सरकारी फाइलों में गेहूं की पैदावार 5 फ़ीसदी के आसपास कम बताई जा रही है।
लेकिन ruralvoic डॉट इन से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हरवीर सिंह कहते हैं, "पश्चिम उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश के किसानों से मैंने बात की। 15-25 फ़ीसदी पैदावार इस बार कम हुई है।"
आटे के लिए गेहूं की ज़रूरत होती है। पैदावर कम होने की वजह से गेहूं के दाम पर असर पड़ा। आटे की कीमत में इजाफ़ा होने के लिए ये अहम वजह है।
रूस-यूक्रेन युद्ध
वैश्विक परिस्थितियों ने भी गेहूं की कीमतें बढ़ाने में योगदान दिया। फरवरी के अंत में रूस यूक्रेन की जंग ने भारत के गेहूं की माँग दुनिया में थोड़ी और बढ़ा दी।
विश्व में गेहूं का निर्यात करने वाले टॉप 5 देशों में रूस, अमेरिका, कनाडा, फ़्रांस और यूक्रेन हैं। इसमें से तीस फ़ीसदी एक्सपोर्ट रूस और यूक्रेन से होता है।
रूस का आधा गेहूं मिस्र, तुर्की और बांग्लादेश ख़रीद लेते हैं। जबकि यूक्रेन के गेहूं के ख़रीदार हैं मिस्र, इंडोनेशिया, फिलीपींस, तुर्की और ट्यूनीशिया।
अब दुनिया के दो बड़े गेहूं निर्यातक देश, आपस में जंग में उलझे हों, तो उनके ग्राहक देशों में गेहूं की सप्लाई बाधित होना लाज़िमी है।
युद्ध शुरू होने के कुछ हफ़्ते बाद ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक कार्यक्रम में गेहूं निर्यातकों से एक अपील की थी।
उन्होंने कहा था, "इन दिनों दुनिया में भारत के गेहूं की तरफ़ आकर्षण बढ़ने की ख़बरें आ रही हैं। क्या हमारे गेहूं के निर्यातकों का ध्यान इस तरफ़ है? भारत के फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन का ध्यान इस तरफ़ है क्या?"
उनके इस बयान का मतलब निकाला गया, गेहूं के निर्यातक यूक्रेन संकट के बीच, भारत के निर्यातक उन देशों को गेहूं निर्यात करने के बारे में सोचें, जो अब तक यूक्रेन और रूस से इसे ख़रीदते आए हैं।
गेहूं निर्यात में रिकॉर्ड बढ़ोतरी
नतीजा ये हुआ कि गेहूं का निर्यात भी इस बार रिकॉर्ड स्तर पर हुआ है। पिछले तीन सालों में गेहूं के निर्यात में रिकॉर्ड बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है।
नीचे दिए गए ग्राफ़ से इस बढ़ोतरी को आसानी से समझा जा सकता है। रूस-यूक्रेन संकट का असर गेहूं की सरकारी ख़रीद पर भी दिखा।
केंद्र सरकार ने खु़द स्वीकार किया है कि इस साल सरकारी ख़रीद कम हुई है क्योंकि प्राइवेट व्यापारियों ने एमएसपी से ज़्यादा दाम पर गेहूं खरीदा।
हरवीर सिंह के मुताबिक़, "सरकारी ख़रीद कम होने की पीछे केंद्रीय मंत्रियों का बड़बोलापन भी कहीं ना कहीं ज़िम्मेदार है। उन्हें अंदाज़ा ही नहीं था कि आने वाले दिनों में दाम इस क़दर बढ़ने वाले हैं।"
बाज़ार सेंटीमेंट - दाम कम नहीं होने वाले
निर्यात बढ़ोतरी के मद्देनज़र बाज़ार में घरेलू ख़रीद के लिए गेहूं कम मिला। कुछ व्यापारियों ने आगे दाम बढ़ने की आशंका के मद्देनज़र पूरे स्टॉक बाज़ार में नहीं निकाले।
घरेलू बाज़ार में भी जब ख़रीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से ऊपर पर हुई तो अलग अलग शहरों में गेहूं के दाम बढ़े।
बाज़ार में बढ़ी हुई कीमतों के मद्देनज़र एक संदेश ये गया कि अभी गेहूं के भाव में तेज़ी रहने वाली है।
इस वजह से गेहूं से बनने वाली हर चीज़ के दाम बढ़ गए हैं। पिछले कुछ महीनों में ब्रेड और बेकरी आइटम्स के दाम में 8-10 फ़ीसदी दाम बढ़े हुए हैं। आटे के भाव में भी तेज़ी इसी वजह से देखी गई।
खबरों के मुताबिक़ अप्रैल के महीने में रिकॉर्ड निर्यात में सरकारी नीतियों का बहुत योगदान रहा। केंद्र और सरकार ने गेहूं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कई क़दम उठाए।
मसलन मध्य प्रदेश के दौरे पर गए केंद्रीय खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने ये एलान किया था कि निर्यात के ऑर्डर दिखा कर रेल मंत्रालय से तुरंत माल ढोने की रेक मुहैया कराई जा सकेगी।
इसके साथ ही कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) की तरफ़ से भी कई देशों में बिजनेस सेमिनार आयोजित किए गए, इससे बाज़ार तलाशने में मदद मिली, एक्सपोर्ट क्वालिटी गेहूं के निर्यात के लिए टेस्टिंग की सुविधा बड़े पैमाने पर उपलब्ध कराई गई।
असर
फिलहाल सरकारी स्टॉक में जितना गेहूं पहले हुआ करता था, उस मुकाबले इस बार थोड़ा कम है। एक वजह तो पैदावार की कमी है, जिसके कारण सरकारी ख़रीद पर भी असर पड़ा है।
दूसरी वजह है, प्रधानमंत्री ग़रीब अन्न कल्याण योजना को सितंबर 2022 तक बढ़ाया जाना। इस साल एक अप्रैल सेंट्रल पूल में गेहूं का ओपनिंग स्टॉक लगभग 190 लाख टन था।
केंद्र सरकार ने लगभग इस साल 195-200 लाख टन ही गेहूं ख़रीदने का लक्ष्य रखा है। सालों बाद ये नौबत आई है कि जितना गेहूं पिछली ख़रीद का बचा है, उतना ही नए साल में ख़रीदने का लक्ष्य है।
हरवीर सिंह के मुताबिक़, "गेहूं के आयात निर्यात का पूरा आँकड़ा देखने के बाद भी सरकार के पास इस स्थिति से निपटने के लिए बहुत बेहतर रणनीति है, ऐसा प्रतीत नहीं होता। पीडीएस और प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना में गेहूं वितरण की साल भर की ज़रूरत को देखते हुए सरकार को 480 लाख टन गेहूं की ज़रूरत होगी। लेकिन पिछले साल के गेहूं का सरकारी स्टॉक और इस साल का स्टॉक मिला कर देखें को 380 लाख टन गेहूं की ज़रूरत ही पूरा होने की उम्मीद है। यानी 100 लाख टन की कमी अभी के अनुमान के मुताबिक़ भविष्य में कर हो सकती है।"
हालांकि हरवीर सिंह मानते हैं कि आटे के दाम में बढ़ोतरी की अहम वजह मौसम की मार है। लेकिन वो साथ ही कहते हैं कि अब सही वक़्त है कि भारत सरकार निर्यात को नियंत्रित करने के लिए कोई कदम उठाए, होर्डिंग (अगर हो रही है) के ख़िलाफ़ मुहिम शुरू करें ताकि बाज़ार में भाव नियंत्रित हो सके।
आलोक सिन्हा 2006 से 2008 तक फ़ूड कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया (एफसीआई) के चेयरमैन रहे हैं। बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं, "इस बार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से ज़्यादा दाम पर गेहूं किसानों ने बेचा। किसानों आंदोलन के बीच ये एक अच्छी ख़बर किसानों के लिए भी है और केंद्र सरकार के लिए भी है।"
"सरकारी ख़रीद के अनुमान अभी पूरी तरह आए नहीं हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता है कि खाद्य सुरक्षा के लिहाज से जितना गेहूं स्टॉक में चाहिए उसमें कोई कमी होने वाली है। देश की दो-तिहाई आबादी दुकानों में जाकर अब आटा नहीं ख़रीददती, बल्कि खाद्य वितरण प्रणाली और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत उन्हें गेहूं मिलता है, जिसे पिसवा कर वो आटे का इस्तेमाल करती है। यानी आटे के दाम केवल उन लोगों के लिए बढ़ा है, जो आटा ख़रीद कर खाते हैं। कुल मिला कर किसानों को और केंद्र सरकार दोनों को गेहूं के निर्यात से फ़ायदा ही हो रहा है।"