अमेरिकी चुनाव 2020: फ़ेसबुक, ट्विटर पक्षपातपूर्ण रवैया रखते हैं?

BBC Hindi

मंगलवार, 3 नवंबर 2020 (14:35 IST)
अमेरिका में होने जा रहे राष्ट्रपति पद के चुनाव की वजह से सिर्फ़ अमेरिकी राजनेता ही दबाव का सामना नहीं कर रहे हैं। बल्कि अमेरिका की तकनीक क्षेत्र की बड़ी कंपनियां भी दबाव का सामना कर रही हैं। इन कंपनियों पर सोशल मीडिया साम्राज्यों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया जा रहा है। लेकिन इन कंपनियों के ख़िलाफ़ गुस्से की ताज़ा लहर की वजह ट्विटर का एक हालिया फ़ैसला है।
 
ट्विटर ने अपने एक फ़ैसले के तहत लोगों को अमेरिकी अख़बार न्यूयॉर्क पोस्ट की एक रिपोर्ट को साझा करने से रोक दिया था। ये रिपोर्ट डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बिडेन के ख़िलाफ़ जांच पर आधारित थी। इस स्टोरी में जो बिडेन के बेटे हंटर के कुछ अपुष्ट ई-मेल के स्क्रीन शॉट थे, जो हैक की गई सामग्री को लेकर ट्विटर की नीति का उल्लंघन कर रहे थे।
 
लेकिन ट्विटर इस फ़ैसले की तार्किकता सिद्ध करने में असफल रहा जिसके बाद उसने माफ़ी भी मांग ली। इसके बाद ट्विटर ने उस नीति को भी ख़त्म कर दिया जिसके तहत ये फ़ैसला लिया गया था।
 
रिपब्लिक पार्टी के कई समर्थकों के लिए ये एक आख़िरी सबूत था, एक ऐसा अकाट्य प्रमाण जो कि बताता है कि सोशल मीडिया कंज़र्वेटिव्स (संरक्षणवादियों) के ख़िलाफ़ है। सोशल मीडिया कंपनियों के ख़िलाफ़ आरोप ये है कि वे मूलत: उदारवादी हैं और उनके प्लेटफॉर्म पर क्या जाना चाहिए और क्या नहीं जाना चाहिए, इसे लेकर वे ठीक से मध्यस्थता नहीं करती हैं। इस मामले में रिपब्लिकन पार्टी के वरिष्ठ सीनेटर टेड क्रूज़ मानते हैं कि अगर ये स्टोरी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बारे में होती तो ट्विटर की प्रतिक्रिया अलग होती।
सोशल मीडिया कंपनियों के ख़िलाफ़ आरोप
 
कंजर्वेटिव्स जब सोशल मीडिया कंपनियों के ख़िलाफ़ पक्षपात करने का आरोप लगाते हैं तो सामान्यत: उनका इशारा अनुचित मॉडरेशन की ओर होता है। ये एक मान्यता है कि उनकी पोस्ट को ज़्यादा सेंसर किया जाता है और दबाया जाता है। लेकिन ये साबित करना बेहद मुश्किल है कि सोशल मीडिया कंपनियां पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाती हैं।
 
ट्विटर और फ़ेसबुक जैसी कंपनियां अपने डेटा और एल्गोरिद्म के काम करने के ढंग को लेकर काफ़ी गोपनीयता बरतती हैं और उन्हें साझा नहीं करती हैं। इस वजह से जब रिपब्लिकन पार्टी के समर्थक कुछ ग़लत होने की बात करते हैं तो वे 'किसी घटना के साथ आरोप' लगाते हैं। इसका मतलब ये हुआ कि वे एक उदाहरण पेश करते हैं जो कि एक व्यापक रुख़ को साबित करता है। वहीं, तकनीक क्षेत्र की कंपनियां पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने के आरोप को सिरे से नकारती हैं।
 
लेकिन एक बात तय है कि कई कंपनियों ने मॉडरेशन की प्रक्रिया को लेकर गंभीरता दिखाना शुरू कर दिया है। (मॉडरेशन से आशय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित होने वाली सामग्री में नियमों के अनुसार चुनाव करने से है।) इस प्रक्रिया में ये कंपनियां उन मुद्दों से जूझ रही हैं जिनका सामना एक न्यूज़पेपर एडिटर प्रतिदिन करता है। उदाहरण के लिए क्या छापा जाना चाहिए और क्या नहीं छापा जाना चाहिए।
कड़े सवाल
 
बीते बुधवार फ़ेसुबक, ट्विटर और गूगल के मुख्य अधिकारियों को सीनेट कमेटी के सामने प्रस्तुत होकर अपने ऊपर लग रहे आरोपों को लेकर राजनेताओं को जवाब देने पड़े हैं। ट्विटर के संस्थापक जैक डोर्सी को अपनी कंपनी की उस नीति को लेकर तीखे सवालों का जवाब देना पड़ा जिसके तहत ट्विटर किसी पोस्ट को 'ग़लत सूचना' के रूप में लेबल करती है या अपनी साइट से हटाती है।
 
डोर्सी से पूछा गया कि ट्विटर ने किस आधार पर मेल-इन बेलट्स की सुरक्षा को लेकर राष्ट्रपति ट्रंप की एक पोस्ट को लेबल किया जबकि ईरान के अयातुल्लाह अली ख़ामनेई की उन पोस्ट्स को छोड़ दिया जिनमें वह इसराइल के ख़िलाफ़ हिंसा का इस्तेमाल करने की धमकी दे रहे थे। डोर्सी पर ये बताने का दवाब डाला गया कि उन्होंने किस आधार पर ईरानी नेता के ट्वीट्स को 'सैन्य धमकी' माना जिस वजह से ट्विटर की नीतियों का उल्लंघन नहीं हुआ।
 
रिपब्लिकन पार्टी के सीनेटर टेड क्रूज़ ने न्यू यॉर्क पोस्ट (कंज़र्वेटिव की ओर झुकाव वाला अख़बार) की हंटर बिडेन को लेकर छापी गई अपुष्ट स्टोरी को प्रतिबंधित करने पर भी डोर्सी से सवाल किए। उन्होंने कहा, 'मिस्टर डोर्सी, मीडिया क्या रिपोर्ट कर सकती है और अमेरिकी जनता को क्या सुनने की अनुमति है, ये तय करने के लिए आपको किसने चुना है? और आप लगातार डेमोक्रेटिक पार्टी के सुपर पीएसी (कैंपेन ग्रुप) के रूप में व्यवहार क्यों कर रहे हैं, अपनी चुनावी मान्यताओं से अलग विचारों को मंच नहीं दे रहे हैं।'
 
डोर्सी ने ट्विटर के मॉडरेशन के प्रयासों में और ज़्यादा पारदर्शिता लाने की बात कहने से पहले कहा, 'मैं इन चिंताओं को समझ रहा हूं और स्वीकार करता हूं।' लेकिन सोशल मीडिया कंपनियों से सिर्फ रिपब्लिक पार्टी के नेता नाराज़ नहीं थे। बल्कि कमेटी में मौजूद डेमोक्रेटिक पार्टी के नेताओं ने सोशल मीडिया कंपनियों पर मिलिटेंट हेट ग्रुप्स के फैलाव को बढ़ावा देने का आरोप लगाया।
 
सीनेटर गैरी पीटर्स और एमी क्लोबुकर ने लोगों, जिनमें एक ऐसा गैंग भी शामिल है जो कथित रूप से एक अमेरिकी स्टेट गवर्नर का अपहरण करने की योजना बना रहा था, को कट्टरपंथी बनाने में फ़ेसबुक की कथित भूमिका पर सवाल उठाए।
 
क्लोबुकर ने पूछा, 'हालिया अध्ययनों में सामने आया है कि आपकी एल्गोरिद्म का कुछ हिस्सा लोगों को बांटने वाली सामग्री की ओर बढ़ाता है। क्या इससे आपको फर्क पड़ता है कि इससे हमारी राजनीति पर क्या असर पड़ा है?' इस पर फ़ेसबुक के बॉस मार्क ज़करबर्ग ने कहा, 'सीनेटर, मैं सम्मानपूर्वक सिस्टम के काम करने की प्रक्रिया के इस चित्रण से असहमति जताता हूं।' इसके साथ ही ज़करबर्ग ने कहा कि उनकी साइट लोगों को वो कंटेंट दिखाती है जोकि उनके लिए अहम है।
क्या सोचती है अमेरिकी जनता?
 
पिउ रिसर्च सेंटर की ओर से अगस्त में किए गए एक सर्वे में संकेत मिलते हैं कि रिपब्लिक पार्टी के 90 फ़ीसदी समर्थक मानते हैं कि सोशल मीडिया साइट्स राजनीतिक दृष्टिकोणों को सेंसर करती हैं। वहीं, डेमोक्रेटिक पार्टी के 59 फ़ीसदी समर्थक भी यही मानते हैं। ऐसे में क्या इन समर्थकों की मान्यता के पीछे कोई ठोस आधार है?
 
सोशल मीडिया के ख़िलाफ़ लग रहे तमाम आरोपों के बीच रिपब्लिक पार्टी के समर्थक एक आरोप लगाते हैं कि सोशल मीडिया एल्गोरिद्म संरक्षणवादी सामग्री को लोगों तक पहुंचने में बाधाएं पैदा करती है। लेकिन इस आरोप की पुष्टि फ़ेसबुक का डेटा देखने पर नहीं होती है। फ़ेसबुक के साम्राज्य का ही एक पब्लिक इनसाइट टूल क्राउड टैंगल प्रतिदिन दस सबसे ज़्यादा लोकप्रिय पोस्ट्स की सूची तैयार करता है।
 
अमूमन किसी भी दिन 10 सबसे ज़्यादा लोकप्रिय राजनीतिक पोस्ट्स में दक्षिणपंथ की ओर झुकाव वाले टिप्पणीकार जैसे डॉन बोनगिनो और बेन शेपिरो के साथ-साथ फॉक्स न्यूज़ और राष्ट्रपति ट्रंप की पोस्ट्स का बोलबाला होता है।
 
राष्ट्रपति ट्रंप के फ़ेसबुक पेज के 32 मिलियन फॉलोअर्स हैं जो कि उनके प्रतिद्वंदी डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बिडेन के फ़ेसबुक फॉलोअर्स की तुलना में दस गुना ज़्यादा हैं। अगर आरोप ये है कि फ़ेसबुक दक्षिण पंथी सामग्री को दबाता है तो ऐसा लगता है कि फ़ेसबुक ठीक ढंग से ऐसा नहीं कर रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या दक्षिणपंथी सामग्री को वामपंथी सामग्री की तुलना में ज़्यादा तरजीह दी जा रही है। इस नतीजे पर पहुंचना भी इतना आसान नहीं है।
 
यूनिवर्सिटी ऑफ़ वर्जिनिया में मीडिया स्टडीज़ के प्रोफेसर सिवा वैद्यनाथन कहते हैं, 'मुझे लगता है कि इसे दक्षिण पंथ बनाम वाम पंथ के रूप में देखना एक ग़लती होगी। झुकाव उस सामग्री के प्रति है जो कि तीव्र भावनाएं पैदा करती है।'
 
वह कहते हैं कि अमेरिका में 'कुछ अति दक्षिणपंथी पोस्ट्स' वायरल हुई हैं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि ये प्लेटफॉर्म ढांचागत स्तर पर पक्षपात पूर्व रवैये से जूझ रहे हों। वे कहते हैं, 'मेक्सिको में आप एक अलग ही तस्वीर देखेंगे कि किस चीज़ को तरजीह मिल रही है।'
 
लेकिन अगर आप ये देखें कि कौन-सी सामग्री हटाई जा रही है तो आप समझ सकते हैं कि दक्षिणपंथ की ओर से आने वाले लोगों को वामपंथी लोगों की तुलना में मॉडरेशन से जुड़े मसलों का सामना ज़्यादा करना पड़ रहा है। उदाहरण के लिए, डेमोक्रेटिक पार्टी के कुछ समर्थक दावा करते हैं कि पोस्टल वोटिंग में घालमेल है। राष्ट्रपति ट्रंप और रिपब्लिक पार्टी के कई समर्थक ये दावा करते हैं।
 
फ़ेसबुक वोटर फ्रॉड से जुड़े दावों को लेबल करने की नीति का पालन करती है। फ़ेसबुक का तर्क ये है कि वह उस दुष्प्रचार को रोकने की कोशिश कर रही है जो कि लोगों के अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया में भरोसे को कम कर सकता है।
 
एक अन्य उदाहरण को देखते हैं- ब्लैक लाइव्स मैटर
 
फ़ेसबुक चीफ़ मार्क ज़करबर्ग ने खुलकर इस आंदोलन का समर्थन किया है। फ़ेसबुक पर ब्लैक लाइव्स मैटर पेज़ 740,000 फॉलोअर्स हैं। हालांकि, फ़ेसबुक पर ही एक अन्य पेज ब्लू लाइव्स मैटर के लाइक्स 2।3 मिलियन तक हैं। इस पेज का उद्देश्य पुलिसकर्मियों और पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ चलाए जा रहे नैरेटिव का सामना करना है। इस ग्रुप की बीएलएम नाम लेने और नस्लवाद के आरोपों सहित आलोचना हो चुकी है। लेकिन इस ग्रुप के संस्थापक क्रिस्टोफर बर्ग इसका खंडन करते हैं। वे कहते हैं कि फ़ेसबुक संरक्षणवादी आवाज़ों के प्रति पक्षपातपूर्ण रवैया रखता है। क्या इस पेज की लोकप्रियता के आधार पर ये कहना सही है?
 
बर्ग कहते हैं, 'मैं पेज की रीच या फॉलोअर्स की संख्या पर ध्यान नहीं दूंगा। मैं पर्दे के पीछे की चीज़ें देखूंगा जिसे कुछ लोग प्रभावित कर सकते हैं। जैसे कि किसी पेज़ को डिमोनिटाइज़ कर दिया जाना।'जब फ़ेसबुक को लगता है कि किसी पेज ने उसके नियमों का उल्लंघन किया है तो वह उस पेज को विज्ञापन और सब्सक्रिप्शन से होने वाली आमदनी को रोक देता है। बर्ग मानते हैं कि ये एक ऐसा पक्षपात है जिसका ज़ाहिर होना थोड़ा मुश्किल है। और दक्षिणपंथी पेजों के इसका शिकार बनने की स्थितियां ज़्यादा होती हैं।
 
ट्विटर को लेकर क्या राय है?
 
सोशल मीडिया की दुनिया में फ़ेसबुक की तुलना में ट्विटर एक अलग ही तरह का साम्राज्य है। ट्विटर के कुल यूज़र्स का एक बेहद छोटा प्रतिशत नियमित रूप से कंटेंट पोस्ट करते हैं। पिउ के अध्ययन में सामने आया है कि अमेरिका में ट्विटर का बहुत इस्तेमाल करने वाले व्यस्कों में से 70 फ़ीसदी डेमोक्रेट्स थे।
 
इस वजह से ट्विटर एक उदारवादी जगह नज़र आती है लेकिन एक बार फिर संरक्षणवादियों को लेकर ट्विटर का पक्षपातपूर्व रवैया साबित करना आसान नहीं है। चलिए, कोविड 19 का उदाहरण लेते हैं। ये सच है कि ट्विटर ने राष्ट्रपति ट्रंप के ट्वीट्स के ख़िलाफ़ जो बिडेन के ट्वीट्स की तुलना में ज़्यादा कार्रवाई की है।
 
उदाहरण के लिए, ट्विटर ने ट्रंप की एक पोस्ट को ब्लॉक कर दिया था जो कि ये सुझाव दे रही थी कि फ़्लू कोविड से ज़्यादा ख़तरनाक है। लेकिन इसी समय अध्ययनों में सामने आया है कि ट्रंप की कोविड पर ग़लत ख़बरें फैलाने की संभावना कहीं ज़्यादा है।
 
कॉर्नेल यूनिवर्सिटी का एक अध्ययन सुझाता है कि राष्ट्रपति ट्रंप कोविड डिसइनफॉर्मेशन फैलाने में सबसे बड़े वाहक थे। ऐसे में इस बात को लेकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि वह ट्विटर मॉडरेटर्स की नज़रों में ज़्यादा रहे हों।
 
सोशल मीडिया की उलझन
 
इसी वजह से सोशल मीडिया कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म मॉडरेट नहीं करने होंगे। क्योंकि जैसे ही आप ये फ़ैसला करते हैं कि क्या छपना चाहिए और क्या नहीं छपना चाहिए, वैसे ही आप राजनीतिक फ़ैसले करने लगते हैं। रिपब्लिक पार्टी के कुछ समर्थक किसी भी तरह की मॉडरेशन को अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला मानते हैं।
 
मार्च के महीने में राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से साइन किए गए एक कार्यकारी आदेश में लिखा था, 'हम कुछ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स को ये इजाज़त नहीं दे सकते हैं कि वे अभिव्यक्ति के उस ढंग को चुने जिसका इस्तेमाल अमेरिकी जनता इंटरनेट पर कर सके।' दूसरे शब्दों में, मध्यस्थता करने के फ़ैसले को दार्शनिक रूप से संरक्षणवाद का विरोधी माना जा सकता है।
 
ट्रंप ने ये भी कहा कि वह कम्युनिकेशन डिसेंसी एक्ट के सेक्शन 320 को भी हटा देंगे। इस क़ानून की वजह से सोशल मीडिया कंपनियों का उनके प्लेटफॉर्म पर उपयोगकर्ताओं द्वारा कही-लिखी गई बातों के प्रति उत्तरदायित्व ख़त्म हो जाता है। ऐसे में इस क़ानून की अनुपस्थिति सोशल मीडिया इंडस्ट्री के लिए एक बड़ा झटका साबित होगी।
 
और अब जब तकनीक क्षेत्र की बड़ी कंपनियां हस्तक्षेप की मुद्रा में आ रही हैं, चाहें वह QAnon षड्यंत्र हो, हेट स्पीच हो या अन्य प्रतिबंधित गतिविधि हो। पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगता रहेगा। और जिस तरह पक्षपातपूर्व रवैया अपनाने के इन आरोपों को सिद्ध करना मुश्किल है, उसी तरह इन्हें अस्वीकार करना उतना ही मुश्किल है। और अब सोशल मीडिया कंपनियां उस स्थिति में हैं जहां वे इस बात को पुरज़ोर ढंग से कहती हैं कि वे पक्षपातपूर्ण रवैया नहीं अपनाती हैं। लेकिन ज़्यादातर अमेरिकी जनता उन पर भरोसा नहीं करती है।

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