यूक्रेन-रूस युद्धः डोनबास पर क्यों टिक गई है पुतिन की नज़र?

BBC Hindi
बुधवार, 20 अप्रैल 2022 (07:46 IST)
पॉल किर्बी, बीबीसी संवाददाता
राजधानी कीएव के पास से अपनी सेना वापस बुलाने के बाद, रूस ने पूर्वी यूक्रेन में युद्ध तेज कर दिया है। यूक्रेन के नेता वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की का कहना है कि डोनबास के लिए लड़ाई शुरू हो गई है और इस लड़ाई में रूस की सेना का एक बड़ा हिस्सा शामिल है।
 
व्लादिमीर पुतिन को क्या चाहिए इससे पहले कि वो यूक्रेन के पुराने औद्योगिक केंद्र को आजाद करवाने के अपने लक्ष्य में सफलता का दावा करें और क्या ये संभव है?
 
यूक्रेन की सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षित सेनाएं पहले से ही पूर्व में तैनात हैं क्योंकि वहां पर पिछले आठ साल से रूस समर्थित अलगाववादियों के साथ युद्ध चल रहा है। ऐसा माना जाता है कि उन्हें भारी नुकसान हुआ है लेकिन अभी भी रूस की सेना के लिए ये एक बड़ी चुनौती है।
 
रूसी सेना पहले ही पूर्व में मानवीय तबाही मचा चुकी है, लेकिन अभी भी बंदरगाह शहर मारियुपोल पर नियंत्रण नहीं कर पाई है। यूक्रेन के राष्ट्रपति ने कहा है, ''हम अपनी जमीन के एक एक इंच के लिए लड़ेंगे'' और रूस का नया हमला एक लंबे संघर्ष की शुरुआत कर सकता है।
 
डोनबास क्या है?
जब राष्ट्रपति पुतिन डोनबास की बात करते हैं, तो वे यूक्रेन के पुराने कोयला और इस्पात उत्पादक क्षेत्र की बात कर रहे होते हैं। इसका मतलब दो बड़े क्षेत्र जिसमें लुहान्सक और दोनेत्स्क से है। जो दक्षिण में मारियुपोल के बाहर से उत्तरी सीमा तक हैं।
 
रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट के सैम क्रैनी-इवांस कहते हैं, "रूस का मानना है कि यूक्रेन का रूसी भाषा बोलने वाला हिस्सा यूक्रेन से अधिक रूस है''
 
ये क्षेत्र मोटे तौर पर रूसी भाषी हो सकते हैं, लेकिन वे अब रूसी समर्थक नहीं हैं। रोचन कंसल्टिंग के प्रमुख रक्षा विशेषज्ञ कोनराड मुज़्यका कहते हैं, ''मारियुपोल यूक्रेन में सबसे अधिक रूसी समर्थक शहरों में से एक था और इस पर हमला करना मेरी समझ से परे है''
 
युद्ध के एक महीने बाद, रूस ने लुहान्स्क क्षेत्र के 93% और दोनेत्स्क के 54% हिस्से पर नियंत्रण करने का दावा किया।
 
रूस के राष्ट्रपति को अभी भी पूरे क्षेत्र को अपने अधीन करने में एक लंबा रास्ता तय करना है। भले ही रूस जीत का दावा करने में सक्षम हो लेकिन नियंत्रण करने के लिए एक ये एक बहुत बड़ा क्षेत्र है।
 
पुतिन क्यों डोनबास को नियंत्रित करना चाहते हैं
रूसी नेता ने बार-बार निराधार आरोप लगाए हैं कि यूक्रेन ने पूर्वी हिस्से में नरसंहार किया है। जब युद्ध शुरू हुआ, तो पूर्वी क्षेत्रों का लगभग दो-तिहाई हिस्सा यूक्रेन के हाथों में था। बाकी हिस्से को रूसी परदे के पीछे से चला रहे थे, जिन्हें आठ साल पहले शुरू हुए युद्ध के दौरान मास्को से समर्थन मिला हुआ था।
 
युद्ध से ठीक पहले, राष्ट्रपति पुतिन ने दोनों पूर्वी क्षेत्रों को स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में मान्यता दी थी। अगर रूस दोनों बड़े क्षेत्रों को जीत लेता है तो ये व्लादिमीर पुतिन के लिए किसी उपलब्धि से कम नहीं होगा। रूस के लिए अगला कदम तब डोनबास को शामिल करना होगा। ठीक वैसे ही जैसे रूस ने क्रीमिया के साथ 2014 में एक झूठे जनमत संग्रह के बाद किया था।
 
अगर ये 9 मई से पहले होता है तो रूस विजय दिवस पर इसका जश्न मना सकेंगे। विजय दिवस 1945 में नाजी जर्मनी पर रूस की विजय का प्रतीक है।
 
लुहान्स्क में रूस के कठपुतली नेता पहले ही आने वाले दिनों में एक जनमत संग्रह कराने की बात कह चुके हैं, हालांकि युद्ध क्षेत्र में वोट के दिखावे का विचार बेतुका लगता है।
 
क्या है पुतिन की रणनीति?
यूक्रेन की सेना का मानना ​​है कि रूस न केवल डोनबास पर ही नहीं बल्कि क्रीमिया के उत्तर और पश्चिम में खेरसॉन के दक्षिणी क्षेत्र पर भी पूरी तरह से कब्जा करना चाहता है। इससे उसे दक्षिणी तट से रूसी सीमा तक एक जमीनी रास्ता मिल जाएगा और इससे क्रीमिया में पानी की आपूर्ति को नियंत्रित भी किया जा सकेगा।
 
दोनेत्स्क और लुहान्स्क के प्रमुख क्षेत्र अभी भी यूक्रेन के हाथों में हैं, इसलिए रूसी सेना उत्तर, पूर्व और दक्षिण से आगे बढ़ते हुए पूर्व में यूक्रेन की सेना को घेरने की कोशिश कर रही है।
 
किंग्स कॉलेज लंदन में कनफ्लिक्ट एंड सिक्योरिटी के प्रोफेसर ट्रेसी जर्मन कहते हैं, ''ये कब्जा करने के लिए एक बड़ा क्षेत्र है और मुझे लगता है कि हमें उसकी भौगोलिक जटिलताओं को कम नहीं समझना चाहिए।''
 
वे अब तक रूसी सीमा के दक्षिण में यूक्रेन के दूसरे शहर खार्किव पर कब्जा करने में विफल रहे हैं, लेकिन उन्होंने इज़्युम पर कब्जा कर लिया है। इज़्युम अलगाववादी नियंत्रित पूर्व की तरफ का एक रणनीतिक शहर है।
 
प्रोफेसर जर्मन कहते हैं, ''अगर आप देखें कि वे इज़्युम के आसपास क्या कर रहे हैं, वे राजमार्गों की मुख्य लाइनों का पीछा कर रहे हैं। इससे ये समझ आता है कि वे अपने ज्यादातर उपकरण सड़क और रेल के जरिए ले जा रहे हैं।''
 
जो शहर रूस की पहुंच में हैं वे सालों से युद्ध का अनुभव कर चुके हैं जब से रूस समर्थित अलगाववादियों ने पहली बार डोनबास के बड़े हिस्से पर कब्ज़ा किया था।
 
M03 रोड के नीचे अगला बड़ा लक्ष्य 125,000 लोगों का शहर स्लोवेन्स्क है, जिसे 2014 में रूसी समर्थित बलों ने फिर से कब्ज़ा करने से पहले सीज़ कर लिया था। दक्षिण की तरफ स्थित क्रामाटोर्स्क पर कब्जा करना भी एक बड़ा उद्देश्य है।
 
अमेरिका स्थित इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर (ISW) का कहना है कि अगर यूक्रेन स्लोवेन्स्क पर कायम रहा, तो दोनों क्षेत्रों पर कब्जा करने का रूस का अभियान असफल हो जाएगा।
 
रूसी सेना ने उत्तर और पूर्व से आगे बढ़ते हुए लुहान्स्क में यूक्रेनी-नियंत्रित शहरों पर हमला किया है। उन्होंने सेवेरोडनेत्स्क के उत्तर-पश्चिम में क्रेमेना पर कब्जा कर लिया है और रुबिज़ने, पोपसना और लिसिकांस्क सहित शहरों पर बमबारी की है।
 
आईएसडब्ल्यू का कहना है कि ये शहर महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन पर नियंत्रण करने से रूस पश्चिम की ओर जा पाएगा और इज़्युम के दक्षिण-पूर्व में रूसी बलों के साथ जुड़ सकेगा। यही कारण है कि यूक्रेन की सेना इज़्युम के बाहर उस क्षेत्र में रूस के हमलों को जवाब देने पर ध्यान दे रही है।
 
रूस को सड़क मार्ग से आपूर्ति लाइनों को नियंत्रित करने और पश्चिम से रेल मार्गों तक यूक्रेनी पहुंच को रोकने की जरूरत है। रेल यूक्रेनी सैनिकों और भारी हथियारों के लिए सबसे प्रभावी परिवहन है और ये नागरिकों के भागने के लिए भी सबसे तेज़ रास्ता है। रेल नेटवर्क के कुछ हिस्सों को नियंत्रित करने से रूसी सेना को अपने सैनिकों और आपूर्ति को एक जगह से दूसरी जगह भेजने में आसानी होगी।
 
क्षेत्रीय सैन्य प्रशासन के प्रमुख सेरही हैदाई का मानना ​​है कि लुहान्सक की पश्चिमी क्षेत्रीय सीमाओं तक पहुंचने का जो लक्ष्य व्लादिमीर पुतिन का है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए रास्ते में आने वाली हर चीज को नष्ट करना है।
 
27 साल की मैरीना अगाफोनोवा अपने परिवार को छोड़ लिसिकांस्क के अपने घर से भाग गई क्योंकि रूसी गोले लगातार गिर रहे थे। उनका कहना है, ''उन्होंने अस्पतालों और रिहायशी इमारतों पर हमले किए। वहां ना तो हीटिंग की व्यवस्था है और ना ही बिजली''
 
रूसियों के बढ़ने से पहले नागरिकों को बाहर निकाला जा रहा है। हैदाई ने चेतावनी दी है, ''रूसी गोले से अपनी नींद में रहना और जलना बहुत अधिक डराने वाला है''
 
उत्तर में इज़्युम और दक्षिण में मारियुपोल और मेलिटोपोल तक रेल लाइनें काट दी गई हैं। स्लोवियांस्क से सेवाएं बाधित हो गई हैं और पास के क्रामाटोर्स्क हब से कोई ट्रेन नहीं चली है क्योंकि रॉकेट हमले में 57 लोग मारे गए थे, वे लोग ट्रेनों में चढ़ने का इंतजार कर रहे थे।
 
यूक्रेन सेना के पास कितनी ताकत बची है?
युद्ध की शुरुआत में, पूर्व में यूक्रेन के ज्वाइंट फोर्सेज ऑपरेशन (जेएफओ) को बनाने वाली 10 ब्रिगेडों को यूक्रेन के पास सबसे अच्छी और प्रशिक्षित सैनिकों के रूप में माना जाता था।
 
रॉयल यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट के सैम क्रैनी-इवांस का मानना है कि हाल के हफ्तों में वालंटियर के जरिए उनकी संख्या बल को बढ़ाया गया होगा। वे कहते हैं, ''हम वास्तव में अब यूक्रेनी बलों की ताकत नहीं जानते हैं।''
 
कोनराड मुज़्यका कहते हैं, "यूक्रेन का मकसद रूस को जितना संभव हो उतना बड़ा नुकसान पहुंचाना है और यूक्रेनियन बड़ी लड़ाई से बचने के लिए एसिमिट्रिक रणनीति का इस्तेमाल कर रहे हैं।''
 
अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि रूस के पास अब पूर्व में 76 बटालियन सामरिक समूह हैं, जिन्होंने हाल के दिनों में इस क्षेत्र में 11 को जोड़ा है, और सीमा के उत्तर में फिर से आपूर्ति की जा रही है। इसमें आम तौर पर 700 से 900 पुरुषों रखते हैं।
 
उनको मजबूत करने के बावजूद, बड़ा संदेह ये है कि रूसी सेना किसी भी सफलता को तेजी से हासिल करेगी। अमेरिका स्थित इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर का मानना ​​​​है कि वे यूक्रेन को बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी होगी। जबकि यूक्रेनी सैन्य विशेषज्ञों का मानना ​​​​है कि रूस के कई बटालियन खराब स्थिति में हैं।
 
सात हफ्तों के संघर्ष के बाद रूसी सेना को पहले ही भारी नुकसान हुआ है और मनोबल भी काफी कमजोर माना जा रहा है। उनकी यूनिट में स्थानीय अलगाववादी क्षेत्रों से लोग भी शामिल हैं जिनमें से कई दबाव में हैं। ऐसा ही हाल रूसी सेना का भी है।
 
अलगाववादी लुहान्स्क में जीवन कितना मुश्किल?
रूसी समर्थित अलगाववादियों के नियंत्रण में जीवन शांत है, हालांकि अलगाववादी अधिकारियों ने यूक्रेनी बलों पर आवासीय भवनों पर गोलाबारी करने और नागरिकों को मारने का आरोप लगाया है।
 
दोनेत्स्क स्टेटलेट के अधिकारियों का कहना है कि फरवरी के मध्य से अब तक 72 नागरिकों की मौत हो चुकी है। यूक्रेन के नियंत्रण वाले क्षेत्र में रूसी हमलों में अब तक और भी कई लोग मारे गए हैं।
 
लुहान्सक की एक महिला ने नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी को बताया कि उसने शहर में बहुत सारे रूसी सैन्य कवच देखे थे और माहौल भय और सावधानी का था।
 
उन्होंने कहा, "मुझे डर लग रहा है, ये डरावना है''। उन्होंने समझाया, "वे आदमी जिनकी उम्र सेना में शामिल होने की है उन्हें स्थानीय रूसी प्रॉक्सी मिलिशिया में शामिल होना जरूरी है। जो इस प्रस्ताव से अलग राय रखता है वो छिपा हुआ है।''
 
उनका कहना है, ''वे सड़कों पर पुरुषों को लामबंद कर रहे हैं, उन्हें पकड़ रहे हैं। दुकानों में, शहर में, सड़कों पर कोई आदमी नहीं है।"
 
इसकी वजह से वो सारे काम-काज बंद हैं जिन्हें पुरुष चलाते हैं। वो कहती हैं,"हम पहले से ही रूस हैं, हालांकि सिर्फ अनौपचारिक रूप से। सभी के पास रूसी पासपोर्ट है।"

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