ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने का कौन ज़िम्मेदार?

BBC Hindi

मंगलवार, 10 मार्च 2020 (14:15 IST)
मध्य प्रदेश में बीते कुछ दिनों से चल रहा सियासी सस्पेंस अब ख़त्म हो गया है। कांग्रेस महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को पार्टी छोड़ दी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 9 मार्च को दिए अपने इस्तीफ़े को 10 मार्च को सार्वजनिक किया।
 
ये इस्तीफ़ा सिंधिया के मंगलवार सुबह पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह से मुलाक़ात के बाद सामने आया है। ऐसे में मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार के सामने अब सरकार बचाने की चुनौती है।
 
माना जा रहा है कि सिंधिया बीजेपी का दामन थाम सकते हैं और इस फ़ैसले के साथ ही सिंधिया के ख़ेमे वाले विधायक भी कांग्रेस छोड़ सकते हैं।
 
सिंधिया ने अपने इस्तीफ़े में लिखा है, ''मेरी ज़िंदगी का शुरू से मक़सद अपने राज्य और देश के लोगों की सेवा करना रहा है। मुझे लगता है कि अब कांग्रेस में रहकर मैं ऐसा नहीं कर पा रहा हूं।''
 
सिंधिया का इस्तीफ़ा, सोशल मीडिया पर चर्चा
जब भारत के ज़्यादातर हिस्सों में होली मनाई जा रही है, तब सिंधिया के इस फ़ैसले ने लोगों को चौंकाया। सिंधिया के फ़ैसले की सोशल मीडिया पर भी चर्चा है। हमने बीबीसी हिंदी के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कहासुनी के ज़रिए लोगों से सवाल किया- सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के लिए आप किसे ज़िम्मेदार मानते हैं? इस सवाल पर हमें कुछ ही मिनटों पर हज़ार से ज़्यादा प्रतिक्रियाएं मिलीं।
 
समीन शर्मा ने लिखा, ''एक आम नागरिक की तरह जीना सिंधिया के लिए हमेशा मुश्किल रहा है। वो हमेशा एक पोज़िशन चाहते थे इसलिए सिंधिया ने अपनी वफ़ादारी बदल दी।''
 
ओम प्रकाश चौधरी लिखते हैं, ''कांग्रेस छोड़ने के लिए कोई और नहीं।।। ख़ुद सिंधिया और उनकी तमन्नाएँ ज़िम्मेदार हैं।''
 
अशरफ़ जमील ने लिखा, ''ये दिल्ली नेतृत्व की हार है। न सिर्फ़ सिंधिया बल्कि सचिन पायलट भी कांग्रेस के पुराने लोगों और विचारों को ढो रहे हैं। सिंधिया का फ़ैसला बहुत अच्छा है। लेकिन अगर वो बीजेपी जॉइन करते हैं तो उनकी स्थिति फिर वैसी ही हो जाएगी। दुआ कीजिए कि सिंधिया का भविष्य बेहतर हो।''
 
जवाहर अली ने कहा, ''कांग्रेस में कोई लीडरशीप नहीं है।''
 
संकेश कुमार ने व्यंग्य किया, ''सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने का ज़िम्मेदार हम नेहरू को मानते हैं।''
 
ट्विटर हैंडल @bhaiyyajispeaks ने लिखा, ''एक बात आप सभी के लिए जानना ज़रूरी है। ज्योतिरादित्य के पास ज़्यादा कोई विकल्प बचा भी नहीं था। मध्यप्रदेश में सरकार बनाने के लिए बीजेपी के पास पर्याप्त विधायक थे, सरकार बनाने के लिए सिंधिया के बिना भी तैयारी पूरी थी। कमलनाथ हर विधायक को 'व्यापारी' बनाना चाहते थे, उल्टा पड़ गया।''

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी