भारत के पूर्व कानून मंत्री और जानेमाने अधिवक्ता राम जेठमलानी का आज दिल्ली में 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। अपने 78 साल लंबे वकालत के पेशे में उन्होंने इंदिरा गांधी की हत्या, जेसिका लाल हत्याकांड, राजीव गांधी हत्याकांड, चारा घोटाला और टूजी मामले में अभियुक्तों के वकील की भूमिका निभाई। उन्होंने लगभग हर उस मुकद्दमे को लड़ा जिसने भारत की राजनीति और समाज को एक नई दिशा दी।
अगर किसी एक केस की बात की जाए जिसने राम जेठमलानी को राष्ट्रीय पटल पर पहचान दिलाई तो वो था नानावती केस, जिसने पूरे भारत को हिलाकर रख दिया।
1959 का ये मामला नौसेना में काम कर रहे अधिकारी कवास मानिकशॉ नानावती के इर्दगिर्द था, जिन पर आरोप था कि उन्होंने अपनी पत्नी के प्रेमी की हत्या कर, खुद को सरेंडर किया।
नानावती बनाम महाराष्ट्र सरकार वाले इस मामले में जेठमलानी सीधे तौर पर दोनों में से किसी पक्ष में नहीं थे, लेकिन सरकारी वकील के साथ अदालत के सामने पेश करने के लिए दलीलें तैयार करने में उनकी भूमिका अहम रही थी। क्रिमिनल लॉयर के रूप में उन्हें जो महारथ हासिल थी उसका लोहा दुनिया के बड़े-बड़े वकील भी मानते थे।
उनकी वकालत को करीब से देखने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे बताते हैं, 'वकालत के पेशे में जेठमलानी एक बेहद शानदार व्यक्तित्व वाले वकील थे। जितने वकील उनके संपर्क में आए, उन्होंने उन्हें खूब प्यार और स्नेह दिया। जेठमलानी मानवाधिकारों के एक बड़े समर्थक थे। उन्होंने इसके लिए अपनी भूमिका भी निभाई। जेठमलानी जी कभी भी जीत या हार के लिए वकालत नहीं करते थे। उनका मकसद रहता था कि कोर्ट के सामने कानून को ठीक ढंग से पेश किया जाए।'
राम जेठमलानी को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का काफ़ी करीबी मित्र माना जाता था। वाजपेयी सरकार में जेठमलानी ने कानून मंत्रालय भी संभाला। लेकिन बाद में एटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के साथ विवाद पैदा होने के बाद उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा।
इसके बाद जेठमलानी ने अटल बिहारी वाजपेयी के ख़िलाफ़ कांग्रेस के समर्थन से चुनाव भी लड़ा। बाद में लालू प्रसाद यादव की पार्टी से राज्यसभा सासंद के रूप में भी वो चुने गए।
हालांकि, दुष्यंत दवे मानते हैं कि दिल से वे बीजेपी के समर्थक थे। वो बताते हैं, 'जेठमलानी वकालत के पेशे में नेक इंसान थे और उसी तरह उन्होंने सोचा कि पब्लिक लाइफ़ भी साफ-सुथरा पेशा होगा। लेकिन पार्टी ने उन्हें समझा नहीं और उनके ख़िलाफ़ दुर्भाग्यशाली फ़ैसला लिया। जेठमलानी दिल से बीजेपी के समर्थक थे।'
सोली सोराबजी-जस्टिस आनंद विवाद
जिस दौरान जेठमलानी केंद्रीय क़ानून मंत्री थे, उस दौरान सोली सोराबजी एटॉर्नी जनरल थे और ए एस आनंद सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस थे।
लेकिन कुछ कानूनी मसलों को लेकर राम जेठमलानी और चीफ़ जस्टिस ए एस आनंद के बीच अहम के टकराव की स्थिति पैदा होने लगी। इसके बाद जेठमलानी और सोली सोराबजी के बीच में भी तनाव बढ़ने लगा। मामला बढ़ा और ऐसी स्थिति आ गई कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच में टकराव की स्थिति बन गई। जेठमलानी ने उस वक्त ये तक कह दिया था कि सोली सोराबजी के साथ वो काम नहीं करना चाहते।
इसके बाद वाजपेयी ने इस टकराव को रोकने के लिए जसवंत सिंह को बोल कर जेठमलानी का इस्तीफ़ा मांगा। जेठमलानी ने भी तुरंत इस्तीफ़ा दे दिया।
इस पूरे विवाद पर अलग-अलग पक्षों की अलग-अलग राय है। लेकिन बीजेपी के टिकट से राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील सुब्रमण्यम स्वामी मानते हैं कि कानून मंत्री होने के नाते सोली सोराबजी-जस्टिस आनंद विवाद में जेठमलानी ने ग़लत बयान दिया था।
वो कहते हैं, 'निश्चित तौर पर उन्होंने क़ानून मंत्री होते हुए चीफ़ जस्टिस के ऊपर जो टिप्पणी की थी, वो मुनासिब नहीं थी। मैं समझता हूं कि जेठमलानी का सबसे ज़्यादा फायदा अटल बिहारी वाजपेयी ने उठाया था और जेठमलानी सरकार के इस कदम से काफ़ी दुखी भी थे। लेकिन जेठमलानी ने ग़लती भी की थी।'
जेठमलानी ने अपने 78 साल लंबे करियर में सोहराबुद्दीन फेक एनकाउंटर मामले में अमित शाह, जेसिका लाल हत्याकांड में मनु शर्मा और चारा घोटाला मामले में लालू प्रसाद यादव के पक्ष में केस लड़ा।
ऐसे में कई लोग ये सवाल उठाते हैं कि आख़िर जेठमलानी अक्सर अभियुक्त के पक्ष से ही केस क्यों लड़ते थे और क्या जेठमलानी समेत और वकीलों के मन में किसी केस को लेते समय इंसाफ़ और सत्य आदि का धर्म संकट खड़ा नहीं होता है।
दुष्यंत दवे बताते हैं, 'मुझे नहीं लगता कि ऐसा कोई धर्मसंकट वकीलों के सामने रहता है। क्योंकि वकील का फर्ज है कि अपने मुवक्किल का बचाव करे। क्योंकि सत्य तो आख़िरकार कोर्ट ही तय करती है।'
'जेठमलानी साहब एक बहुत ही अलग किस्म के वकील थे जिनके दिल में हर दम ये बात रहती थी कि सत्य सामने आए। और वो सत्य के लिए लड़ें।'
'कोर्टरूम में रहा शानदार रिकॉर्ड'
कोर्ट रूम में राम जेठमलानी की दलीलों का लोहा माना जाता था। वो अपने तेज दिमाग़ और त्वरित जवाब देने की शैली से अदालत के गंभीर हुए माहौल को भी हल्का कर देते थे।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक मनोज मिट्टा कहते हैं, 'एक बेमिसाल क्रिमिनल लॉयर होने के नाते, राम जेठमलानी के क्लाइंट्स में हाजी मस्तान, हर्षद मेहता, संजय दत्त, मनु शर्मा, आसाराम बापू, बाल ठाकरे और अमित शाह थे।'
'ये आश्चर्य की बात है कि मानवाधिकारों के बचाव को लेकर भी उनका रिकॉर्ड शानदार था। उन्होंने 1984 के सिख दंगों में पी वी नरसिम्हा राव की संलिप्तता के मामले में उनको सलाह दी। लेकिन 2002 के गुजरात दंगों में उन्होंने खुद को इससे दूर रखा।'
जेठमलानी को एक लंबे समय तक वकालत करते हुए देखने वालीं वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन ने एक ऐसे ही किस्से को बीबीसी के साथ साझा किया।
जॉन बताती हैं, 'कोई दस साल पुरानी बात है। जेठमलानी जी कोर्ट में अपनी दलील दे रहे थे। तभी जज ने पूछ लिया कि जेठमलानी जी आपकी उम्र क्या है। इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मेरी उम्र 84 वर्ष है। लेकिन मेरे शरीर के अंगों की उम्र अलग है। मेरा दिल और दिमाग़ अभी भी जवान है। जेठमलानी जी कुछ इस तरह अपनी हाज़िरजवाबी से कोर्ट के गंभीर हुए माहौल को भी हल्का बना देते थे।'
बतौर वकील भी जो मामले उन्होंने लड़े, उससे भी वो हमेशा चर्चा में रहे। चाहे वो हर्षद मेहता का मामला हो या प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के कार्यकाल के दौरान हुआ सांसद रिश्वत कांड। जेठमलानी ने बड़े-बड़े मामलों में अभियुक्तों की पैरवी की और हमेशा कहा कि ऐसा करना बतौर वकील उनका कर्तव्य है।
यही कारण है कि कई वरिष्ठ अधिवक्ता मानते हैं कि भारत में जब जब कानून, वकालत और अदालतों की बात होगी, राम जेठमलानी, उनकी बेबाकी और उनसे जुड़े विवाद लोगों को याद आएंगे।