बिलकिस बानो पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से क्या बढ़ेगी सियासी सरगर्मी

BBC Hindi
मंगलवार, 9 जनवरी 2024 (07:54 IST)
राघवेंद्र राव, बीबीसी संवाददाता
साल 2022 का 15 अगस्त सिर्फ भारत के स्वतंत्रता दिवस के रूप में चर्चा में नहीं रहा था। उसी दिन गुजरात की गोधरा जेल से उन 11 लोगों को सजा में छूट देकर रिहा कर दिया गया था जो 2002 के गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में उम्र-क़ैद की सजा काट रहे थे।
 
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इन 11 दोषियों की सजा को माफ़ करने के गुजरात सरकार के फ़ैसले को रद्द कर दिया और उन्हें दो हफ़्ते के भीतर जेल अधिकारियों को रिपोर्ट करने का निर्देश दिया।
 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सजायाफ़्ता मुजरिमों की सजा माफ़ी की अर्ज़ी पर विचार करना गुजरात सरकार के अधिकारक्षेत्र के बाहर था और इस अर्ज़ी पर वही राज्य सरकार फ़ैसला ले सकती थी, जहाँ सजा सुनाई गई न कि उस राज्य की सरकार जहाँ अपराध हुआ या जहाँ दोषियों को जेल भेजा गया।
 
गुजरात सरकार पर सवाल
सोमवार के फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिलकिस बानो केस में सजा काट रहे 11 दोषियों की सजा माफ़ी की अर्ज़ी सुनने के लिए उपयुक्त सरकार महाराष्ट्र सरकार थी।
 
इसकी वजह ये है कि 21 जनवरी, 2008 को मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत ने बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप और परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में 11 अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी और बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उनकी सजा को बरक़रार रखा था। ये दोनों ही फ़ैसले महाराष्ट्र में लिए गए थे।
 
15 साल से अधिक की जेल की सजा काटने के बाद दोषियों में से एक राधेश्याम शाह ने सजा माफ़ी के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था और 13 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को सजा माफ़ी के मुद्दे पर गौर करने का निर्देश दिया था।
 
इसके बाद गुजरात सरकार ने एक कमिटी का गठन किया और इस कमिटी ने मामले के सभी 11 दोषियों की सजा माफ़ करने के पक्ष में सर्वसम्मत फ़ैसला लिया और उन्हें रिहा करने की सिफ़ारिश की।
 
आख़िरकार, 15 अगस्त 2022 को इस मामले में उम्र कै़द की सजा भुगत रहे 11 दोषियों को जेल से रिहा कर दिया गया।
 
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि दोषियों की सजा-माफ़ी और रिहाई सुनिश्चित करने में गुजरात सरकार की इन 11 दोषियों में से उस दोषी (राधेश्याम शाह) से मिलीभगत थी, जिसने गुजरात हाई कोर्ट के समक्ष असफल होने पर गुप्त रूप से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर की और तथ्यों को रखे बिना बिना सजा माफ़ी की मांग की।
 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब इस दोषी को तथ्यों को छुपाने की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने राहत दे दी तो बाक़ी सभी 10 दोषियों ने भी इस स्थिति का फ़ायदा उठाते हुए उसी राहत की मांग की जो गुजरात सरकार ने उन्हें दे दी।
 
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक़ गुजरात सरकार की ये कार्रवाई क़ानून की भावना के ख़िलाफ़ थी।
 
बीजेपी के लिए झटका?
बिलकिस बानो केस में इन 11 दोषियों का दोबारा जेल जाना तय है। तो इस सवाल का उठना स्वाभाविक है कि क्या ये फ़ैसला बीजेपी के लिए एक झटका है।
 
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नीरजा चौधरी कहती हैं सुप्रीम कोर्ट का सजा-माफ़ी को रद्द करना एक दूरगामी मामला है।
 
वह कहती हैं, "जब सजा-माफ़ी हुई थी तो लोग भौचक्के रह गए थे। आज बीजेपी की सरकार गुजरात में भी है और केंद्र में भी है। तो सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला गुजरात की सरकार के लिए एक धक्का तो है।"
 
तो क्या विपक्ष बीजेपी को इस मुद्दे पर घेर पाएगा? नीरजा चौधरी कहती हैं, "विपक्ष के पास सरकार को घेरने के लिए कई मुद्दे हैं लेकिन वो उनका फ़ायदा नहीं उठा पाते। गुजरात में विपक्ष इसे मुद्दा बना सकता है लेकिन वहाँ बीजेपी इतनी मज़बूत है कि उस पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा।"
 
चौधरी कहती हैं कि ये कहना थोड़ी जल्दबाज़ी होगी लेकिन ये देखना दिलचस्प होगा कि अगर नरेंद्र मोदी तीसरी बार सत्ता में आते हैं तो क्या वो मुसलमानों और अल्पसंख्यकों तक नए तरीक़े से पहुँचने की कोशिश करेंगे।'
 
वह कहती हैं, "हो सकता है वो ऊँची जाति के मुसलमानों तक पहुँचने की कोशिश न करें लेकिन ये देखें कि ग़रीब और पिछड़े हुए मुसलमानों के लिए वो क्या कर सकते हैं... उनके तीसरे कार्यकाल में उनकी विरासत क्या होगी?"
 
विपक्ष का बीजेपी पर निशाना
सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद कांग्रेस पार्टी ने X पर लिखा, "बिलकिस बानो के बलात्कारी फिर से जेल जाएंगे, BJP सरकार ने इन बलात्कारियों की रिहाई करवाई थी। बिलकिस बानो केस में आया सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला ऐतिहासिक है।''
 
''यह फ़ैसला गुजरात की BJP सरकार द्वारा बिलकिस बानो के बलात्कारियों की रिहाई करने के महिला विरोधी कृत्य को उजागर करता है। यह बताता है कि महिलाओं को लेकर BJP की सोच कितनी घृणित है।"
 
एक अन्य ट्वीट में पार्टी ने कहा, "चुनावी फायदे के लिए ‘न्याय की हत्या’ की प्रवृत्ति लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए ख़तरनाक है। आज सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले ने एक बार फिर देश को बता दिया कि ‘अपराधियों का संरक्षक’ कौन है। बिलकिस बानो का अथक संघर्ष, अहंकारी भाजपा सरकार के विरुद्ध न्याय की जीत का प्रतीक है।"
 
एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, "मैं पहले दिन से कह रहा हूं कि बीजेपी एक पार्टी के तौर पर बिलकिस बानो के बलात्कारियों की मदद कर रही है। अब सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फैसले से यह फिर सच साबित हो गया है। मैं बिलकिस बानो की बहादुरी को सलाम करता हूं। उथल-पुथल भरे समय से गुजरने के बावजूद अल्लाह ही जानता है कि वह किस डर और दर्द से गुज़री हैं।"
 
बीजेपी पर निशाना साधते हुए ओवैसी ने कहा, "यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि भाजपा जो नारी शक्ति, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की बात करती है।।।ये सभी दावे खोखले हैं। बीजेपी को बिलकिस बानो के साथ खड़ा होना चाहिए था। इसके बजाय उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि इन दोषियों को पहले रिहा कर दिया जाए। उन्हें रिहा कर दिया गया और एक ग़लत फ़ैसला किया गया। दो भाजपा विधायक सजा-माफ़ी की प्रक्रिया का हिस्सा थे। एक बीजेपी विधायक ने इन बलात्कारियों को संस्कारी कहा।"
 
क्या बढ़ेगी राजनीतिक सरगर्मी?
राजीव शाह गुजरात के वरिष्ठ पत्रकार हैं और फ़िलहाल 'काउंटरव्यू' नाम के न्यूज़-पोर्टल के मुख्य संपादक हैं।
 
बिलकिस बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के राजनीतिक असर के बारे में वो कहते हैं कि "बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि इस मामले पर कांग्रेस कैसी प्रतिक्रिया देती है"।
 
शाह कहते हैं, "ये जो फ़ैसला आया है, उसकी वजह से आरएसएस को ज़रूर लगा होगा कि ये एक झटका है। लेकिन बीजेपी गुजरात में इतनी मज़बूत है और कांग्रेस का राज्य से लगभग सफाया हो चुका है। क़रीब 13 फ़ीसदी वोटों के साथ आम आदमी पार्टी थोड़ा उभर कर आई है। तो ऐसी स्थिति में जहाँ विपक्ष बँटा हुआ है और बीजेपी प्रधानमंत्री मोदी की वजह से मज़बूत है, मुझे नहीं लगता कि इस मुद्दे का कोई ख़ास असर होगा।"
 
याद रहे कि 182 सीटों की विधान सभा में साल 2017 के चुनावों में बीजेपी को 99 और कांग्रेस को 77 सीटें मिली थी। लेकिन 2022 में हुए विधान सभा में जहाँ कांग्रेस 17 सीटों पर सिमट गई वहीं बीजेपी 156 सीटें जीतने में कामयाब रही।
 
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि गुजरात में बीजेपी बहुत ही मज़बूत स्थिति में है और विपक्ष के लिए उसके ख़िलाफ़ किसी भी मुद्दे पर लोगों का समर्थन हासिल करना बहुत मुश्किल हो गया है।
 
राजीव शाह कहते हैं कि ये बात भी तय नहीं है कि कांग्रेस इस मसले को प्रचार का एक बड़ा मुद्दा बनाएगी। वे कहते हैं, "अगर कांग्रेस इस मुद्दे पर अभियान चलाती भी है तो बीजेपी इसे हिंदुत्व विरोधी क़दम के तौर पर इस्तेमाल करने की कोशिश करेगी। तो मुझे नहीं लगता कि कांग्रेस इस मुद्दे का राजनीतिक इस्तेमाल करने की कोशिश करेगी।"
 
शाह कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि लोकसभा चुनावों से पहले ये एक चुनावी मुद्दा बनेगा या अदालत के इस फ़ैसले की वजह से गुजरात की राजनीति में कोई हलचल होगी।
 
'इस मुद्दे को जनता के सामने लेकर जाएंगे'
गुजरात बीजेपी के प्रवक्ता ऋत्विज पटेल से हमने बात कर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर पार्टी की प्रतिक्रिया जाननी चाही लेकिन उन्होंने इस विषय पर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया।
 
वहीं दूसरी तरफ गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोशी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी का मुखौटा उतर गया है।
 
वह कहते हैं, "सरकार और क़ानून की ज़िम्मेदारी पीड़ितों को संरक्षण देने और उन्हें न्याय दिलाने की होती है। इसके उलट भाजपा सरकार का रवैया ग़लत करने वालों को क़ानूनी संरक्षण देने का रहा है। मैं मानता हूँ कि गुजरात के विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक फ़ायदे के लिए ये पूरा खेल खेला गया था। इन लोगों का (रिहा किए लोगों का) स्वागत इस तरह किया गया जिस तरह कोई बड़े पैमाने पर राष्ट्र-निर्माण का काम करके आया है।''
 
वो कहते हैं, ''भाजपा ने इस बात को बढ़ावा दिया। राजनीतिक फ़ायदे के लिए जो खेल खेला गया था उस पर आज सर्वोच्च अदालत ने बीजेपी को एक करारा तमाचा लगाया है और संदेश दिया है कि जो हुआ वो ग़लत था। बीजेपी का मुखौटा उतर गया है और उसका असली चेहरा सामने आ गया है।"
 
दोषी कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी निश्चित और पर इस मुद्दे को लोगों के सामने लेकर जाएगी।

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