यज़ीदियों की पैतृक भूमि पर एक विशाल अक्षय पहाड़ सिंजार खड़ा है। सताए गए यज़ीदी लोग इसे अपने संरक्षक के रूप में देखते हैं। उनके परिवार के तंबू में एक पतली चटाई पर बैठ कर बात करने के दौरान हेड शिंगाले कहते हैं, "सिंजार पहाड़ ने हमें ही नहीं बल्कि कई अन्य यज़ीदियों को चार साल पहले बचाया था।"
उनके रहने की यह व्यवस्था इराक के सुदूरवर्ती इलाके में पहाड़ी पर बने तंबूओं में से एक है। प्लास्टिक शीट वाली एक खिड़की से हम सिंजार की चट्टानी ढलानों को देख सकते हैं जो हरी झाड़ियों से अटी पड़ी हैं।
2014 में इराक और पड़ोसी सीरिया में कथित इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों के खूनी हमलों के दौरान हेड का परिवार और उनके साथ ही हज़ारों यज़ीदी अपनी जान बचाकर गांव से भागे और यहां आ कर बस गए। अब भले ही आईएस गुट का नियंत्रण इस इलाके पर नहीं है, लेकिन उनके हमलों के चार साल बाद भी हेड का परिवार और कई अन्य लोग आज भी इन ढलानों पर रह रहे हैं। वो डरे हुए हैं कि आईएस लड़ाके कहीं फिर से लौट ना आएं।
उनके तंबू में हम जब पारंपरिक चाय और ताज़ा अंजीर खा रहे थे तो उन्होंने कहा, "हम अपने पड़ोसियों पर भरोसा नहीं करते। जब आईएस हमारे गांव में आए तो उन्हें यज़ीदियों के बारे में कुछ भी पता नहीं था। हमारे मुस्लिम पड़ोसियों ने उन्हें बताया कि यज़ीदी ईश्वर में विश्वास नहीं करते हैं और हम मुसलमान नहीं हैं।"
वो याद करते हैं, "आईएस ने पुरुषों को मार डाला, महिलाओं को ग़ुलाम बनाने के लिए इराक और सीरिया के बाज़ारों में बेच दिया।" 2014 में हुए उस हमले के बाद ही अमेरिका आईएस के ख़िलाफ़ सैन्य अभियान में शामिल हुआ। पश्चिमी हेलिकॉप्टर्स से सिंजार पहाड़ पर पानी और खाना भी गिराया गया था। जब यह ख़बर आई कि भूख और डिहाइट्रेशन से यज़ीदियों की मौत हो रही है।
भागने के दौरान फेंके गए गांव वालों के कपड़े अब भी पहाड़ पर कूड़े की तरह बिखरे पड़े हैं- जो एक दर्दनाक अतीत की याद दिलाते हैं। यज़ीदियों को लगता है कि दुनिया ने उन्हें त्याग दिया है। सिंजार की तलहटी में बसा शहर अब पूरी तरह से नष्ट हो चुका है। आईएस हमलावरों के रखे बम यहां मलबे के ढेर में आज भी पड़े हैं।
जिन्हें लगता है कि उन्हें भुला दिया गया है, उनके लिए यह भूलना बहुत मुश्किल है कि जब से आईएस ने उनकी ज़िंदगी तबाह की है तब से उन पर क्या-क्या गुज़री है।
महिलाओं पर आईएस के अत्याचार
इन तंबूओं में अपने तीन बच्चों के साथ रहने वाली बहार दाऊद में कहती हैं, "मैं कभी-कभी 30 बार बेहोश हो जाती थी।" यह कहने के थोड़ी देर बाद ही वो ज़मीन पर गिर जाती हैं। 7,000 अन्य यज़ीदी महिलाओं की तरह बहार को आईएस हमलावरों ने ग़ुलाम बना लिया था और उनके साथ बहुत क्रूरता की थी। माना जाता है कि आज भी क़रीब तीन हज़ार महिलाएं आईएस की ग़ुलामी में हैं।
उनके बच्चे उनके पीटे जाने का दाग़ दिखाते हैं। वो कहती हैं, "ये बच्चे आज भी अपने पिता और भाई के बारे में पूछते रहते हैं।" इस दौरान उनकी बेटी रमज़्या अपनी मां को ज़ोर से पकड़ लेती है। "हमें पिछले दो साल से उनके बारे में कुछ नहीं पता।"
इस परंपरागत परिवार में उनकी देखभाल के लिए कोई पुरुष मौजूद नहीं है। 33 वर्षीय मां और उनके बच्चे यहां यज़ीदियों की सहायता में जुटी जर्मन एजेंसी की सहायता से एक स्थानीय यज़ीदी परिवार के अनाथालय में रह रहे हैं। हज़ारों की संख्या में यज़ीदी अब इराक के उत्तरी कुर्दिस्तान इलाके में फैले विस्थापितों के शिविर में रह रहे हैं।
यज़ीदी कैंपों में आज भी कार्यरत उन कुछ अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) में से एक ब्रिटिश चैरिटी वार चाइल्ड के क्रिस फ़ेल्प्स कहते हैं, "यज़ीदी मानते हैं कि उनके पड़ोसियों ने उन्हें धोखा दिया और उनकी सरकार ने उन्हें भुला दिया और सहायता का प्रावधान घटता जा रहा है।"
मदद की मांग
बग़दाद में केंद्र सरकार और उत्तरी इराक के कुर्द प्रशासन के बीच विवादों ने कुर्द और अरब समेत उन इलाकों में राहत कार्यों और सुरक्षा व्यवस्था को और मुश्किल बना दिया है। वहीं बच्चों के साथ गेम खेल रहे एक शिक्षक से मैंने पूछा, "आपका क्या सपना है।"
उन्होंने बिना रुके कहा, "हम चाहते हैं कि सहायता के लिए यहां और भी एजेंसियां आएं और हमारी मदद करें। अगर वो यहां नहीं आतीं तो दुनिया को हमें यहां से बाहर निकलने में मदद करनी चाहिए।"
'हमने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया'
यज़ीदी धर्म विश्व की सबसे पुरानी धार्मिक परंपराओं में से एक है। पूरी दुनिया में 10 लाख से भी कम यज़ीदी हैं और इनमें से अधिकांश इराक में रहते हैं। उनके विश्वास, संस्कृति और मान्यताओं को ख़त्म करने के लिए किए गए आईएस के हमलों को संयुक्त राष्ट्र ने नरसंहार की संज्ञा दी है।
आईएस हमलों में बचे यज़ीदियों के सबसे बड़े मंदिरों में से एक के पुजारी शेख इस्माइल बहरी कहते हैं, "दुनिया के सभी देशों को हमारी स्थिति देखनी चाहिए। हमने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया है। हमें सुरक्षा और मदद की ज़रूरत है।"
यज़ीदियों की दुर्दशा से पिघले ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और जर्मनी समेत कुछ देशों ने सीमित संख्या में उन्हें अपने यहां शरण देने का मन बनाया है, खास कर उन महिलाओं को जो आईएस की क्रूरता का शिकार हुई हैं।