#100WOMEN : रेप और डिप्रेशन से उबरने में योग ने कैसे की एक महिला की मदद
बुधवार, 23 अक्टूबर 2019 (13:39 IST)
- जाह्नवी मूले
21 साल की उम्र में नताशा असल मायनों में जीवन जीना सीख पाईं। ये वो वक्त था जब उनके ब्वायफ्रेंड उन्हें छोड़ उनकी ज़िंदगी से बाहर चले गए। नताशा के लिए ये वक्त अपने भीतर चल रहे सभी तरह के द्वंदों को ख़त्म करने का था। लेकिन उनके घाव गहरे थे। जब नताशा करीब साढ़े 3 साल की थीं उन्होंने देखा कि उनकी मां ने एक दिन अचानक खुद को आग लगा ली। मानसिक रोग (स्कित्ज़ोफ्रेनिया) से पीड़ित उनके पिता को रिमांड होम भेज दिया गया।
नताशा अपने गॉडपेरेन्ट्स के साथ रहने लगीं। 7 साल की उम्र में उनके साथ बलात्कार किया गया। एक व्यक्ति ने उनके साथ ज़ोर ज़बर्दस्ती की थी लेकिन इसके बारे में उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया। इसके बाद के सालों में उन्हें कई बार यौन हिंसा का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने किसी को इसके बारे में कुछ नहीं बताया। नताशा ने बताया, मेरा पूरा बचपन खुद को दोषी ठहराने के दर्द में बीता। मैं हर बात के लिए खुद को ज़िम्मेदार मानती थी। दर्द शायद इस तरह मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन गया था कि मुझे खुद को पीड़ित समझना अच्छा लगने लगा था।
नताशा ने बताया, मुझे लगता था कि मेरे साथ बुरा होना ही चाहिए। नताशा अपने शरीर के साथ भी सहज नहीं थीं, उन्हें खुद पर भरोसा नहीं था। उन्हें डांस में आज़ादी की किरण दिखी। इसके साथ आत्मविश्वास के साथ वो खुद को बेहतर तरीके से व्यक्त करने लगी थीं। मुंबई के एक स्थानीय डांस स्कूल में उन्होंने जैज़, बैले और कॉन्टेम्पोरेरी डांस सीखा। लेकिन वो अपने इस शौक़ को आगे नहीं बढ़ा पाईं। घुटने में चोट लगने के कारण वो फिर डांस नहीं कर सकती थीं।
इसी उम्र में डिस्लेक्सिया (पढ़ने में आने वाली एक मानसिक समस्या) और बुलिंग (स्कूल में परेशान किए जाने) के कारण उन्होंने पढ़ाई में भी काफी महत्वपूर्ण समय गंवा दिया। किसी तरह उन्होंने स्नातक की डिग्री ली और फिर उनकी मां (जिन्होंने उनको पाला था) ने उन्हें टीचर बनने की राय दी। उनकी मां का मानना था कि ये नताशा के लिए सुरक्षित नौकरी होगी।
नताशा कहती हैं कि उनके नए परिवार ने उन्हें जिस तरह संभव हुआ प्यार ही दिया लेकिन उन्हें हमेशा इसमें कमी ही दिखती रही। वो कहती हैं, ये सब मेरी ही सोच थी। मैं कभी भी कुछ स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थी, मैं कभी अपनी बात किसी को नहीं बताती थी। वो कहती हैं, मैं किसी हाल में टीचर नहीं बनना चहती थी।
वक्त से काफी कुछ सीखा : इसके बाद नताशा के जीवन में एक अहम मोड़ आया, उनका ब्रेकअप हुआ और इसके साथ उनमें एक बदलाव की चाहत भी जागी। नताशा कहती हैं, मुझे पता था कि अब मेरे लिए चीज़ें बेहतर होना ज़रूरी था। ये वो वक्त था जब नताशा ने एक बड़ी बात सीखी, आपको खुद अपने मानसिक स्वास्थ्य का ख़याल रखना होगा क्योंकि आपके लिए कोई और ये काम नहीं करेगा। नताशा ने पाया कि वो खुद को दोष देने से उबर रही हैं और अपने शरीर के साथ सहज भी हो रही हैं।
वो कहती हैं, मेरे हिसाब से डिप्रेशन का मतलब होता है किसी भी व्यवहार की अति हो जाना। कभी-कभी मैं इतना खाना खा लेती थी कि सांस लेना भी मुश्किल हो जाता था। इसके बाद मैं कई बार उल्टी भी कर देती थी। और कई बार ऐसा भी होता था कि मैं अपने आप को भूखा रखती थी। कभी-कभी मैं सिर्फ सोई रहती थी जबकि कई बार मैं बिल्कुल भी नहीं सोती थी। भारत में मानसिक स्वास्थ्य को सामाजिक कलंक की तरह देखा जाता है और इससे पीड़ित लोगों की परेशानियों को अनदेखा किया जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक 4 में से एक व्यक्ति किसी न किसी तरह की मानसिक समस्या से ग्रस्त है और डिप्रेशन बेहद गंभीर चिंता का विषय है। कम उम्र में ही नताशा ने इसके लिए इलाज कराना शुरु कर दिया था लेकिन इस बार उन्होंने अपने स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए कुछ और रास्ते अपनाने का फ़ैसला किया। इस पर आगे बढ़ते रहने के लिए उन्होंने एक डायरी बनाई जिसमें वो रोज़ाना घटने वाली उन बातों का ज़िक्र करती थीं जिसके लिए वो ईश्वर को धन्यवाद कहना चाहती हैं।
साथ ही उन्होंने अपने लिए कुछ उद्देश्य भी तय किए। मेरा डिप्रेशन और फिर उसके कारण रहने वाला तनाव- इन बातों ने ही मुझे प्रेरणा दी कि मैं इससे बाहर निकलूं। मैं हर दिन अपने लिए छोटे-छोटे काम तय करने लगी थी। जैसे कि शाम को पांच मिनट की वॉक के लिए बाल कंघी कर के घर से बाहर निकलना। उन्होंने फ़ैसला किया कि जिस दिन वो अपने लिखे उद्देश्यों को पूरा नहीं कर पाएंगी वो खुद को दोष नहीं देंगी।
नताशा कहती हैं, मैं खुद से कहती थी कि नाकाम होना कोई गुनाह नहीं। मैं एक बार फिर से कोशिश करूंगी। मैं खुद से प्यार करना सीख रही थी। अपनी ज़िंदगी में घट रही बातों से जूझने का उन्होंने ये नया तरीका अपनाया था। वो कहती हैं कि मुझे याद है कि जब मुझे मेरे डॉक्टर मुझसे पूछा कि मैं कैसी हूं तो मैंने कहा था मैं ठीक हूं आप कैसे हैं। मैं दूसरों से इतना प्यार करती थी कि मैं खुद से प्यार करना भूल ही गई थी।
योग से बेहतर हुआ जीवन : डिप्रेशन और तनाव से उबरने की कोशिश में नताशा के जीवन में मेडिटेशन (ध्यान लगाना) बेहद अहम हो गया था। धीरे-धीरे उन्होंने इसके साथ मानसक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए योग करना शुरु किया। वो कहती हैं, चोट लगने के बाद मैं डांस या किसी तरह का काम जिसमें शरीर पर प्रेशर पड़े, नहीं कर सकती थी। लेकिन मैंने सोशल मीडिया पर देखा कि दुनिया भर की महिलाएं अपने शरीर को खुबसूरत भावभंगिमाओं में पेश कर रही हैं और मुझे ये आश्चर्यजनक लगता था।
वो भी एक एक कदम आगे बढ़ना चाहती थी और ऐसा ही कुछ करना चाहती थीं। लेकिन इसका मतलब था कि उन्हें साधारण आसनों के साथ-साथ सांसों पर काबू करने के लिए बेहतर तरीके से प्राणायाम सीखना होगा। नताशा कहती हैं, योग से मुझे अपने मन को स्थिर बनाए रखने में मदद मिलती है। ये प्रक्रिया धीमी ज़रूर है लेकिन इससे मुझे जो कुछ हासिल हुआ है वो उत्साह बढ़ाने वाला है। 5 साल बीतने के बाद वो खुद को बेहतर स्थिति में मानती हैं।
नताशा कहती हैं, आज की तारीख में, चाहे कुछ हो जाए मैं रोज़ सवेरे कुछ देर के लिए योगाभ्यास करती हूं और फिर कुछ देर के लिए ध्यान लगाती हूं। नताशा कहती हैं कि इससे अधिक तनाव वाले दिन भी कम तनाव वाले दिन बन जाते हैं और उन्हें खुद को प्यार करने के अपने नियम का पालन करने में मदद मिलती है। नताशा ने तय किया है कि वो अपनी जीवनशैली बदल देंगी और वो योग शिक्षिका के रूप में दूसरों को योग भी सिखाती हैं।
खुद तलाशी अपनी राह : नताशा अब 27 साल की हो चुकी हैं। अब भी उनकी ज़िंदगी में कोई दिन बुरा गुज़रता है लेकिन अब उन्होंने आगे बढ़ना सीख लिया है। नताशा अब एक योग शिक्षिका हैं, मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाती हैं और सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर हैं। वो मानती हैं उनका सफर खुद को अपनाने की शुरुआत से हुआ।
अपने इंस्टाग्राम प्रोफाइल में उन्होंने लिखा है, मेरे बारे में आप जो कहेंगे मैं वो और उससे भी बहुत बुरा अपने बारे में पहले ही सोच चुकी हूं। वो अपने 245 हज़ार फॉलोअर्स को अपने शरीर से प्यार करना सिखाती हैं और उन्हें योग अपनाने के लिए प्रेरित करती हैं, लेकिन ये उनके लिए वो जगह भी है जहां वो अपने अनेक मूड और अपने निजी जीवन के अनुभवों को भी बयां करती हैं। अपने दिमाग़ के भीतर मैं खुद को पीड़ित के रूप में देखना पसंद करने लगी थी। मैंने खुद को वहां से बाहर निकालने की कोशिश करती थी और फिर मैं हीउसी सोच को बनाए रखना भी चाहती थी।
एक इंफ्लुएंसर के तौर पर वो सोशल मीडिया में ट्रोल करने वालों के निशाने पर भी रहती हैं। कोई उन्हें 'चरित्रहीन' कहता है, कोई 'आसानी से उपलब्ध महिला', कोई 'बदसूरत' कहता है तो कोई 'बेकार' कहता है। लेकिन अब ये शब्द नताशा को परेशान नहीं करते। नताशा कहती हैं, मैंने ज़िंदगी को देखने का नज़रिया ही बदल दिया है और अब मैं बेहतर तरीके से काम करने की कोशिश करती हूं। मुझे यहां तक पहुंचने में 20 साल लगे और मुझे अभी और भी बहुत कुछ हासिल करना है। अभी मेरी एक-एक सांस के साथ मेरा स्वास्थ्य सुधर रहा है।