वो 25 मई 2000 का दिन था, जब कोलंबियाई पत्रकार जेनेथ बेदोया को बोगोटा ला मोडेलो जेल के दरवाजे से अगवा कर लिया गया। यहां किसी संभावित सूत्र से उनकी मुलाकात तय थी।
तीन लोगों ने उन्हें 16 घंटे से अधिक समय तक कैद में रखा। उन लोगों ने जेनेथ के साथ बलात्कार किया और उन्हें यातना दी। बाद में इन तीन लोगों की पहचान कोलंबिया के प्रमुख अर्द्धसैनिक संगठन - कोलंबिया संयुक्त स्व-रक्षा बल (एयूसी) के सदस्य के रूप में की गई। ये वही लोग थे, जिनके बारे में जेनेथ पड़ताल कर रही थीं। बीबीसी को उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई।
आत्महत्या का विचार : 'बलात्कार के बाद सबसे कठिन था खुद को अकेला पाना। चोटों से भरे शरीर के साथ मैं खुद को बिल्कुल अनाथ महसूस कर रही थी। मुझे एहसास हुआ कि जीवन में कामयाबी हासिल करने के लिए चलते रहना है। मैं आगे बढ़ना नहीं चाहती थी। इसलिए मुझे सबसे पहले आत्महत्या करने का विचार आया। मगर जैसे ही मैंने उस पर अमल करना चाहा, पाया कि मुझमें ऐसा करने का साहस नहीं था।'
मैं डरती थी कि चाहे आत्महत्या की जितनी भी कोशिशें कर लूं, मरूंगी नहीं। मगर मुझे जिंदा रहने का कोई कारण अभी भी दिखाई नहीं दे रहा था।
अंतरात्मा से बस एक ही आवाज आ रही थी कि अगर मैं जिंदा रहती हूं, तो मैं उस काम को आगे बढ़ाऊं, जिसे मैं सबसे ज्यादा पसंद करती हूं, और वह काम पत्रकारिता थी।
हालांकि बाहर निकलना बहुत मुश्किल था, क्योंकि मेरे समूचे शरीर पर चोटें थीं। पिटाई के कारण मेरी बाहें नीली पड़ गई थीं। मेरे हाथ, बदन, चेहरा सब चोटों से भरा पड़ा था और मैं नहीं चाहती थी कि कोई मुझे इस तरह देखे।
अगवा किए जाने की घटना के दो सप्ताह बाद जैसे ही मुझे महसूस हुआ कि मेरा चेहरा ठीक हो गया है, मैंने अपने अखबार (एल एसपेक्टडर) में वापस जाने का फैसला कर लिया।
ये मेरे लिए बेहद भावुक पल थे, क्योंकि अपने डायरेक्टर के साथ बेहद मुश्किल से चलते हुए जैसे ही मैं वहां पहुंची, सभी खड़े हो गए। करीब 200 जर्नलिस्ट और फिर सबने मेरे लिए तालियां बजाईं। उन लोगों ने खूब लंबी कतार बना रखी थी। सबने एक-एक कर मुझे उस दिन गले लगाया।
बलात्कार की चर्चा नहीं : उस दिन के बाद, हमने केवल अपहरण के बारे में बात की। मेरे साथ हुई बलात्कार की घटना पर फिर कभी चर्चा नहीं हुई। मेरे कई सहयोगी जानते तक नहीं कि मेरे साथ बलात्कार हो चुका था। वो बस इतना जानते थे कि मेरा अपहरण हुआ था और मुझे पीटा गया था।
यह बात तब तक छुपी रही जब तक एक दिन, कार्लोस केसटानो (एयूसी का मुख्य कमांडर) ने टीवी इंटरव्यू में इस बात का जिक्र न कर दिया। यह बात मेरे अगवा हो जाने की घटना के कई महीनों बाद की है। उस दिन मेरे अधिकतर सहयोगियों को इस बात का पता चला। बहुत बुरा महसूस हो रहा था।
मैं दो दिन तक काम पर नहीं जा सकी। फिर मैंने सबसे इस बारे में आगे कोई जिक्र नहीं करने का निवोदन किया और सबने मेरी बात का मान रखा।
उस समय कोलंबिया में अपहरण आम बात थी, और ऐसे 90 फीसदी मामलों में यही सब होता था। इसलिए मैंने इस बारे में लिखना शुरू किया। शुरुआत के पहले महीने, हर कहानी मेरे आंसुओं पर जाकर खत्म होती। मैंने खुद को भरोसा दिया कि मैं हार नहीं मानूंगीं क्योंकि मैने कुछ भी गलत नहीं किया था।
अपहरण आम बात : देश के उत्तरी भाग में अर्धसैनिक बलों और गुरिल्लाओं के बीच टकराव चल रहा था। मैंने वहां जाने की इच्छा जाहिर की।
तब मेरे अपहरण की घटना को छह महीने हो गए थे। अखबार में सुरक्षा कारणों से कोई इस विचार को लेकर बहुत उत्सुक नहीं था। फिर मैंने कार्लोस कास्टेनो को एक ई-मेल किया। बताया कि मैं वहां जाकर काम करना चाहती हूं। बस मुझे अर्धसैनिक बलों की ओर से गारंटी मिल जाए। उसने जवाब भेजा 'नो प्रॉब्लम' और मैं निकल पड़ी। यह अग्नि परीक्षा साबित होने वाली थी क्योंकि वहां उन गुनाहगारों, अर्धसैनिक बलों से मुठभेड़ होनी थी।
मैंने जल्दी ही कुछ बेहद शुरुआती फैसले लिए। मैंने फैसला किया कि मैं अपने परिवार से खुद को पूरी तरह दूर रखूंगी। मैं अपनी मां के साथ रहने लगी। वे मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति थीं। मगर मैंने अपने दूसरे रिश्तेदारों से दूरी बनाए रखी। अपने पिता से फिर कभी बात नहीं की। मैं अकेली ही अपने दर्द को संभालना और आगे बढ़ना चाहती थी। मैं किसी के लिए भी बोझ नहीं बनना चाहती थी।
मनोवैज्ञानिक मदद : पहले साल के दौरान मैंने मनोवैज्ञानिक की सहायता भी ली थी, मगर अंत में मैं इस नतीजे पर पहुंची कि इससे मुझे कोई मदद नहीं मिल रही है, और मैंने इसे छोड़ दिया।
2011 में जाकर कहीं न्यायिक प्रक्रिया फिर से शुरू हुई और यह केवल इसलिए संभव हो सका कि मैंने अपने साथ हुए अपराध के खिलाफ आवाज उठाना तय कर लिया था।
अभी तो शुरुआत ही हुई थी और यह बेहद असहनीय साबित हो रहा था। क्योंकि मेरे अपहरण में वो लोग शामिल थे, जिनके बारे में मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकती थी। मैंने अपने संपर्कों का इस्तेमाल करते हुए पूरी कोशिश की।
अटॉर्नी जनरल तक से सीधी बात की। ये सब कुछ करने के बाद भी अगर कुछ हल नहीं निकले तो यह कल्पना की जा सकती है कि दूसरे केसों का क्या होता होगा? कोलंबिया की यही समस्या है। अगर मेरे मामले में अपराधी को कोई सजा नहीं हुई, तो दूसरी औरतें क्या उम्मीद कर सकती हैं?
कोई फायदा नहीं : मिस बेदोया ने बलात्कार के तुरंत बाद पुलिस में शिकायत दर्ज की, मगर 11 साल गुजर जाने के बाद भी यह मामला जरा सा भी आगे नहीं बढ़ पाया। लिहाजा मई 2011 में, बेदोया ने मानवाधिकारों के अंतर-अमेरिकी आयोग के सामने इस मामले को उठाया।
कोलंबिया अभियोजक कार्यालय तुरंत हरकत में आया। इसके फौरन बाद, एक भूतपूर्व अर्द्धसैनिक को गिरफ्तार कर लिया गया। उसने अपहरण में अपनी भागीदारी कबूल कर ली। तब से, दो और संदिग्धों पर भी औपचारिक रूप से अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाए हैं।
सितंबर 2012 में, अभियोजन पक्ष ने कहा कि मिस बेदोया के अगवा कर लिए जाने और बाद में उन पर किए जाने वाले अत्याचार और यौन उत्पीड़न को 'मानवता के खिलाफ अपराध' की श्रेणी में रखा जाए और इसीलिए इस मामले में किसी भी सीमा में बंधने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसका इस्तेमाल अर्धसैनिक बलों ने युद्ध के उस हथियार के रूप में किया जिसकी मदद से वो उन उठती हुई आवाजों को मौन कर देते हैं, जो उनकी ज्यादतियों और अतिक्रमण को बेनकाब करने का दुस्साहस करती हैं।
(कोलंबियाई पत्रकार जेनेथ बेदोया की बीबीसी से बातचीत पर आधारित)