रिकॉर्ड 7वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री की शपथ लेने जा रहे नीतीश कुमार का इन 7 चुनौतियों से होगा सामना

विकास सिंह

सोमवार, 16 नवंबर 2020 (11:30 IST)
बिहार में आज नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री की शपथ लेने जा रहे है। पिछले पंद्रह सालों से बिहार में सरकार की बागडोर संभालने वाले नीतीश कुमार के लिए इस दफा अगले पांच साल सरकार चलाना बहुत आसान नहीं होने जा रहा है। 
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नीतीश की पार्टी जेडीयू इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में 43 सीटों की संख्या के साथ तीसरे नबंर की पार्टी है। वहीं भाजपा 74 सीटों के साथ दूसरे नंबर और आरजेडी 75 सीटों के साथ पहले नंबर की पार्टी है। ऐसे में इन बदले हालात और सियासी समीकरणों के बीच नीतीश के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी कांटों भरे ताज के सामान है।
 
1-पांच साल सरकार चलाने की चुनौती- सातवीं बार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने बड़ी चुनौती पांच साल अपनी सरकार को चलाने की होगी। बदले हालात और सियासी समीकरणों के बीच मुख्यमंत्री की शपथ ले रहे नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू विधायकों की संख्या के हिसाब से विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी है और उसे पांच साल सरकार चलाने के लिए भाजपा के साथ-साथ छोटे दलों के समर्थन पर टिके रहना होगा। 
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वहीं दूसरी ओर तेजस्वी की अगुवाई वाला महागठबंधन अब भी सरकार बनाने के दांव-पेंच में जुटा हुआ है। तमामों दावों के बाद बहुमत से चूकने वाले तेजस्वी एक बार फिर सड़क पर उतरकर अपनी ताकत दिखाने की तैयारी कर रहे है वहीं दूसरी ओर उनकी नजर एनडीए में होने वाले खेमेबाजी और अंसतोष पर टिकी हुई है। ऐसे में नीतीश के सामने पांच साल सबको एक साथ साध कर चलने की चुनौती होगी।
2-भाजपा के दबाव से निपटने की चुनौती-सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे नीतीश कुमार इस बार पूरी तरह से भाजपा के दबाव में है। भले ही चुनाव पूर्व किए गए वादे और गठबंधन धर्म का पालन करते हुए भाजपा ने बड़ा दल होने के बाद भी मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार को सौंप दी हो लेकिन इस बार दो– दो डिप्टी सीएम बनाकर शुरु से ही नीतीश पर दबाव बनाने की रणनीति साफ कर दी है। इसके साथ ही भाजपा का विधानसभा स्पीकर का पद अपने पास रखना भी सियासी दृष्टि से काफी अहम माना जा रहा है।

इसके साथ ही नीतीश कैबिनेट में उनके अपने दल जेडीयू से ज्यादा भाजपा के विधायकों को मंत्री पद मिलना तय है। ऐसे में नीतीश की पार्टी जेडीयू ही अपने ही दल के मुखिया के नेतृत्व वाली सरकार में अल्पमत में रहेगी और नीतीश के सामने भी अपनी कैबिनेट में सभी के साथ सामंजस्य बनाए रखने की चुनौती हर बार से अधिक होगी। 
 
3-सहयोगी दलों से सामंजस्य बनाने की चुनौती - सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नीतीश कुमार के सामने इस बार भाजपा के साथ जीतनराम मांझी की पार्टी ‘हम’ और मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी को पूरे पांच साल साथ लेकर चलना बहुमत की मजबूरी है। भाजपा के साथ इन दोनों ही दलों को मंत्रिमंडल में शामिल करना नीतीश के लिए एक बड़ी मजबूरी होगा। सत्ता संभालते ही नीतीश की पहली चुनौती विभागों के बंटवारों को लेकर सभी को सतुंष्ट करना होगा।
4-‘सुशासन बाबू’ की इमेज को मेकओवर करने की चुनौती- सुशासन बाबू के नाम से बिहार की राजनीति में पहचाने जाने वाले नीतीश कुमार के सामने इस बार सबसे प्रमुख चुनौती चुनाव में खोई अपनी छवि को फिर से मेकओवर करना है। 

चुनाव के दौरान हुई रैलियों में जिस तरह नीतीश कुमार को खुद अपने के खिलाफ विरोध और नारेबाजी का सामना करना पड़ा और जिस तरह नीतीश ने चुनावी मंचों पर अपना आपा खोया उससे उनकी छवि को बहुत नुकसान पहुंचा है। इसके साथ ही चुनाव में नीतीश कुमार को सत्ता विरोधी लहर का सामना भी करना पड़ा, ऐसे में नीतीश अब सरकार का केंद्र बिंदु बदलकर एंटी इंकमबेंसी को कम करने की भी कोशिश करेंगे।
 
5-घटते जनाधार को बचाने की चुनौती- भाजपा के सहयोग से भले ही नीतीश फिर के बार बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी प्राप्त करने में सफल हो गए हो लेकिन जिस तरह नीतीश की पार्टी को इस बार चुनाव में बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है और वह तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई है। ऐसे में नीतीश को कोशिश होगी की वह अपनी छवि को सुधारने के साथ अपनी पार्टी के बिखरते और खिसकते वोट बैंक को फिर से सहजना होगा। 
6-मजबूत विपक्ष की चुनौती-नीतीश कुमार को इस बार ऐसे विपक्ष का सामना करना पड़ेगा जो संख्या के हिसाब से उनसे कुछ ही कम है। ऐसे में विधानसभा के फ्लोर पर जहां एक-एक विधायक महत्वपूर्ण होगा,विपक्ष सरकार का दबाव बनाने और घेरने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहेगा। ऐसे में नीतीश के सामने चुनौती विपक्ष के हमलों का जवाब देकर सरकार के सभी सहयोगी दलों के विधायकों को एकजुट रखना होगा। 
 
7-जनता के विश्वास को फिर से पाने की चुनौती- बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार नीतीश की पार्टी जेडीयू को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। 243 विधानसभा में जेडीयू पचास का आंकड़ा भी नहीं पार कर पाई और उसको मात्र 43 सीटें मिली है। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि चुनाव में बिहार को लोगों ने जेडीयू को बुरी तरह नाकार दिया है, ऐसे में नीतीश के सामने सबसे बड़ी चुनौती एक बार जनता विश्वास को पाने की होगी।   
 

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