Bihar Assembly Elections 2025: महिला वोटरों की संख्या घटने से क्यों बढ़ी नीतीश कुमार की चिंता?

वेबदुनिया न्यूज डेस्क

बुधवार, 8 अक्टूबर 2025 (15:00 IST)
Number of women voters decreased in Bihar: बिहार की राजनीति में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम हमेशा से महिला मतदाताओं के सशक्तिकरण से जुड़ा रहा है। 'महिला सशक्तिकरण' का नारा ही वह मजबूत आधार था जिस पर जनता दल (यूनाइटेड) यानी जेडीयू ने पिछले कई चुनावों में अपनी सफलता की इमारत खड़ी की। लेकिन, अब चुनाव आयोग के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के बाद जारी अंतिम मतदाता सूची ने नीतीश कुमार को एक चिंता में डाल दिया है। हालांकि केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा है कि एनडीए की तरफ से नीतीश कुमार ही मुख्‍यमंत्री का चेहरा हैं। 
 
सामने आए आंकड़े साफ बताते हैं कि राज्य में महिला मतदाताओं की संख्या में न केवल जनसंख्या अनुपात से कम होकर बड़ी गिरावट आई है, बल्कि यह गिरावट उन विधानसभा क्षेत्रों में सर्वाधिक है जहां जेडीयू का राजनीतिक दबदबा रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह सिर्फ SIR की तकनीकी खामी है या एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति? 
 
आंकड़ों के आईने में मतदाता सूची का 'लिंग-भेदभाव' : चुनाव आयोग (EC) द्वारा 30 सितंबर, 2025 को जारी अंतिम मतदाता सूची एक चौंकाने वाली तस्वीर पेश करती है। जनवरी 2025 में बिहार का मतदाता लिंगानुपात (Electoral Sex Ratio - ESR) 914 था (प्रति हजार पुरुष मतदाताओं पर 914 महिलाएं)। SIR प्रक्रिया पूरी होने के बाद यह गिरकर 894 रह गया है। यह आंकड़ा 2011 की जनगणना के जनसंख्या लिंगानुपात (918) से भी नीचे है, जो बिहार में महिलाओं की वास्तविक भागीदारी को नकारता है।
 
SIR प्रक्रिया में हटाए गए कुल मतदाताओं में से 59% महिलाएं हैं। महिला मतदाताओं का प्रतिशत जनवरी के 47.8% से घटकर 47.2% हो गया है। राज्य के कुल 243 विधानसभा क्षेत्रों में से 230 में लिंगानुपात में गिरावट दर्ज हुई है। सबसे गंभीर विषय है इस नाम हटाने की प्रक्रिया में असमानता। ड्राफ्ट सूची (1 अगस्त 2025) में 65 लाख नाम काटे गए, जिनमें 55% महिलाएं थीं। दावा-आपत्ति प्रक्रिया के दौरान 21.5 लाख नए नाम जोड़े गए, लेकिन इनमें महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 47.8% रही। वहीं, अतिरिक्त 3.6 लाख नाम काटने में 53.9% महिलाएं थीं।
 
सुपौल जैसे जिलों में तो काटे गए नामों में महिलाओं का हिस्सा 75% तक है। पश्चिमी बिहार के गोपालगंज जिले की कुचायकोट सीट पर लिंगानुपात 956 से गिरकर 861 हो गया—यह सीट 2020 में जेडीयू ने जीती थी। सर्वाधिक प्रभावित टॉप 10 सीटों में से तीन पर जेडीयू का कब्जा है। यह विसंगति मात्र सांख्यिकीय नहीं है, बल्कि महिला वोट बैंक की राजनीतिक हेराफेरी का संकेत देती है।
 
2020 का जीत का मंत्र : 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की 125 सीटों पर जीत का एक प्रमुख कारण महिला मतदाताओं का निर्णायक समर्थन माना जाता था। 2010 के बाद से ही बिहार में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से लगातार अधिक रहा है। विभिन्न सर्वे बताते हैं कि महिलाओं ने शराबबंदी, साइकिल वितरण और आरक्षण जैसी नीतीश कुमार की नीतियों के कारण महागठबंधन (RJD-कांग्रेस) की तुलना में NDA को भारी वोट दिया था, जिससे जेडीयू को मजबूत समर्थन मिला।
लेकिन, SIR में महिलाओं के नाम हटने के चलते जेडीयू के इसी आधार को हिला दिया है। चुनाव आयोग के डेटा से साफ है कि जेडीयू द्वारा जीती गई सीटों पर औसत लिंगानुपात में सबसे बड़ी गिरावट आई है। उदाहरण के लिए, कुचायकोट जैसी जेडीयू सीटों पर 10 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं के नाम काटे गए हैं, जबकि भाजपा (BJP) की सीटें अपेक्षाकृत कम प्रभावित हुई हैं। यह असंतुलन जेडीयू के लिए घातक साबित हो सकता है।
 
राजनीतिक निहितार्थ : गठबंधन में दरार की आशंका
नीतीश कुमार की चिंता स्वाभाविक है, क्योंकि बिहार की राजनीति में महिलाओं के 'माई-बहिनी' (मां-बहन) वोट की अपनी अहमियत है। SIR का यह असंतुलन सीधे तौर पर जेडीयू को नुकसान पहुंचा सकता है। विपक्षी दल RJD जैसे महागठबंधन के नेता इसे 'NDA की साजिश' बता रहे हैं। गठबंधन सहयोगी BJP इस कटौती से कम प्रभावित दिख रही है। उनकी सीटों पर गिरावट न्यूनतम है।
 
राजनीतिक विश्लेषक इसे BJP का 'सॉफ्ट पावर प्ले' मान रहे हैं, जिसका उद्देश्य जेडीयू को कमजोर करना हो सकता है। यदि 2025 के विधानसभा चुनावों में महिला मतदान इसी घटे हुए 47.2% के अनुपात में सिमट गया, तो जेडीयू की सीटें 2020 की 43 से काफी नीचे जा सकती हैं। अंतिम सूची में अभी भी संशोधन संभव हैं—नामांकन की अंतिम तिथि से पहले जेडीयू को तत्काल स्थानीय स्तर पर आपत्तियां दर्ज कराने और महिला कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने की आवश्यकता है।
 
SIR के बाद की मतदाता सूची बिहार की राजनीति में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है। यह विवाद 2025 के चुनावों को और ध्रुवीकृत करेगा। नीतीश कुमार को अब अपनी राजनीतिक पूंजी बचाने के लिए सचेत और सतर्क कदम उठाने होंगे, वरना महिलाओं के समर्थन का ध्रुवीकरण उल्टा पड़ सकता है। 

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