Jhalkari Bai: प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की साहसी महिला झलकारी बाई की जयंती, जानें अनसुनी बातें

WD Feature Desk

शुक्रवार, 22 नवंबर 2024 (10:24 IST)
Highlights 
Indian woman soldier वीरांगना झलकारी बाई का जीवन परिचय : प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की साहसी महिला और भारत की प्रमुख वीरांगना झलकारी बाई की जयंती आज, शुक्रवार 22 नवंबर को मनाई जा रही है। रानी झलकारी बाई के संबंध में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त लिखते हैं- जाकर रण में ललकारी थी, वह तो झांसी की झलकारी थी। गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही, वह भारत की ही नारी थी। 
 
ऐसी महान प्रतिभा की धनी रहीं भारत की झलकारी बाई कोरी का जन्म बुंदेलखंड के एक गांव में 22 नवंबर को एक निर्धन कोली परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सदोवा उर्फ मूलचंद कोली और माता जमुना बाई उर्फ धनिया था। जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं तभी उनकी माता का निधन हो गया था, तब उनके पिता ने उन्हें एक लड़के की तरह पाला था। झलकारी बचपन से ही साहसी और दृढ़ प्रतिज्ञ बालिका थी। बचपन से ही झलकारी घर के काम के अलावा पशुओं की देख-रेख और जंगल से लकड़ी इकट्ठा करने का काम भी करती थी। 
 
वीरांगना झलकारी बाई के बचपन के किस्से : एक बार जंगल में झलकारी की मुठभेड़ एक बाघ से हो गई थी और उन्होंने अपनी कुल्हाड़ी से उस जानवर को मार डाला था। वह एक वीर साहसी महिला थी। एक अन्य अवसर पर जब गांव के एक व्यवसायी पर डकैतों के एक गिरोह ने हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था। उनकी इस बहादुरी से खुश होकर गांव वालों ने उसका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक पूरन कोरी से करवा दिया, जो बहुत बहादुर था। 
 
किसके साथ हुआ था झलकारी बाई का विवाह : झांसी की सेना में सिपाही रहे पूरन कोली नामक युवक के साथ झलकारी बाई का विवाह हुआ। पूरे गांव वालों ने झलकारी बाई के विवाह में भरपूर सहयोग दिया। विवाह पश्चात वह पूरन के साथ झांसी आ गई। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में वे महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं, इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है। झलकारी बाई के सम्मान में सन् 2001 में डाक टिकट भी जारी किया गया। 
 
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में योगदान और निधन: सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी सेना से रानी लक्ष्मीबाई के घिर जाने पर झलकारी बाई ने बड़ी सूझबूझ, स्वामीभक्ति और राष्ट्रीयता का परिचय दिया था। रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अपने अंतिम समय में अंग्रेजों के हाथों पकड़ी गईं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उस युद्ध के दौरान एक गोला झलकारी को भी लगा और 'जय भवानी' कहती हुई वे जमीन पर गिर पड़ीं। ऐसी महान वीरांगना थीं झलकारी बाई।

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ ही झलकारी बाई की समाधि भी मध्य प्रदेश के ग्वालियर में स्थित है। भारत की संपूर्ण आजादी के सपने को पूरा करने के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाली वीरांगना झलकारी बाई का नाम आज भी इतिहास के पन्नों में अंकित है। झलकारी बाई ने अपने अदम्य शौर्य व पराक्रम से अंग्रेजों को भयाक्रांत कर दिया था, रानी लक्ष्मीबाई की परम सहयोगी रहीं ऐसी अमर वीरांगना झलकारी बाई की जयंती पर उन्हें नमन। 
 
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