दोस्ती हो तो शाहरुख खान और फराह खान जैसी। फराह जब नचाती हैं, जैसा नचाती हैं, किंग खान फिल्म के सेट पर वैसे नाचने लगते हैं। मनमुटाव हुआ फिर दोस्त बन गए। साथ फिल्म कर रहे हैं। पक्के दोस्तों में ही तो ऐसा होता है। कौन कहता है कि स्त्री और पुरुष में दोस्ती नहीं हो सकती?
दोस्ती हो तो सलमान खान और साजिद नाडियाडवाला जैसी। सलमान और साजिद की फिल्म एक ही दिन प्रदर्शित होने वाली थी। साजिद ने यह देख अपनी फिल्म का प्रदर्शन आगे बढ़ा दिया। दोस्ती में ये मामूली बात है।
दोस्ती हो तो राज-दिलीप-देव जैसी। पचास और साठ के दशक की त्रिमूर्ति यानी देव आनंद-राजकपूर और दिलीपकुमार तीनों समकालीन ऐसे सितारे हैं, जो हमेशा दोस्त पहले रहे, अभिनेता बाद में। चवालीस साल की उम्र में चौबीस साल की सायरा बानो से जब दिलीप साहब ने शादी की, तो बरात में घोड़े के दाएँ-बाएँ राजकपूर-देव आनंद सड़कों पर नाचते गुजरे थे।
दोस्ती हो तो रफी और किशोर जैसी। मोहम्मद रफी ने फिल्म ‘रागिनी’ तथा ‘शरारत’ में किशोर कुमार को अपनी आवाज उधार दी। मेहनताना लिया सिर्फ एक रुपया।
दोस्ती हो तो अक्षय कुमार और सुनील शेट्टी जैसी। दोनों एक्शन हीरो। दोनों को डुप्लिकेट की जरूरत नहीं। दोनों की फिल्में साथ-साथ प्रदर्शित, मगर कोई गलाकाट प्रतियोगिता नहीं।
दोस्ती हो तो राजकपूर और मुकेश जैसी। गीतकार शैलेन्द्र और हसरत जैसी। संगीतकार शंकर और जयकिशन जैसी। ये जोडि़याँ, ये दोस्तियाँ तब टूटीं, जब इनमें से जो पहले जमीन से उठ गया।
दोस्ती हो तो अमिताभ और प्रकाश मेहरा व मनमोहन देसाई जैसी। इन दोनों की बेसिर-पैर की फिल्मों में अमिताभ ने घटिया रोल भी किए। मगर यारी-दोस्ती के तकाजे में और लिहाज के बोझ तले दबे रहे बिग-बी।
दोस्ती हो तो फिल्मकार गुरुदत्त और जानी वॉकर जैसी। गुरुदत्त की तमाम फिल्मों में जानी वॉकर को न सिर्फ हीरो जैसा फुटेज मिला, बल्कि हर फिल्म में उन पर खास गाने भी फिल्माए गए। सर जो तेरा चकराए और दिल डूबा जाए तो चम्पी, तेल मालिश या फिर जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी, अभी-अभी यहीं था किधर गया जी।