मुझे आपका इंतजार है। आप कब आओगे यह मैं नहीं जानता। मुझे पता है कि ऐसे समय जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस से जूझ रही है तो आप भला मेरे पास कैसे आ सकते हो? लेकिन मैं आपको बहुत ज्यादा मिस कर रहा हूं और उम्मीद है कि आप भी मुझे मिस कर रहे होंगे।
मैं सुबह से ही आपके स्वागत के लिए तैयार हो जाता हूं। चकाचक सफाई होती है और मैं आपका इंतजार करने लगता हूं। धीरे-धीरे आपके स्वर सुनाई देने लगते हैं तो अच्छा लगता है। युवाओं की मौज-मस्ती, बच्चों की किलकारी, बुजुर्गों का मेरे प्रति प्यार, टिकट के लिए लाइन, यह सब देख मुझे अच्छा लगता है।
फिर शुरू होता है सिनेमा। अंधेरे में थिएटर में बड़े परदे पर सिनेमा देखने का जो मजा रहता है वो कहीं नहीं मिल सकता। न टीवी पर, न मोबाइल पर और न ही लैपटॉप पर। कितनी ही अच्छी क्वालिटी हो। कितना ही अच्छा स्क्रीन रिज़ोल्यूशन हो, सफेद परदे पर फिल्म देखने का अपना ही मजा रहता है।
मुझे अच्छा लगता है जब आप एक्शन देख रोमांचित होते हो। कॉमेडी सीन पर मेरा पूरा हॉल ठहाकों से गूंजा देते हो। इमोशनल सीन पर सिसकियां सुनाई देती है। रोमांस देख कॉर्नर वाली सीटों पर हलचल होने लगती है। हॉरर सीन देख आपकी चीख निकल जाती है। खराब फिल्म पर आपकी गालियां सुनाई देती है। फिल्म अच्छी हो या बुरी, मुझे आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहता है।
सिनेमाघर के हॉल में गूंजते गाने, जोरदार संवाद, तेज बैकग्राउंड म्युजिक मानो मुझे जीवित कर देता है। हर सप्ताह नई फिल्म का इंतजार मुझे भी रहता है।
इंटरवल में पॉपकॉर्न और समोसे की वो सुगंध आप भी मिस कर रहे होंगे, जिसे खाने को जी मचल उठता है। कोल्ड ड्रिंक का घूंट-घूंट पीना और कॉफी की महक की याद आपको भी सता रही होगी। मल्टीप्लेक्स में तो खाने की इतनी वैरायटी मिलती है कि समझ ही नहीं आता कि फिल्म देखने आए हैं या खाना खाने।
इस समय मैं बिलकुल सूना हूं। यह अंधेरा मुझे पहले कभी इतना तंग नहीं करता। न शोर, न संगीत। न समोसा न कोल्ड ड्रिंक। कोरोना वायरस का असर लोगों पर ही नहीं बल्कि मुझ पर भी हुआ है। उम्मीद करता हूं कि यह जल्दी ही खत्म हो जाएगा और फिर मेरी रौनक लौटेगी।