मैंने अभी तक अपनी जिंदगी में 40-45 फिल्मों में काम किया है। लगभग इतने ही साल मुझे फिल्म इंडस्ट्री में होने आए हैं क्योंकि हम बहुत क्रिएटिव लोग हैं। सब अपनी-अपनी सोच लेकर चलते हैं। हम सभी क्रिएटिव होते हैं, निर्देशक हैं, कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर है। होता यही है कि इतने सारे क्रिएटर लोग जब एक साथ इतनी बड़ी टीम को लेकर काम करते हैं तो आपस में टकराहट बहुत होती है।
निर्देशक जो है वह डीओपी से टकरा रहा है तो कभी कॉस्टयूम डिजाइनर की लड़ाई हो गई है प्रोडक्शन डिजाइनर के साथ। और हम लोगों के साथ हर फिल्में में यह होता ही है। क्योंकि हम कलाकार लोग जो होते हैं एक इगो को लेकर चलते हैं। तो इस वजह से टकराव होते हैं।
इस फिल्म में शुरू से लेकर अंत तक ऐसा कोई टकराव नहीं हुआ यह बात मैंने नोटिस की हम लोग फिल्म का आखिर का हिस्सा शूट कर रहे थे वडोदा में और तब यह बात मेरे जेहन में आई। तब मैंने अपनी टीम के प्रसन्ना को कहा कि तुमने एक बात सोची कि हम लोगों की फिल्म में शुरू से लेकर अंत तक कहीं कोई लड़ाई नहीं हुई है।
इस पर प्रसन्ना ने पूछा, नहीं क्यों हुआ है ऐसा बताइए। मैंने कहा, इन दस लोगों की वजह से हुआ है। रुकिए दस लोग जब भी सेट पर अंदर आते हैं तब वह इतनी अच्छी ऊर्जा लेकर स्टेट पर घुसते हैं। यह लोग सेट पर आते हैं। किसी को हग करते हैं, किसी को किस करते हैं और इन सब की अच्छाई हमारे शरीर में सम्मिलित हो जाती है। किसी की इच्छा नहीं होती है कि वह ऊंची आवाज में बात करें या ऐसा कोई गलत शब्द इस्तेमाल कर दे। यह सब लोग हंसते मुस्कुराते काम करते हैं और इतनी एक्साइटमेंट के साथ काम करते हैं कि काम करने वाले सारे ही लोग इनके रंग में रंग जाते हैं।
और ऐसा बहुत ही स्वाभाविक रूप से हो जाता है। इन लोगों से यानी यह 10 न्यूरो डायवर्जेंट लोग हम जैसे न्यूरोटिपिकल लोगों को अच्छा बना कर रख देते हैं। हमारा पूरा स्वभाव ही बदल दिया है इन लोगों ने और मैं शर्तिया तौर पर कह सकता हूं। आज आप सारे पत्रकार मेरे सामने बैठे हैं। अभी इस ग्रुप में अगर मैं इन 10 लोगों को बुला लूं तो आपका भी स्वभाव बदल जाएगा। आप भी बहुत सीधे सरल रूप में उन लोगों से मिलेंगे और हम आपस में भी ऐसे ही बात करेंगे। आप आने वाले दिनों में उनसे मिलेंगे भी तब आप कुछ महसूस कीजिएगा।
यह कहना है आमिर खान का जो एक बार फिर बच्चों को ध्यान में रखते हुए एक फिल्म 'सितारे जमीन पर' लेकर आ रहे हैं। बहुत ही जल्द आप इनकी फिल्म देखने वाले हैं। यह फिल्म कुछ खास लोगों यानी न्यूरो डायवर्जेंट लोगों को लेकर बनाई है जहां पर यह 10 लोग आमिर को फिल्म में एक बेहतर इंसान बनने में मदद कर रहे हैं।
फिल्म में खास लोगों के लिया गया है। इनकी कास्टिंग कैसे हुई?
वैसे ही जैसे कि मैं अपनी दूसरी फिल्म के कास्टिंग करता हूं। हमारा एक कास्टिंग डायरेक्टर है जिनका नाम टेस है। उन्होंने कई सारे ऐसे बच्चों के ऑडिशन के लिए और इन 10 लोगों को चुना गया।
आमिर आप अपनी फिल्मों को रिलीज होने के पहले भी कुछ लोगों को दिखाते हैं। चाहे वह डिस्ट्रीब्यूटर या ऐक्जिबिटर्स हों। कैसा रिस्पॉन्स रहा।
मैं अपनी फिल्म रिलीज होने के पहले कई लोगों को दिखाता हूं ताकि उनसे मुझे एक सही रिएक्शन मिल सके। लेकिन फिल्मों को मैं हमेशा उन लोगों को दिखाता हूं जो फिल्म इंडस्ट्री से कहीं कोई ताल्लुक ना रखते हो, जो फिल्म बनाते हो बहुत अलग विचारधारा के लोग होते हैं लेकिन जो फिल्म देखते हैं वह आम लोग होते हैं। हम लोग इन आम लोगों के लिए फिल्म बना रहे हैं ताकि उन्हें पसंद आ सके। मैं फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े जो लोग नहीं है, उनको बुलाता हूं।
जब कुछ लोगों ने यह फिल्म देखी तो वह बड़े अचंभे में रहे। पहले उन्हें लगा कि यह जो दस लोग इस फिल्म में काम कर रहे हैं, यह कोई एक्टर ही है जिन्हें हम लोगों ने तैयार किया है, लेकिन जब उनको मालूम पड़ा कि असली न्यूरो डायवर्जेंट लोग हैं। तब उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने फिल्म की बहुत सराहना भी की।
जो लोग आपको जानते हैं, उन्होंने तारे जमीन पर भी देखी है। उसके बाद अब जब से सितारे जमीन पर लोगों के सामने आ रही है तो मन में कहीं न कहीं चलता है कि सीक्वल है। ऐसा है क्या?
बिल्कुल यह वैसा सीक्वल माना जा सकता है। लेकिन यह फिर भी कुछ अलग है। कारण यह है कि उस फिल्म में यानी तारे जमीन पर जब मैंने बनाई तो फिल्म में ईशान के सफर को दिखाया गया। वह किन-किन परिस्थितियों से गुजरता है और उसे कैसे एक टीचर जो विषय को बहुत गहराई से जानता है और ईशान को बहुत अच्छे से समझता है वह कैसे उसकी मदद करता है। ईशान को एक अच्छा जीवन देने की कोशिश करता है जबकि यह बिल्कुल उल्टी है।
इस फिल्म में यह न्यूरो डायवर्जेंट लोग एक बिगड़ैल टीचर को अच्छा इंसान बनाते हैं। उस फिल्म के ट्रेलर में आपने डायलॉग सुना होगा कि आप कुछ तो बहुत अच्छे हैं लेकिन इंसान एक नंबर के सूअर हैं। मेरा वैसा ही रोल है एक बिगड़ा हुआ टीचर और कैसे यह दस लोग अपनी अच्छाई से उसको बदल कर रख देते हैं।
क्या फिल्म के दौरान इन दस लोगों की वजह से शूटिंग के दौरान कुछ देरी हुई?
बिल्कुल नहीं, मैं लिखकर दे सकता हूं और कह सकता हूं कि ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ। आप यकीन करें मुझ पर मैं सौ प्रतिशत सही कह रहा हूं जितना हम न्यूरो टिपिकल लोगों को एक शॉट देने में लगता है उतना ही समय इन न्यूरो डायवर्जेंट लोगों को लगा और मुझे तो लगता है शायद कम ही लगा। अब जब शॉट देने आए हैं तो मेरे सारी डायलॉग्स मुझे याद है। यह लोग जब आते थे, इन्हें अपने डायलॉग से याद रहते थे।
कभी-कभी तो यूं हुआ कि मेरी वजह से देरी हो गई या कभी कोई शॉट जेनेलिया ने ले लिया और कभी यह भी हुआ कि कोई शार्ट इन लोगों की वजह से दोबारा लेना पड़ा है। अब एक रीटेक तो कोई भी एक्टर डिजर्व करता है। लेकिन कहीं कोई व्यवधान या रुकावट या देरी नहीं हुई इनकी वजह से नहीं हुई।
एक बार तो कुछ यूं भी हुआ कि मेरी वजह से रीटेक हो गया। अब आप तो जानते हैं कि मुझे थोड़ा सा समय लगता है। मैं कई बार रीटेक भी ले लेता हूं। एक रीटेक लिया और मेरे सामने सुनील जिसका फिल्म नाम सुनील है और असली में नाम आशीष है जो खंडवा से आते हैं। मैंने उनको कहा, सॉरी एक बार फिर से करना पड़ेगा। तब वह मुझे डायलॉग देते हैं। कोई बात नहीं सर ऐसी छोटी-छोटी गलतियां बड़े-बड़े एक्टर से होती रहती है।
ऐसे में वेबदुनिया संवाददाता रुना आशीष ने पूछा, आमिर यह तो आप बात कर रहे हैं कि लोगों के स्वभाव में सेट पर तब्दीलियां दिखाई देने लगी मैं खुद भी अपने कॉलेज के दिनों में ऐसे बच्चों के साथ काम करती रही हूं और अभी भी जब मौका मिला था तब काम किया। यह आपको अंदर तक यानी आत्मा तक बदल देते हैं। क्या आप अपने निजी बदलाव के बारे में बात करेंगे?
मैं न्यूरो डायवर्जेंट बच्चों के साथ पहली बार नहीं बल्कि इसके पहले भी काम कर चुका हूं। जब तारे जमीं पर मैं बना रहा था तब मैंने ऐसे बच्चों के साथ बहुत करीब होकर काम किया उनसे बातचीत की। आप लोगों की भावनाओं को अधिक समझने लगते हैं आप अधिक सहानुभूतिपूर्वक हो जाते हैं। मुझे ये भी समझ आया कि यह तो बिल्कुल मेरे जैसे हैं। जो हमें डर लगता है वह डर इन्हें भी होता है जो चीज हमें पसंद आती है। वह चीज है इन्हें भी पसंद आती है, कहीं कोई अंतर नहीं है।
अब आप सोच कर देखिए एक आठ साल का बच्चा है। छोटा सा है अभी बड़ा भी नहीं हुआ। दुनियादारी की समझ भी नहीं है, उसे कुछ मालूम नहीं है। अब उसकी बिल्डिंग में एक जन्मदिन होता है। आठ साल के हम जब होते हैं तब हम हमारे दोस्त के घर जाते हैं केक खाने के लिए। एक फलाना फलाना फ्लैट में मेरे दोस्त का जन्मदिन है। सोसाइटी के हर बच्चे को बुलाया गया लेकिन मुझे नहीं बुलाया गया। क्यों नहीं बुलाया गया इसका कोई जवाब नहीं है मेरे पास। ऐसा इन बच्चों के साथ एक जन्मदिन पर नहीं होता है। कई दफा होता है और जिंदगी भर होता है।
और उस आठ साल के बच्चे को यह नहीं मालूम है कि उसने ऐसा क्या किया जो उसके दोस्त ने केक खाने के लिए अपने जन्मदिन पर उसे नहीं बुलाया। इस भाव से ना सिर्फ वह बच्चा बल्कि उसके घर वाले भी गुजरते हैं। अब सोचिए यह तो किसी के भी साथ हो सकता था। होने को तो यह आपके और मेरे साथ भी हो सकता था कि हम न्यूरो डायवर्जेंट बनकर पैदा होते हैं। अब हमारे घर में कहीं कोई बच्चा पैदा होता है।
वह न्यूरो डायवर्जेंट होता है तो क्या उसे कहीं छोड़ कर आ जाए? मेरे दिल में बस इन लोगों के लिए बहुत! ज्यादा फीलिंग है और गुस्सा आता है। कि हर व्यक्ति समान रूप से। इज्जत पाने का हकदार है तो इन्हें यह इज्जत क्यों न दी जाए। यह वह पल था जहां आमिर का गला रूंध गया और आंखें भर आई और उन्हें देखकर मेरी भी आंखें भर गई।