रोहित शेट्टी ने बताया 'मिशन फ्रंटलाइन' में काम करने का अनुभव

रूना आशीष
गुरुवार, 27 जनवरी 2022 (13:17 IST)
डिस्कवरी की टीम जब मेरे पास आई और उन्होंने शो की पूरी जानकारी मुझे दी तब मुझे लगा कि मुझे यह जो हर हाल में करना चाहिए क्योंकि इस शो में चाहे वह कारतूस हो या कोई गन हो या एम्युनिशन हो या गाड़ियां हो, सब कुछ तो असली है।

 
यह कहना है जाने-माने निर्देशक रोहित शेट्टी का जो डिस्कवरी चैनल पर एक नया शो 'मिशन फ्रंटलाइन' करते हुए दिखाई देने वाले हैं। हालांकि रोहित को दर्शक पहले भी पर्दे पर देख चुके हैं। उनके शो खतरों के खिलाड़ी में उनको अच्छा खासा पसंद भी किया जाता है।
 
इस बारे में बताते हुए रोहित ने कहा कि इस शो में मुझे यह पसंद आया कि मुझे बिल्कुल कश्मीर के पुलिस दल के बीच में बैठना है। उन्हीं की तरह जीवन जीना है और वह भी एक पूरा दिन। जो वह करते हैं, वही मुझे करना है तो मुझे लगा यह बहुत ही असली काम है जो मैं करूंगा। और यह बात मुझे बहुत रोचक लगी। आपको तो मालूम है मेरा और पुलिस वालों का क्या नाता है। 
 
मैं पिछले चार फिल्मों में पुलिस के जीवन को अच्छे से दिखाने में कोशिश करता रहा हूं तो मेरा फिल्मों का और पुलिस वालों का जो जुड़ाव है, वह किसी से छुपा नहीं है। मैंने यह काम इसलिए चुना क्योंकि एक तो यह असली था और दूसरा इतना आसान भी नहीं था। चाहे वह सूट करने वाली बात हो या फिर रेकी करने जाना हो या फिर जितने भी टेक्नीशियन से कुशीनगर में जाना और वहां पर जगह ढूंढना फिर उन लोगों जैसा बनना। 
 
शूट के दौरान अपने क्या महसूस किया
मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। हम हमेशा अंग्रेजी पिक्चर देखते आए हैं कि कैसे वह एक कमरे में उनका सब सामान रखा रहता है। एक कमरे में आतंकवादियों से भिड़ना हैं। कैसे उनका सारा हथियार जमा किया हुआ और अच्छे से सजाया हुआ रहता है वही चीज मैंने श्रीनगर में इन पुलिस दलों के साथ देखी, वह मेरे लिए बहुत यादगार पल था। 
 
यह पूरी सीरीज मैं जिंदगी में कभी नहीं भुला पाऊंगा। आप एक तरफ देखते हैं कि अंग्रेजी फिल्मों में दिखाया जाने वाला हर शॉट। और दूसरी तरफ असल में हम भारतीयों के पास पहले से वह सब चीजें रखी हुई है। बहुत अच्छा लगता है। 
 
क्या इस दौरान अपने अपने बारे में कुछ नया सीखा?
मैं पिछले कई सालों से फिल्मों में ही जुटा रहा हूं। यह सीरीज करने के बाद मुझे ट्रेनिंग करने का मौका मिला। वह भी इतने सालों बाद मैंने कुछ नया सीखा है। वहां पर गन और एम्युनेशन तो चलाएं ही वह भी उन कमांडोज के साथ जो श्रीनगर में तैनात है। मुझे उससे भी कहीं ज्यादा रोचक और इमोशनल लगा इन कमांडोज और सीनियर ऑफिसर्स की जिंदगी से जुड़ी हुई कहानियां। यह कहानी आपको अंदर तक हिला कर रख देती हैं।
 
रोहित आपने जो पूरा दिन वहां बताया और यह सीरीज बनाई। क्या इसकी कोई झलक हम आपकी आने वाली फिल्मों में देख सकेंगे। 
बिल्कुल मैंने इतनी सारी यादें संजो कर रखी है अपने साथ जो आगे आने वाले दोनों में कहां में इस्तेमाल करूंगा देखते हैं। इन लोगों के साथ बात मुझे यह लगी कि यह सभी लोग वहां पर अलग जगह से तैनाती पर नहीं आए थे। यह वहीं पर रहने वाले हैं रहवासी हैं। लोगों की सोच अलग है, इनकी समझ अलग है। वहीं के कुछ युवाओं को चुना जाता है। 
 
एनएसजी ट्रेन करता है और फिर वह कमांडोज बन जाते हैं। यह कमांडोज वह होते हैं जो उनके आसपास के इलाकों में कभी कोई परेशानी आ जाए तो सबसे पहले यही हरकत में आते हैं। आर्मी बाद में आती है। पहले हालातों का सामना इन लोगों को करना पड़ता है।
 
क्या मुश्किल आपको झेलनी पड़ी।
मेरे लिए अपनी जिंदगी भर में अनोखे तरीके का यह अनुभव रहा है। पुलिस वाले पर फिल्म बनाना उनके बहुत करीब रहकर बातें करना एक बात होती है और पुलिस वाले या कमांडो की तरह पूरा एक दिन बिताना एक अलग बात होती है। सब कुछ असली में होता है। फिर यह कि आपके पास हथियार और जो असलहा है वह भी असली है। 
 
आप श्रीनगर जैसी ठंड में है। आप वहां काम कर रहे हैं और फिर 1 दिन में कुछ भी हो सकता है। लेकिन यह सब करते हुए भी मेरे दिल के अंदर एक गर्व की भावना थी, मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। मुझे यह ध्यान रखना था कि मैं इनके यूनिफॉर्म की गरिमा को सहेज कर आगे बढ़ता रहूं। आसान कुछ भी नहीं था लेकिन दिल में बहुत सारी। आकांक्षा रही। 

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