अजय देवगन ने 1991 में जब फूल और कांटे से शुरुआत की थी तब किसी ने भी नहीं सोचा था कि वे लंबी रेस के घोड़े हैं। 32 साल से अजय देवगन फिल्म इंडस्ट्री में न केवल टिके हुए हैं बल्कि बॉलीवुड के टॉप स्टार्स में उनकी गिनती होती है। फूल और कांटे को श्रीदेवी-अनिल कपूर की फिल्म 'लम्हें' के सामने रिलीज किया गया था तो कई लोगों ने इसे बेवकूफाना निर्णय करार दिया था। फूल और कांटे ने पहले शो से ही बढ़त बना ली और सुपरहिट रही, जबकि सितारों वाली फिल्म को असफलता का मुंह देखना पड़ा। फूल और कांटे में अजय अभिनय के नाम पर मारपीट करते रहे या फिर गानों में डांस। उनके अभिनय में चमक नहीं दिखाई दी।
पहली फिल्म सुपरहिट होने के बाद उन्होंने ढेर सारी फिल्में साइन कर ली। जिगर, दिव्यशक्ति, प्लेटफॉर्म, संग्राम, शक्तिमान बेदर्दी जैसी फिल्मों में वे सिर्फ फाइट करते नजर आए और इनमें से अधिकांश फ्लॉप रही। वो दौर भी कुछ इसी तरह का था जब समझदार दर्शकों ने सिनेमाघरों से दूरी बना ली थी और बकवास फिल्मों ने अपनी जगह बना ली थी। विजयपथ, सुहाग, दिलजले जैसी फिल्मों की सफलता अजय को उबारती रही।
अजय में परिवर्तन आया फिल्म जख्म से जो 1998 में रिलीज हुई थी। पहली बार अजय गंभीरता से अभिनय करते दिखाई दिए। ये पता चला कि यह बंदा भी मौका मिले तो अभिनय कर सकता है। ज़ख्म भले ही बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा नहीं चली हो, लेकिन अजय को अभिनेता के रूप में इस फिल्म ने मजबूत कर दिया। हम दिल दे चुके सनम में छोटे से रोल में भी अजय ने छाप छोड़ी।
21 वीं सदी लगते ही फिल्म मेकिंग और दर्शकों की रूचि में परिवर्तन आया। फॉर्मूला फिल्मों के साथ-साथ वो फिल्में भी पसंद की जाने लगीं जो 'हटके' बनती थी। लोगों की पसंद के अनुरूप जो सितारे नहीं बदले वो दौड़ से बाहर हो गए। मिसाल के तौर पर गोविंदा, सनी देओल, सुनील शेट्टी। लेकिन अजय ने अपने आपको बदल लिया। न केवल एक्टिंग को लेकर वे गंभीर हो गए बल्कि उनकी फिल्मों का चयन का पैमाना भी बदल गया।
लज्जा (2001), कंपनी (2002), द लीजेंड ऑफ भगत सिंह (2002), भूत (2003), गंगाजल (2003), युवा (2004), रेनकोट (2004) जैसी फिल्मों में भी वे नजर आए। राजकुमार संतोषी, रामगोपाल वर्मा, प्रकाश झा, मणिरत्नम, ऋतुपर्णो घोष जैसे फिल्मकारों की फिल्में की। सिर्फ नाच-गाने या फाइट के बजाय उन्होंने गहराई वाले रोल किए और अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों के दिलों में छाप छोड़ी। इस बदलाव से फायदा यह हुआ कि अजय के पैर मजबूती से जम गए।
इसी दौरान रोहित शेट्टी के साथ उनकी जोड़ी जमी और फिर दोनों ने सफलता की नई इबारत लिख दी। रोहित के साथ उन्होंने जहां गोलमाल सीरिज जैसी कॉमेडी फिल्में की तो सिंघम जैसी दमदार एक्शन मूवीज़ में भी नजर आए। गोलमाल और सिंघम के रोल आज भी लोग याद करते हैं। ओंकारा, राजनीति, वंस अपॉन ए टाइम, सत्याग्रह, दृश्यम, रेड, तानाजी द अनसंग हीरो, दृश्यम 2 जैसी फिल्मों के जरिये भी अजय सफलता का परचम लहराते रहे।
रोल चुनने की अजय में बेहतरीन क्षमता है। लंबाई के बजाय उन्होंने भूमिका की गहराई को महत्व दिया। नए निर्देशकों के साथ भी काम करने से परहेज नहीं किया। स्टारडम को लेकर नखरे नहीं दिखाए। विवादों से दूर रहे। प्रोफेशनल तरीके से काम किया। कभी अजय को लेकर कोई अफेयर की बात नहीं सुनी गई। कभी उनके नखरों को लेकर चटखारे भरी खबरें नहीं आईं। कभी उन्होंने निर्माता को तंग नहीं किया।
वक्त के साथ-साथ अजय बदलते रहे। फिल्म निर्माता तो बहुत पहले ही बन गए थे। निर्देशन भी किया। अब निर्माता के रूप में अजय अपनी कंपनी को स्थायित्व देना चाहते हैं। वे 55 साल के हो गए हैं। जानते हैं कि बतौर हीरो उनके पास ज्यादा समय नहीं है। इसलिए निर्माता के रूप में वे बॉलीवुड में लंबी इनिंग खेलना चाहते हैं। अब वे रोल भी अपनी उम्र के मुताबिक निभाते हैं।
ओटीटी प्लेटफॉर्म को भी उन्होंने अपनाया है। रूद्र नामक वेबसीरिज की। फिल्म भुज द प्राइड ऑफ इंडिया को तो सीधे ओटीटी पर ही रिलीज कर दिया। संभव है कि कुछ वर्षों बाद वे चरित्र रोल भी निभाते नजर आएं। अजय समय के साथ चलते आए हैं। नए परिवर्तनों को स्वीकारने में कभी नहीं हिचकिचाए। और इसी बात में उनकी सफलता का राज छिपा हुआ है। अजय की फिल्म 'भोला' हाल ही में सिनेमाघरों में रिलीज हुई है।