'सपनों की छलांग' में अपने किरदार राधिका के लिए मेघा रे की सलाह, थोड़ा रुककर राहत की सांस लें

WD Entertainment Desk
गुरुवार, 20 अप्रैल 2023 (16:24 IST)
जहां मुंबई को कई लोगों ने 'सपनों का शहर' कहा है, वहीं इसे एक ऐसा शहर भी कहा जाता है, जो कभी नहीं सोता! और, अपने सपनों की तलाश में इस मैक्सिमम सिटी की हलचल के बीच हैं 'बंबई नगरिया' के लोग। ऐसे ही एक सफर को दर्शाती है राधिका यादव की ज़िंदगी, जो सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन के नए ज़माने के ड्रामा 'सपनों की छलांग' की नायिका हैं। 

 
राधिका यादव ने पहले ही दर्शकों के साथ एक खास रिश्ता बना लिया है। राधिका एक सफल करियर बनाने के लिए विश्वास की छलांग लगाते हुए अपना घर छोड़कर एक अनजान शहर में आ गई हैं। इस समय राधिका के मन में बहुत-सी चीजें चल रही हैं। जहां एक तरफ उसे अपने मां-बाप राधेश्याम यादव (संजीव जोतांगिया) और सुमन यादव (कशिश दुग्गल) की चिंताओं को दूर करना है, जिन्हें वो झांसी में छोड़ आई है।
 
वहीं उसे एक नई नौकरी की चुनौतियों का सामना करने के अलावा अपने रूम के साथियों और एक नए शहर में रहने के बीच संतुलन भी बनाना है, लेकिन इस किरदार को निभाने वालीं एक्ट्रेस मेघा रे की राधिका के लिए महानगर में रहने के लिए कुछ सलाह है। 
 
मेघा रे कहती हैं, मुंबई में लोग भागदौड़ करते हैं, चुनौतियों से जूझते हैं और अपने सपनों को सच करने के लिए संघर्ष करते हैं, लेकिन निश्चित रूप से, आपको भी इस शहर से प्यार हो जाता है क्योंकि यह आपको मजबूत और आत्मनिर्भर बनना सिखाता है। चूंकि राधिका महानगर में अपना सफर शुरू कर रही है, तो मैं उससे कहना चाहूंगी कि जब भी ये शहर बहुत बड़ा और अफरातफरी भरा लगने लगे, तो थोड़ा रुककर राहत की सांस लें। 
 
उन्होंने कहा, मुंबई भले ही बड़ा लगे, लेकिन यह आपको कभी भी अकेला महसूस नहीं होने देगी। यह एक ऐसा शहर है, जो आपको अगले दिन फिर से जागने और काम पर जाने के लिए लोकल ट्रेन पकड़ने के लिए प्रेरित करता है। शहर के शोर में आपको सुकून के अपने छोटे-छोटे पल मिलेंगे। चाहे वो कटिंग चाय की खुशबू हो, लोकल ट्रेन में लेडीज़ के साथ प्यारी बातचीत हो, काला घोड़ा में वास्तुकला की सुंदरता और चमक हो या फिर लंबी दूरी तय करते हुए अपने पसंदीदा बॉलीवुड गाने सुनना हो, आप हर मोड़ पर पाएंगे कि मुंबई में एक आत्मा बसती है। 
 
मेघा ने कहा, 'अपुन', 'मस्का', 'पतली गली', और सब्जियों को 'भाजी' और प्याज को 'कांदा' कहने की आदत डालने में समय लग सकता है, लेकिन आप धीरे-धीरे इसे समझेंगे और आखिरकार, सबकुछ 'झकास' हो जाएगा।
Edited By : Ankit Piplodiya

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