जिस तरह भेल में कई चीजों को मिलाकर पेश किया जाता है, ताकि खाने वाले को चटपटे स्वाद का आनंद मिले, उसी तरह ‘आलू चाट’ कई पुरानी फिल्मों को देखकर बनाई गई है। फिल्म देखते समय आपको कई फिल्मों की याद आएगी। इसके बावजूद ‘आलू चाट’ बेस्वाद लगती है।
एम पी 3 और समय जैसी फिल्म बनाने वाले निर्देशक रॉबी ग्रेवाल से उम्मीद थी कि ‘आलू चाट’ में कुछ बेहतर देखने को मिलेगा, लेकिन अफसोस कि वे इस अपेक्षा पर खरे नहीं उतरते। दर्शकों को उन्होंने हँसाने की कोशिश की है, लेकिन इक्का-दुक्का जगहों पर हँसी आती है। वो भी चुटीले संवादों की वजह से।
अमेरिका में रहने वाला निखिल दिल्ली अपने परिवार से मिलने के लिए आया है। उसे शादी के लिए पंजाबी लड़कियाँ दिखाई जाती हैं, लेकिन वह किसी और से प्यार करता है। अपने पिता की गुस्से की वजह से वह अपने प्यार के बारे में उन्हें बताने की हिम्मत नहीं जुटा पाता। इस काम में वह अपने पिता के खास दोस्त की मदद लेता है।
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फिल्म की कहानी में नयापन नहीं है। स्क्रीनप्ले ऐसा लिखा गया है कि दर्शक फिल्म से जुड़ नहीं पाता। सैकड़ों बार देखे हुए दृश्य ‘आलू चाट’ में भी देखने को मिलते हैं।
आफताब और आमना कहने को तो फिल्म के हीरो-हीरोइन हैं, लेकिन करने को उन्हें कुछ खास अवसर नहीं मिले। कुलभूषण खरबंदा, मनोज पाहवा और संजय मिश्रा जैसे सहायक कलाकारों को ज्यादा अवसर मिला है और उन्होंने बखूबी काम किया है।