मैरी एन इवांस नामक एक्ट्रेस जिसे फिरयलेस नाडिया के नाम से जाना गया, ने भारतीय फिल्मों में धूम मचाई थी। 1935 में हंटरवाली नामक फिल्म रिलीज हुई थी और दर्शक उनके स्टंट के दीवाने हो गए थे। वेब सीरीज 'सिटाडेल: हनी बनी' की हनी (सामंथा) नाडिया की दीवानी है। वह फिल्मों में हीरोइन बनना चाहती है, लेकिन फिलहाल छोटे-मोटे रोल और स्टंट ही करती है। अपनी बेटी का नाम वह नाडिया रखती है।
इस नाडिया का कनेक्शन प्रियंका चोपड़ा अभिनीत वेब सीरीज 'सिटाडेल' से है, यानी सामंथा की बेटी आगे चल कर प्रियंका चोपड़ा बन कर एजेंट के रूप में काम करती है और सिटाडेल : हनी बनी उस सीरीज का प्रीक्वल है।
बनी (वरुण धवन) भी फिल्मों में स्टंटमैन है, लेकिन ऐसी फाइट और स्टंट करता है कि लोग हैरान रह जाते हैं। बनी असल में एक एजेंसी में बतौर एजेंट काम करता है। उसकी मुलाकात हनी से होती है जो काम की तलाश में है और हनी को बनी भी एजेंसी में एजेंट के रूप में शामिल करा देता है। बाबा (केके मेनन) की इस एजेंसी एक दूसरी एजेंसी से फाइट कर रही है। अब इन एजेंसी के क्या मकसद है? कौन सही कौन गलत है? हनी और बनी का क्या कनेक्शन है? ये सारे सवालों के जवाब धीरे-धीरे सामने आते हैं।
सीता आर मेनन और राज एंड डीके द्वारा लिखी गई कहानी को लीनियर तरीके से न दिखाते हुए दो भागों में, वर्ष 1992 और 2000 में, तोड़ा गया है। पूरी सीरिज में कहानी बार-बार आगे-पीछे होती रहती है। किरदारों के लुक में खास अंतर नहीं रहता है, इसलिए कहानी को बार-बार आगे-पीछे करना खीज पैदा करता है।
कहानी में भी कई तरह के झोल हैं। जैसे हनी को अचानक एक एजेंसी में शामिल कर लेना दर्शकों को हजम नहीं होता। हनी और बनी जिस तरह से बिछड़ जाते हैं उसको लेकर वेबसीरिज कोई बात नहीं करती, जबकि ये बात कहानी का अहम हिस्सा है। जिस मकसद को लेकर हनी-बनी की एजेंसी, दूसरी एजेंसी से लड़ रही है वो बहुत ज्यादा स्पष्ट नहीं है। किसी भी बड़ी डील के दौरान महत्वपूर्ण व्यक्ति का अनजान शख्स पर विश्वास कर लेना, ये कड़ियां सीरीज को कमजोर करती हैं।
इसके अलावा कहानी में वो थ्रिल नहीं है, जो इस सीरिज का उद्देश्य है। रोमांच और उतार-चढ़ाव की कमी एपिसोड दर एपिसोड महसूस होती है। चौंकाने की कोशिश की गई है, लेकिन बात नहीं बन पाई। क्लाइमैक्स भी दर्शकों को निराश करता है। माना कि आगे की गुंजाइश के लिए कुछ बातें अधूरी छोड़ दी जाती है, लेकिन सिटाडेल: हनी बनी में ऐसी बातें बहुत सारी हैं।
राज एंड डीके, लेखक की बजाय, निर्देशक के रूप में ज्यादा प्रभावित करते हैं। जिस तरह से उन्होंने अपनी टेक्निकल टीम से काम लिया है, जिस तरह से सीरीज को फिल्माया है वही कुछ कारण हैं जो दर्शकों की थोड़ी रुचि, सीरीज में बनाए रखते हैं। पैसा खूब लगाया गया है और यह बात नजर आती है।
सिनेमाटोग्राफर जोहान हेउरलिन ऐड्ट की जितनी तारीफ की जाए कम है। उनका काम देखने लायक है। रूसो ब्रदर्स की फिल्मों/सीरीज में लंबे सिंगल टेक देखने लायक होते हैं और सिटाडेल: हनी बनी में भी तीन से चार ऐसे लंबे सीक्वेंस आते हैं जो तारीफ के योग्य हैं। एक्शन सीन खास प्रभावी नहीं है, जो कि इस तरह की सीरीज का माइनस पॉइंट है।
बनी के रूप में वरुण धवन ने एक्शन सीन अच्छे किए हैं, लेकिन अपनी एक्टिंग से वे दर्शकों पर असर नहीं छोड़ पाते। हनी के रूप में सामंथा को ज्यादा फुटेज मिले हैं। उन्हें दक्षिण भारतीय लड़की के रूप में दिखा कर उनकी कमजोर हिंदी को कवर किया गया है। सामंथा की एक्टिंग एपिसोड दर एपिसोड अच्छी से बुरी के बीच झूलती रहती है। प्रियंका चोपड़ा का बहुत ज्यादा प्रभाव भी उन पर नजर आया। नाडिया के किरदार में काशवी मजूमदार बाजी मार ले जाती है। इस बच्ची ने कमाल का अभिनय किया है। केके मेनन का किरदार ठीक से लिखा नहीं गया है, उसमें जिस तरह के शेड्स होने थे, नहीं है। सिकंदर खेर और साकिब सलीम के किरदार ठीक से शेप नहीं ले सके।
कुल मिला कर सिटाडेल हनी बनी बड़े बजट, बड़े नाम होने के बावजूद भी एक औसत सीरीज के रूप में सामने आती है।