हंगामा 2 के जरिये 8 साल बाद प्रियदर्शन ने और 14 साल बाद शिल्पा शेट्टी ने बॉलीवुड में वापसी की है, लेकिन दोनों ही इस फिल्म के जरिये प्रभावित नहीं कर पाए। 2003 में बनी 'हंगामा' एक बेहतरीन हास्य फिल्म है, लेकिन नई कहानी के साथ पेश किया गया इसका सीक्वल 'हंगामा' के आसपास भी नहीं फटकता। जिन कॉमिक फिल्मों के लिए प्रियदर्शन जाने जाते हैं वो 'हंगामा 2' में नजर नहीं आते।
फिल्म शुरुआत से ही लड़खड़ा जाती है। खासतौर पर पहला घंटा तो इतना बुरा है कि यकीन ही नहीं होता कि यह फिल्म प्रियदर्शन की है। सारे कलाकार ओवर एक्टिंग करते नजर आते हैं और फिल्म दर्शकों से कनेक्ट नहीं हो पाती। घंटे भर बाद फिल्म ठीक-ठाक वाली रेंज में आती है। कुछ सीन हंसाते हैं, लेकिन क्लाइमैक्स पानी फेर देता है।
अंजलि तिवारी (शिल्पा शेट्टी) बेहद हॉट और मॉडर्न महिला है जबकि उसका पति राधेश्याम तिवारी (परेश रावल) उम्र में अपनी पत्नी से कहीं बड़ा है। इसलिए वह अपनी पत्नी पर कड़ी नजर रखता है। अंजलि के खास दोस्त आकाश (मीज़ान जाफरी) की शादी बलराज कपूर (मनोज जोशी) की बेटी से होने वाली है।
सगाई के कुछ दिन पहले एक वाणी (प्रणिता सुभाष) एक छोटी सी बच्ची के साथ आकाश के घर आती है और दावा करती है कि यह बच्ची आकाश की है। इससे आकाश के पिता कर्नल कपूर (आशुतोष राणा) नाराज हो जाते हैं। आकाश का कहना है कि वह इस बच्ची का पिता नहीं है, लेकिन वाणी कुछ सबूत पेश कर देती है। इससे कपूर खानदान में उथल-पुथल मच जाती है।
क्या अंजलि का किसी से चक्कर चल रहा है? क्या वाणी की बच्ची का पिता आकाश ही है? आकाश और वाणी का क्या रिश्ता है? जैसे सवालों के इर्दगिर्द कहानी गूंथ कर हास्य पैदा करने की कोशिश की गई है।
कहानी प्रियदर्शन की है और इसका स्क्रीनप्ले युनूस सेजवाल ने लिखा है। कहानी कई तरह के सवाल खड़े करती हैं। जैसे कि आकाश और वाणी एक-दूसरे को कॉलेज के दौरान अच्छी तरह से जानते थे। फिर क्यों उनमें तकरार हुई? क्यों वे अलग हुए? इस बारे में सतही जानकारियां दी गई।
अंजलि जैसी महिला ने क्यों उम्र में बड़े शख्स राधेश्याम से शादी की, इसका जवाब भी नहीं मिलता। वाणी की बच्ची की डीएनए रिपोर्ट को कपूर परिवार जिस तरह से हल्के में लेता है वो हास्यास्पद है। भला इतने गंभीर मामले की रिपोर्ट लेने और डॉक्टर से बात करने के लिए कोई अपने बेवकूफ नौकर को भेजता है क्या?
कहानी में किरदार तो मजेदार गढ़े गए हैं, लेकिन इन किरदारों को जोड़ने वाले प्रसंग दमदार नहीं है। लॉटरी जीतने वाला प्रसंग, जॉनी लीवर द्वारा बच्चों को पढ़ाने वाला प्रसंग, राजपाल यादव वाला एक सीन जिसमें वे वाणी के पति बन कर आते हैं, बोरिंग और लाउड लगते हैं। क्लाइमैक्स जिस तरह से निपटाया गया है वो दर्शाता है कि लेखक ने ज्यादा दिमाग नहीं दौड़ाया है और कहानी को किसी तरह समेट दिया है।
प्रियदर्शन ने साफ-सुथरी फिल्म तो बनाई है, लेकिन मनोरंजक फिल्म नहीं बना पाए। वे इतने कॉमिक सीन भी नहीं दे पाए हैं कि हास्य की आड़ में दर्शक कहानी की कमजोरियों को इग्नोर कर दें। प्रियदर्शन का प्रस्तुतिकरण वर्तमान फिल्मों के प्रस्तुतिकरण की तुलना में पुराना लगता है। कहानी को बहुत खींचा है, बात पेश करने में सफाई नहीं है और गानों को बिना सिचुएशन के रखा गया है।
परेश रावल का अभिनय अच्छा है, लेकिन उनका रोल और लंबा हो सकता था और उनके किरदार को लेकर कई हास्य दृश्य रचे जा सकते थे। कुल मिलाकर उनकी प्रतिभा का पूरा उपयोग नहीं हुआ। शिल्पा शेट्टी ग्लैमरस लगीं, लेकिन उन्हें भी ज्यादा अवसर नहीं मिले। मीज़ान जाफरी की एक्टिंग मिली-जुली रही। कहीं वे ओवर एक्टिंग करते नजर आएं तो कहीं उनका अभिनय अच्छा रहा, लेकिन एक उनमें संभावनाएं नजर आती हैं।
प्रणिता सुभाष की एक्टिंग बढ़िया रही। आशुतोष राणा भी ओवर एक्टिंग के शिकार नजर आए। राजपाल यादव, जॉनी लीवर बेहद लाउड रहे जबकि मनोज जोशी का काम उम्दा रहा। अक्षय खन्ना भी चेहरा दिखाते हैं, लेकिन रोल दमदार नहीं है।
कुल मिलाकर हंगामा 2 में हंगामा के लायक कोई बात ही नहीं है।