साइज से बड़ा जूता पहन लिया तो औंधे मुंह गिरना तय है। निर्देशक केन घोष ने अब तक इश्क-विश्क, फिदा, चांस पे डांस जैसी कुछ फिल्में और वेबसीरिज बनाई हैं। उनका सारा काम औसत दर्जे का है। गुजरात स्थित अक्षरधाम मंदिर पर हुए आतंकी पहले पर आधारित फिल्म 'स्टेट ऑफ सीज : टैंपल अटैक' बनाने का उनका निर्णय भारी पड़ा है। यह ऐसा विषय है जिस पर फिल्म बना कर कुशल निर्देशक ही इसके साथ न्याय कर सकता है और केन घोष इस मामले में बुरी तरह असफल रहे हैं।
24 सितंबर, 2002 को गुजरात के गांधीनगर में अक्षरधाम मंदिर में हथियारबंद लोगों ने एक राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड कमांडो और गुजरात पुलिस के दो अधिकारियों सहित 33 लोगों की हत्या कर दी थी और 80 घायल हो हुए थे।
इस घटना पर फिल्म बनाते समय विषय को बहुत ही हौले से छुआ गया है। फिल्म में पहले ही हाथ बचाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि यह वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है। कुछ किरदार और प्रसंग अपनी ओर से जोड़ दिए हैं। लोगों और जगहों के नाम बदल दिए हैं। इसके बाद पूरी छूट मिल गई जिस पर एक स्टीरियोटाइप किरदारों को लेकर टिपिकल बॉलीवुड फिल्म बना दी गई है।
फिल्म की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह तथ्यों से दूर हुई और काल्पनिक अधिक हो गई। इसके लिए लेखक टीम भी कम दोषी नहीं है। अक्षरधाम से जोड़ कर फिल्म को महज चर्चित करने की कोशिश की गई है।
कहानी में सिर्फ हनुत सिंह (अक्षय खन्ना) तथा एक और कमांडो (गौतम रोडे) के बारे में ही थोड़ी जानकारी दी गई है जैसे कि हनुत सिंह के नेतृत्व में एक मिशन असफल रहा था और उसे खुद को साबित करना है। दूसरे की पत्नी बच्चे को जन्म देने वाली है। वह राष्ट्र के प्रति कर्तव्य और पत्नी की देखभाल के बीच बंटा हुआ है। इनके अलावा किसी भी पात्र को उभरने का मौका नहीं दिया गया है। पीड़ितों के दर्द को आप महसूस ही नहीं कर पाते हैं।
हनुत सिंह के जम्मू और कश्मीर मिशन वाला शुरुआती सीन महज फिल्म की लंबाई बढ़ाने के लिए है। उसे बेवजह कहानी से चिपकाया गया है। जो यह दर्शाता है कि कहने के लिए लेखक और निर्देशक के पास ज्यादा नहीं था।
निर्देशक केन घोष ने अक्षरधाम अटैक से फिल्म को जोड़ा तो है, लेकिन अच्छाई बनाम बुराई आधारित एक सामान्य फिल्म ही सामने आती है। चंद एक्शन सीक्वेंस अच्छे हैं।
अक्षय खन्ना ने अपना किरदार गंभीरता के साथ निभाया है। गौतम रोडे और विवेक दहिया को जितना भी समय मिला उन्होंने अक्षय का साथ खूब निभाया।
कुल मिलाकर यह प्रयास बेहद सतही है। यदि आप स्टेट ऑफ सीज : टैंपल अटैक के जरिये भारत के सामने पैदा हुए संकट के बारे में जानना चाहते हैं, तो खाली हाथ रहते हैं।