पिता द्वारा अपनी संतान पर अपनी इच्छा थोपने को लेकर बॉलीवुड में कुछ फिल्में बनी हैं और इट्स माय लाइफ इस कड़ी में एक और फिल्म है। इट्स माय लाइफ वर्षों से अटकी पड़ी थी। इस फिल्म के हीरो हरमन बावेजा को लोग भूल चुके हैं और हीरोइन जेनेलिया डिसूजा अब गृहस्थी संभाल रही हैं। लेकिन टीवी और ओटीटी प्लेटफॉर्म के कारण इस तरह की फिल्मों को दर्शकों तक पहुंचने का माध्यम मिल जाता है। इट्स माइ लाइफ पर समय की मार नजर आती है। फिल्म का प्रस्तुतिकरण आउटडेटेट लगता है और जिस तरह से फिल्म बनी है उसे देख समझ आता है कि आखिर यह फिल्म रिलीज क्यों नहीं हो पाई।
अभि (हरमन बावेजा) किस लड़की से शादी करेगा से लेकर कौन सी शर्ट पहनेगा, इसका चुनाव उसके पिता सिद्धांत (नाना पाटेकर) ही करते हैं। पिता का घर में दबदबा है और सभी के फैसले वे खुद ही लेते हैं। घर वाले परेशान हैं, लेकिन सभी उनसे डरते हैं। अभि की एक लड़की से सगाई हो जाती है, जबकि उसकी ख्वाहिश थी कि वह प्रेम-विवाह करे।
सगाई के बाद अभि को मुस्कान (जेनेलिया डिसूजा) से प्रेम हो जाता है। जब यह बात उसके पिता को पता चलती है तो वे आग-बबूला हो जाते हैं।
अभि का परिवार छुट्टियां बिताने विदेश जाता है तो अभि अपने पिता से निवेदन करता है कि मुस्कान को भी साथ लिया जाए। यदि उन्हें मुस्कान में कुछ कमी नजर आई तो वह मुस्कान से शादी नहीं करेगा। शर्त मान ली जाती है। क्या मुस्कान अभि के पिता का दिल जीत पाती है? क्या मुस्कान के कारण समस्याएं पैदा होती हैं? क्या मुस्कान को लगता है कि वह अभि के लिए नहीं बनी है? इन प्रश्नों के जवाब फिल्म खत्म होने पर मिलते हैं।
फिल्म की स्क्रिप्ट सपाट है और कई सवाल भी खड़े करती है। पिता-पुत्र का जो विरोधाभास है, उसे ठीक से उभारा नहीं गया है, जिसके कारण दर्शक परदे पर दिखाए जा रहे घटनाक्रम से सहमत नहीं हो पाता। पिता की ऐसी बंदिशें नजर नहीं आती जिससे लगा कि बेटे पर जुल्म हो रहा है। बेटा रोजाना शराब पीता है, दोस्तों के साथ घूमता है, सड़कों पर रोमांस करता है, लगता ही नहीं कि वह जिंदगी से नाखुश है। पिता जब अपना दृष्टिकोण बताता है तो वो गलत नहीं लगता।
अभि के पिता सिद्धांत को बहुत कठोर दिखाया गया है, लेकिन वे मुस्कान को विदेश ले जाने की शर्त बड़ी आसानी से मान जाते हैं। क्यों? इसका जवाब नहीं मिलता। विदेश जाने पर मुस्कान कोई ऐसा काम करती नजर नहीं आती जिससे लगे कि वह अभि के पिता का दिल जीतने की कोशिश कर रही है।
फिल्म में मनोरंजन का अभाव है। एक जैसे सीन जब लगातार आते रहते हैं तो बोरियत होने लगती है। इट्स माय लाइफ में कई फिल्मों का घालमेल भी नजर आता है। सिद्धांत का कठोर अनुशासन रेखा की फिल्म 'खूबसूरत' की याद दिलाता है तो परिवार को जीतने वाली बात 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे' की।
कुछ घटनाक्रम ऐसे भी दिखाए गए हैं जिस पर क्यों और कैसे जैसे सवाल होते हैं, जैसे अभि के दोस्त की अचानक शादी तय हो जाना जब वह विदेश यात्रा पर होता है।
फिल्म में कई गाने हैं, लेकिन एक भी सुनने लायक नहीं है। इसलिए ये गाने रूकावट पैदा करते हैं।
निर्देशक अनीस बज्मी, जो मसाला फिल्म बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं, यहां पर आउट ऑफ फॉर्म नजर आए। उनका यह 'पकवान' बेस्वाद और फीका है। कुछ दृश्य ही ऐसे हैं जहां थोड़ा-बहुत मनोरंजन होता है। फिल्म को मनोरंजक बनाने की भरपूर गुंजाइश थी, लेकिन अनीस से बात नहीं बन पाई।
हरमन बावेजा का अभिनय औसत है। रोमांटिक सीन में वे ठीक रहे हैं, लेकिन शराब पीने वाले दृश्यों में ओवरएक्टिंग करते दिखाई दिए। जेनेलिया डिसूजा के लिए बबली गर्ल का किरदार निभाना बाएं हाथ का खेल है, लेकिन वे भी ओवरएक्टिंग का शिकार नजर आईं। नाना पाटेकर का अभिनय अच्छा है, लेकिन उनका किरदार ठीक से नहीं लिखा गया। शरत सक्सेना सहित सपोर्टिंग कास्ट की एक्टिंग बेरंग रही। कपिल शर्मा को देख नजर आता है कि फिल्म कितनी पुरानी है।
कुल मिलाकर 'इट्स माई लाइफ' आज की युवा पीढ़ी से कनेक्ट नहीं कर पाती है जिसके लिए यह बनाई गई है।
निर्माता : संजय कपूर, बोनी कपूर
निर्देशक : अनीस बज्मी
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
कलाकार : हरमन बावेजा, जेनेलिया डिसूजा, नाना पाटेकर, शरत सक्सेना