इम्तियाज अली की फिल्मों में यात्रा पर निकले लड़के-लड़कियों की कहानी दिखाई जाती है जो साथ में बिताए गए खट्टे-मीठे पलों के जरिये एक-दूजे को समझते और खोजते हैं। जब वी मेट से लेकर तो जब हैरी मेट सेजल में यही बात दिखाई देती है। इसी तरह की फिल्म है 'करीब करीब सिंगल'। इस कहानी के मुख्य पात्र युवा नहीं है। 35 से 40 वर्ष के हैं। मैच्योर हैं। अनुभवी हैं। रिलेशनशिप को लेकर उनकी समझ और सोच अलग है।
एक डेटिंग वेबसाइट के जरिये जया (पार्वती थिरूवोथु) और योगी (इरफान) की मुलाकात होती है। योगी का रिश्ता तीन लड़कियों से टूट चुका है। कुछ ऐसे ही हालात जया के भी हैं। दोनों के मिजाज थोड़े विपरीत हैं। योगी जो मन में आया बोल दिया। जो दिल ने कहा कर दिया। कोई चिंता नहीं कि फ्लाइट मिस हो जाएगी या ट्रेन छूट जाएगी।
जया कम बोलती है। शिष्टाचार का ध्यान रखती है। एक दूरी बना कर चलती है। वे एक यात्रा पर निकलते हैं जो भारत के कुछ शहरों से गुजरती हुई गंगटोक पर जाकर खत्म होती है। इस दौरान योगी अपनी पुरानी गर्लफ्रेंड्स से भी मुलाकात करता है। इस यात्रा में थोड़ी नोक-झोक होती है। कभी वे नजदीक आते हैं। कभी दूरियां पैदा होती है। दूसरे के नजरिये से खुद को समझने की कोशिश भी नजर आती है।
करीब करीब सिंगल बहुत ज्यादा घटना प्रधान नहीं है। इसमें दो मुख्य पात्रों के बीच बातचीत है। इस बातचीत के जरिये ही मनोरंजन करने का प्रयास किया गया है। यह बातचीत चलती रहती है, ट्रेन में, टैक्सी में, एअरपोर्ट पर, होटल में, आश्रम में, रोप वे पर। इस बातचीत के जरिये ही जया और योगी एक-दूसरे के विचार और मिजाज को समझते हैं।
दिक्कत इस लंबी बातचीत को लेकर ही है। यह इतनी उम्दा नहीं है कि आप बैठकर बस सुनते रहे। यह बातचीत कई बार बोर भी करती है। इसको लेकर माहौल तो खूब बनाया गया है, लेकिन जया और योगी के बीच होने वाले संवाद आपको देर तक बांधते नहीं है।
जया का योगी के साथ अचानक घूमने के लिए राजी होना भी आश्चर्य पैदा करता है क्योंकि पहली नजर में योगी एक चलता-पुर्जा आदमी लगता है। उसकी कोई बात प्रभावित नहीं करती। ऐसे में जया का उस पर विश्वास कर लेना कहानी पर यकीन नहीं दिला पाता। जया के किरदार के बारे में तो काफी जानकारी दी गई है, लेकिन योगी के बारे बहुत कम दर्शाया गया है। वह कौन है, क्या करता है, बताया नहीं गया, जबकि दर्शक यह जानने के लिए उत्सुक रहते हैं।
तनूजा चन्द्रा ने फिल्म का निर्देशन किया है। वे फिल्म को मनोरंजक नहीं बना पाई हैं। फिल्म लगभग दो घंटे की है, इसके बावजूद सुस्त रफ्तार के कारण बहुत लंबी लगती है।
अभिनय के मामले में फिल्म बढ़िया है। इरफान नि:संदेह बेहतरीन अभिनेता हैं, लेकिन दमदार स्क्रिप्ट के अभाव में वे अपने अभिनय से फिल्म को ऊंचाई पर नहीं ले जा पाए हैं। पार्वती थिरूवोथु ने इरफान को अभिनय के मामले में जोरदार टक्कर दी है और कई दृश्यों में भारी भी पड़ी हैं। इस फिल्म के बाद उन्हें कोई लोग पहचानने लगेंगे। नेहा धूपिया, ब्रजेन्द्र काला, ईशा श्रावणी, ल्यूक केनी छोटी-छोटी भूमिकाओं में हैं।
कुल मिलाकर करीब करीब सिंगल औसत फिल्मों के ही करीब है।