गोलमाल अगेन : फिल्म समीक्षा

बॉलीवुड की ज्यादातर हॉरर फिल्म कॉमेडी की तरह होती हैं क्योंकि उनमें जो हरकतें दिखाई जाती हैं उन्हें देख डर कम और हंसी ज्यादा आती है। बॉलीवुड की ज्यादातर कॉमेडी फिल्म हॉरर की तरह होती है क्योंकि उनमें कॉमेडी कम और टॉर्चर ज्यादा होता है। रोहित शेट्टी ने अपनी ताजा फिल्म 'गोलमाल अगेन'  में कॉमेडी में हॉरर का तड़का लगाया है, लेकिन ये तो करेला और वो भी नीमचढ़ा वाली बात हो गई है जो कि मुंह के स्वाद को कसैला कर देती है। 
 
गोलमाल सीरिज बेहद पॉपुलर है, लेकिन इसका चौथा भाग (गोलमाल अगेन) इस सीरिज की सबसे कमजोर फिल्म है। लगता है कि इसकी लोकप्रियता को भुनाने के लिए रोहित को जो समझ में आया वो बना दिया गया है। 
 
रोहित ने सोचा होगा कि चलो यार गोलमाल का चौथा भाग बनाते हैं। गोपाल, माधव, लकी, लक्ष्मण, पप्पी भाई, वसूली भाई, इंस्पेक्टर दांडे के किरदार तो लोगों को याद ही हैं। इन किरदारों को पिरोने के लिए जो कहानी चुनी गई है वो दर्शाती है यह महज 'प्रोजेक्ट' है। पूरी फिल्म में घटिया हरकतें होती रहती है और दर्शक हैरान होते रहते हैं कि क्या ये वही रोहित शेट्टी की फिल्म है जो मनोरंजक फिल्म बनाने के लिए जाने जाते हैं। 
 
फिल्म में बार-बार कहा गया है कि 'लॉजिक' नहीं 'मैजिक' होता है, लेकिन फिल्म में न तो लॉजिक है और न ही मैजिक। पूरी फिल्म खोखली है जिसमें न कहानी है, न कॉमेडी है,  न अच्छे गाने हैं, न रोमांस है। फॉर्मूला फिल्म की खूबियों पर भी ये फिल्म खरी नहीं उतर पाती। 
 
एक अनाथ आश्रम को बचाने की जद्दोजहद की कहानी है। एक तरफ गोपाल और लक्ष्मण है तो दूसरी तरफ माधव, लकी और लक्ष्मण। ये बचपन में इसी अनाथ आश्रम में पले बढ़े हैं। इस आश्रम को चलाने वाले व्यक्ति तथा इन सबकी दोस्त खुशी की हत्या कर दी गई है। कुछ लोग इस आश्रम पर कब्जा कर करोड़ों की जमीन हथियाना चाहते हैं। 
 
खुशी की आत्मा भटक रही है। वह इन सबके साथ एनी को भी नजर आती है। खुशी इन सबको अपनी हत्या वाली  बात बताती है और ये बदला लेते हैं। 
 
दिखाया गया है खुशी की आत्मा जो चाहे वो कर सकती है। क्लाइमैक्स में विलेन की धुनाई करती है। सवाल यह उठता है कि जब ये वह सब खुद कर सकती है तो गोपाल और इसकी गैंग की जरूरत ही क्या है? क्यों इतना तानाबाना बुना गया है? ये सवाल कहानी को कमजोर करता है जो खुद रोहित शेट्टी ने लिखी है। 
 
फिल्म के पहले हाफ में गोपाल-लक्ष्मण बनाम माधव-लकी-लक्ष्मण की तकरार को दिखाया है। हंसाने की भरसक कोशिश की गई है और यह कोशिश साफ नजर आती है। गूंगी फिल्मों के जमाने में जिस तरह की कॉमेडी हुआ करती थी उसकी घटिया नकल करने की कोशिश भी की गई है। 
 
गोपाल का किरदार भूत-प्रेत और अंधेरे से डरता है, इसको लेकर की कुछ हास्य सीन रचने की कोशिश की गई है, लेकिन मजाल है कि मुस्कान भी आ जाए। गोपाल और खुशी का रोमांस अधूरे मन से रखा गया है। दोनों की उम्र में अंतर दर्शाया गया है। कभी वे रोमांस करते हैं तो कभी उन्हें बाप-बेटी कह कर चिढ़ाया जाता है। आखिर इस सबकी जरूरत ही क्या थी? 
 
फिल्म में दो विलेन भी हैं, प्रकाश राज और नील नितिन मुकेश। इनकी एंट्री तब होती है जब इनको मार खानी होती है। गाने, एक्शन सीन खाली स्थान पर भरे गए हैं ताकि फिल्म को लंबा खींचा जा सके। 
 
गोपाल और उसकी गैंग की एनर्जी इस फिल्म में मिसिंग है। कुछ ही दृश्यों में वे हंसा पाए हैं और इसमें सारा दोष लेखकों को है जो कुछ भी ढंग का सोच नहीं पाए। 
 
बतौर निर्देशक रोहित शेट्टी निराश करते हैं। यह उनकी सबसे कमजोर फिल्म है। उनका 'टच' गायब है। एक रूटीन काम की तरह उन्होंने यह फिल्म बनाई है। लॉजिक को घर पर भी रख कर जाए तो भी यह फिल्म 'मैजिक' नहीं करती। कुछ सीन तो इसलिए रचे गए है ताकि कुछ कंपनियों के विज्ञापन किए जा सके।  
 
अजय देवगन, अरशद वारसी और तब्बू को ही कुछ कर दिखाने का मौका मिला है, लेकिन दमदार स्क्रिप्ट के अभाव में ये भी एक सीमा तक ही कुछ कर सके हैं। कुणाल खेमू, तुषार कपूर, परिणीति चोपड़ा, श्रेयस तलपदे भीड़ बढ़ाने के काम आए हैं। जॉनी लीवर जरूर अपने दम पर कुछ सीन में हंसाते हैं। प्रकाश राज और नील नितिन मुकेश के लिए ज्यादा कुछ नहीं था। मुकेश तिवारी, संजय मिश्रा, मुरली शर्मा जैसे कलाकारों को इसलिए लिया गया क्योंकि ये गोलमाल सीरिज की फिल्मों का हिस्सा रहे हैं। इनसे ज्यादा तो नाना पाटेकर की आवाज मनोरंजन करती है। 
 
फिल्म में कई संगीतकारों ने संगीत दिया है, लेकिन एक भी ढंग का गाना नहीं बना है। दो पुराने हिट गीतों का भी सहारा लेकर काम चलाया गया है। 
 
कुल मिलाकर 'गोलमाल अगेन' दिवाली का फुस्सी बम है। 
 
बैनर : रोहित शेट्टी प्रोडक्शन्स, रिलायंस एंटरटेनमेंट, मंगलमूर्ति फिल्म्स प्रा.लि.
निर्माता-निर्देशक : रोहित शेट्टी
संगीत : एस. थमन, अमाल मलिक, डीजे चीताज़, अभिषेक अरोरा, न्यू‍क्लिया
कलाकार : अजय देवगन, परिणीति चोपड़ा, तब्बू, अरशद वारसी, तुषार कपूर, श्रेयस तलपदे, कुणाल खेमू, मुकेश तिवारी, जॉनी लीवर, संजय मिश्रा 
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 31 मिनट 3 सेकंड 
रेटिंग : 1.5/5

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