फिल्म रात अकेली है एक हत्या की गुत्थी को सुलझाने की कहानी है। इस तरह की मर्डर मिस्ट्री तब अच्छी लगती है जब दर्शकों को हत्यारे तक पहुंचने की यात्रा में मजा आए। मजा तब दोगुना हो जाता है जब मन में उठ रहे प्रश्नों और हत्या क्यों की गई इसका वाजिब जवाब मिले।
हत्यारे तक पहुंचने की जर्नी 'रात अकेली है' में जोरदार है। उम्दा अभिनय और कसावट भरे निर्देशन के कारण फिल्म के तीन-चौथाई भाग में रोमांच बना रहता है, लेकिन मजा दोगुना इसलिए नहीं हो पाता कि राज को खोलने में बहुत ज्यादा हड़बड़ी दिखाई गई है।
उम्रदराज ठाकुर रघुबीर सिंह की हत्या उनकी दूसरी शादी वाली रात को ही हो जाती है। केस सौंपा जाता है पुलिस इंस्पेक्टर जटिल यादव (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) को।
रघुबीर सिंह के घर पर उसका बेटा करण, बेटी करूणा, दामाद रवि, भतीजा विक्रम, भतीजी वसुधा, भाभी प्रमिला सिंह, साला, नौकरानी चुन्नी और दूसरी पत्नी राधा है।
जटिल का मानना है कि घर का ही कोई व्यक्ति ऐसा है जिसने रघुबीर सिंह की हत्या कर दी है। रघुबीर सिंह प्रभावशाली आदमी था। विधायक मुन्ना राजा से उनके पारिवारिक रिश्ते हैं।
जब जटिल केस की तह में घुसने की कोशिश करता है तो उस डराया-धमकाया जाता है। एसएसपी लालजी शुक्ला भी उस पर दबाव बनाते हैं।
जटिल कैसे इस स्थिति से निपटता है? क्या वह हत्यारे तक पहुंचता है? आखिर किस कारण से रघुबीर की हत्या की गई है? इन सवालों के जवाब फिल्म के आखिर में मिलते हैं।
स्मिता सिंह द्वारा लिखी गई कहानी में कई घुमाव-फिराव है। कदम-कदम पर साजिश नजर आती है। ऐसे कई किरदार हैं जिन पर शक किया जा सकता है क्योंकि कुछ के पास ऐसे कारण हैं जिसकी वजह से वे रघुबीर की हत्या कर सकते हैं। इसलिए फिल्म शुरुआत से ही दर्शकों पर अपनी पकड़ बना लेती है।
निर्देशक हनी त्रेहान का कहानी को पेश करने का तरीका भी उम्दा है। यह थ्रिलर फिल्म है इसलिए वे इसे तेजी से नहीं भगाते हैं बल्कि तल्लीनता के साथ अपनी बात कहते हैं। लेकिन ये गति कब ज्यादा रखना है और कब कम इस मामले में वे थोड़े गड़बड़ा गए हैं।
आधी से ज्यादा फिल्म संतुलित गति से चलती है। फिर ठहराव कुछ ज्यादा हो जाता है। अंत में जब रहस्य से परदा उठता है तो स्पीड इतनी ज्यादा हो जाती है कि तालमेल बैठाना मुश्किल हो जाता है।
फिल्म का अंत उन उम्मीद पर खरा नहीं उतरता जितना कि तीन-चौथाई फिल्म में माहौल बनाया गया है। कुछ सवाल छोड़ जाता है। फिल्म में एक कमी ये भी लगती है कि ज्यादातर नए चेहरे हैं इसलिए यह याद रखना थोड़ा मुश्किल हो जाता है कौन क्या है।
लेकिन इन कमियों के बावजूद भी फिल्म ज्यादातर समय बांध कर रखती है। इसकी वजह है बढ़िया एक्टिंग, कुशल निर्देशन, उम्दा सिनेमाटोग्राफी और शानदार आर्टवर्क।
फिल्म कानपुर में सेट है और उत्तर भारत वाला अंदाज फिल्म में खूबसूरती के साथ पिरोया गया है। पुरानी हवेली, फर्नीचर के साथ जो आर्टवर्क है वो फिल्म की गहराई को बढ़ाता है।
पंकज कुमार का कैमरावर्क लाजवाब है। लाइट्स का बेहतरीन इस्तेमाल है और यह फिल्म को एक अलग ही लुक देता है। कुछ सीन बेहतरीन तरीके से शूट किए गए हैं।
नवाजुद्दीन सिद्दीकी की एक्टिंग गजब है। जटिल यादव के किरदार में वे पूरी तरह डूबे हुए हैं और फुल फॉर्म में वे नजर आए। एक जिद्दी इंस्पेक्टर की भूमिका उन्होंने 'कड़क' अंदाज में अदा की है।
राधिका आप्टे जरूर फीकी रही। वे जितनी उम्दा अभिनेत्री हैं, उस स्तर तक नहीं पहुंच पाईं। आदित्य श्रीवास्तव, श्रीधर धुबे, शिवानी रघुवंशी तिग्मांशु धुलिया, इला अरुण, रिया शुक्ला सहित तमाम सपोर्टिंग कास्ट का काम बेहतरीन है।
इला ने नवाजुद्दीन की मां की भूमिका निभाई है और मां-बेटे की नोकझोक अच्छा मनोरंजन करती है। फिल्म की लंबाई थोड़ी कम की जा सकती थी।
कुल मिलाकर 'रात अकेली है' महान फिल्म नहीं है, लेकिन इसमें वो तत्व हैं जो इसे देखने लायक बनाते हैं।