स्पेशल ऑप्स जैसी शानदार सीरिज के बाद 'स्पेशल ऑप्स 1.5 : द हिम्मत स्टोरी' देख कुछ प्रश्न दिमाग में कौंधते हैं? क्या इसे महज स्पेशल ऑप्स की सफलता का फायदा उठाने के लिए बनाया गया? क्या कोई कांट्रेक्ट था जिसे पूरा करने के लिए जो सूझा बनाकर पेश कर दिया गया? क्योंकि यह सीरिज पुरानी सीरिज जैसा मजा बिलकुल भी नहीं देती।
इस सीरिज से नीरज पांडे जैसे काबिल निर्देशक जुड़े हैं जिन्होंने 'बेबी' नामक फिल्म बनाई थी। इस फिल्म से एक किरदार को लेकर उन्होंने 'नाम है शबाना' नामक फिल्म रची थी। यही प्रयोग उन्होंने फिर किया है। स्पेशल कॉप्स के मुख्य चरित्र हिम्मत सिंह को लेकर उन्होंने जो कहानी गढ़ी है वो बिलकुल भी प्रभावित नहीं करती। इस तरह की कई कहानियां अब ओटीटी पर आ चुकी है और यह आउटडेटेट सी लगती है।
स्पेशल कॉप्स की तरह फिर दो सरकारी बंदे जांच कर रहे हैं। इस बार हिम्मत सिंह (केके मेनन) सामने नहीं बैठा है, लेकिन उसके बारे में पूछताछ अब्बास शेख (विनय पाठक) से हो रही है जो एक मिशन में हिम्मत सिंह के साथ था।
हिम्मत सिंह के बारे में जानकारी देने के लिए अब्बास को हिम्मत के एक मिशन के बारे में बताना पड़ता है। फ्लेशबैक में मिशन दिखाया जाता है और हिम्मत के बारे में कुछ नई बातें सामने आती हैं।
जो मिशन बताया गया है वो बेहद कमजोर है। उसमें जरूरी रोमांच या पकड़ नहीं है। सभी देखा सा लगता है। कहानी को बार-बार आगे-पीछे घुमाया गया है जिससे कन्फ्यूजन भी पैदा होता है।
यह सीरिज लेखन के मामले में कमजोर है। लेखक अपनी ओर से कुछ भी नया नहीं दे पाए हैं और कुछ दृश्य ऐसे रचे हैं जिन पर यकीन नहीं होता। विदेशों में बड़े आराम से एजेंट गोलीबारी और हत्याएं करते हैं। हद तो तब हो गई जब उड़ते प्लेन में मर्डर दिखा दिया गया।
लेखक सस्पेंस को बरकरार नहीं रख पाए। आगे क्या होने वाला है सबको आसानी से पता चल जाता है। किसी भी किरदार को फंसाने के लिए बड़ी आसानी से उससे गलतियां करवा दी जाती हैं।
कहानी को भव्यता देने और दर्शकों को चकाचौंध करने के लिए कई पात्र डाले गए हैं, इंटरनेशनल लोकेशन्स पर शूट किया गया है कई छोटी घटनाएं दर्शाई गई हैं, लेकिन बात नहीं बन पाती।
निर्देशक के रूप में नीरज पांडे और शिवम नायर की पकड़ तकनीकी विभाग पर मजबूत रही, लेकिन लेखकों की कमजोरी के आगे उनकी भी नहीं चली। अच्छी बात यह है कि बात खत्म करने के लिए चार एपिसोड ही लिए।
केके मेनन को युवा के रूप में पेश किया है और कई बार उनका मेकअप आंखों को चुभता है, लेकिन उनकी एक्टिंग शानदार रही है। विनय पाठक फिर एक बार अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराते हैं। आफताब शिवदासानी प्रभावित करते हैं। गौतमी कपूर, परमीत सेठी, काली प्रसाद मुखर्जी का अभिनय बढ़िया है।
स्पेशल ऑप्स को यदि हम पेड़ मान ले तो स्पेशल ऑप्स 1.5 ऐसी टहनी है जो बेतरतीब लगती है।