अगर आप जोनाथन स्विफ्ट की मशहूर कहानी गुलीवर्स ट्रेवल्स के मुरीद है और उसे रुपहले परदे पर देखना चाहते हैं तो शायद आपको निराशा ही हाथ लगे।
इस महान कहानी पर पहले भी फिल्म बन चुकी है और फिल्मों में तकनीक के बढ़ते प्रभाव से इस 3डी फिल्म से दर्शकों को जो उम्मीद बनती है वो यह फिल्म पूरी करने में असफल रही है।
इस फिल्म में गुलीवर का किरदार निभाया है जैक ब्लैक ने जो इसके पहले कूंग-फूँ पांडा और किंगकॉंग जैसी सफल फिल्मों से दर्शकों में अपनी एक खास जगह बना चुके है।
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बहरहाल फिल्म शुरू होती है लेम्युअल गुलीवर द्वारा अपनी ट्रेवल एडिटर ड्रेसी सिल्वरमैन (अमांडा पीट) को प्रभावित करने के लिए रहस्मय बरमूडा ट्रेंगल पर एक स्टोरी करने के सफर से।
गुलीवर अकेला ही इस स्टोरी को पूरा करने एक छोटी नौका पर निकल पड़ता है पर एक तूफान का शिकार हो कर पहुँच जाता है लिलिपुट में जहाँ उसका स्वागत करते हैं। 6 इंच छोटे लोग। अपने बड़े साइज से गुलीवर वहाँ अपना प्रभाव जमा लेता है।
लिलिपुट के राजा थियोडोर (बिली कॉनेली) और जनरल एडवर्ड के मनमुटाव के बीच गुलीवर इस छोटे संसार का हीरो बन जाता है और एक बहुत अच्छा दोस्त होर्टियों (जेसन सीगल) भी बनाता है जो उसे मुश्किल वक्त में खुद पर भरोसा करना सिखाता है।
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फिल्म दूसरे भाग में रोमांच खो देती है और जैक ब्लैक जैसा अभिनेता भी कुछ खास असर छोड़ने में असफल रहता है। लिलिपुट की प्रिंसेस और जेसन के रोमांस में मदद करने से लेकर लिलिपुट पर दुश्मनों के हमले वाले दृश्य तकनीकी रूप से ठीक है पर कहानी में कसावट न होने की वजह से कुछ कमी लगती है।
निर्देशक रॉब लेटरमैन इस बेहतरीन कहानी को सेल्लयुलाइड पर ठीक से नहीं कह पाए। इस फिल्म में कॉमेडी एकदम सपाट और प्रसंगहीन है। 3डी तकनीक से बनाई गई इस फिल्म के कुछ दृश्य ही प्रभावशाली बन पाए हैं। कुल मिलाकर 95 मिनिट लंबे गुलीवर्स ट्रेवल्स पर जाने के बजाय उपन्यास पढ़ना ज्यादा बेहतर है।